दिल्ली का 'छठा शहर' जिसने देखा मुग़ल, अफ़गान और विभाजन की त्रासदी
दिल्ली में अनेक भव्य संरचनाएं हैं जो सही मायने में ऐतिहासिक हैं.
दिल्ली में सात शहर हुआ करते थे, जिसमें किला राय पिथौड़ा परंपरागत तौर पर दिल्ली के प्रथम शहर के रूप में प्रसिद्ध है. इसके बाद जैसे-जैसे सत्ता बदलती गई, वैसे-वैसे सीरी, तुगलकाबाद, जहाँपनाह, फ़िरोज़ाबाद, दीनपनाह और शाहजहाँनाबाद जैसे शहर यहां उभरते गए.
पुराना किला और इसके वातावरण “दिल्ली के छठे शहर” के रूप में जाना जाता है.
पुराने किले के निर्माण का इतिहास
1533 में हुमायूं ने पुराने किले का निर्माण अपने शहर के एक भाग के रूप में करवाया था, जिसे उन्होंने दीनपनाह या “आस्था का शरण-स्थान” का नाम दिया था. बता दें, हुमायूं की तख्तपोशी 1530 में हुई थी और मुश्किल से 10 वर्ष के शासनकाल के बाद ही अफ़गान सरदार शेर शाह सूरी ने उनके तख्त पर कब्ज़ा कर लिया था.
शासन अपने हाथों में आने के बाद शेरशाह ने दीनपनाह का नाम बदलकर शेरगढ़ रख दिया और किले की संरचना को महत्त्वपूर्ण विस्तार दिया. शेरशाह ने किले के अन्दर पांच इमारतों का निर्माण किया, जिसमें किला-ए-कुह्ना मस्जिद, अष्टभुजाकार लाल बलुये पत्थर वाली दोमंजिला शेर मण्डल महत्त्वपूर्ण हैं. किले का निर्माण शेर शाह सूरी द्वारा 1540 से 1545 के बीच हुआ था.
कुछ समय बाद ही शेरशाह के मरने के बाद यह किला फिर से हुमायु के पास चला गया. बाद में पुराना किले पर बहुत ही कम समय के लिए अनेक राजाओंने ने राज किया था और फिर इस पर अंग्रेजों ने अपना आधिपत्य किया.
प्रवेशद्वार
पुराने किले की भव्यता का अनुमान तीन शानदार प्रवेशद्वारों से लगाया जा सकता है. उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में किले के तीन बड़े प्रवेशद्वार हैं, जिनकी दीवारें विशाल हैं. दक्षिणी दरवाजा हुमायूं दरवाज़ा कहलाता है. यह प्रवेशद्वार दो मंज़िला है जिसके बीच एक ऊंचा मेहराब है.
उत्तर में स्थित तीसरा प्रवेशद्वार तालाकी दरवाज़ा या निषिद्ध दरवाज़ा है. इस प्रवेशद्वार में दो द्वार हैं - ऊपरी और निचला. ऊपरी द्वार जो अधिक अलंकृत था, वह मुख्य द्वार हुआ करता था.
इनमें से पश्चिमी दरवाज़े का प्रयोग आजकल किले में प्रवेश के लिए किया जाता है. यह प्रवेशद्वार एक मज़बूत संरचना है जिसके दोनों ओर एक-एक विशाल बुर्ज है. दरवाज़ा लाल बलुआ पत्थरों से बना है जिनमें सफ़ेद और धूसर-से काले संगमरमर की भराई है, और बेहद खूबसूरत है. प्रवेशद्वार के ऊपरी भाग और बुर्ज में तीरों के लिए कई खांचे देखे जा सकते हैं.
किला-ए-कुहना मस्जिद
किला-ए-कुहना मस्जिद का निर्माण शेर शाह ने करवाया था.
यह मस्जिद एक बेहद खूबसूरत संरचना है. मस्जिद में पांच मेहराब हैं. इसके निर्माण में लाल और पीले बलुआ पत्थरों के उपयोग के साथ-साथ धूसर रंग के क्वार्टज़ाइट पत्थरों का भी उपयोग हुआ है, जो दिल्ली के अन्य इमारतों में उतना नहीं दीखता है.
पूरी मस्जिद में पश्चिमी और मध्य एशिया में उत्पन्न हुई इस्लामी वास्तुकलाओं एवं कलश और कमल जैसे हिंदुओं के स्वदेशी शैलीगत रूपांकनों के बीच एक सामंजस्यपूर्ण सम्मिश्रण दीखता है. जिससे इन संरचनाओं को बनवाने वालों के समन्वयात्मक दृष्टिकोण का भी पता चलता है.
शेर मंडल
यह पुराने किले के भीतर शेर शाह द्वारा बनवाई गई दूसरी प्रमुख संरचना है.
शेर मंडल लाल बलुआ पत्थरों से बनी हुई एक अष्टभुजाकार संरचना है जिसमें सफ़ेद और काले संगमरमर से भराई की गई है.
लाल दरवाज़ा और खैरुल मनाज़ि
लाल दरवाज़ा और खैरुल मनाज़िल किले की बाहरी दो संरचनाएं हैं, जिन्हें अक्सर पुराने किले के ही एक हिस्से के रूप में देखा जाता है.
लाल दरवाज़ा लाल बलुआ पत्थरों और धूसर रंग के क्वार्टज़ाइट पत्थरों से बना एक शानदार दरवाज़ा है, जो कथित तौर पर शेरगढ़ शहर का दक्षिणी प्रवेशद्वार था.
वहीं, खैरुल मनाज़िल का निर्माण अकबर की दाई मां, माहम अंगा ने लगभग 1561-62 में एक मस्जिद और मदरसा का निर्माण करने के लिए बनवाया था.
पुराना किला, अंग्रेज़ और आज की दिल्ली
कहा जाता है कि अंग्रेज़ों की राजधानी के रुप में नई दिल्ली (1912-1930) का निर्माण करने वाले, सर एडविन लुटयंस ने सेंट्रल विस्टा (जिसे अब राजपथ कहा जाता है) को पुराने किले के हुमायूं दरवाज़े के साथ जोड़ा था.
ऐसा भी कहा जाता है कि 1947 में भारत के विभाजन के दौरान कई सौ शरणार्थियों ने कई महीनों तक पुराने किले में आश्रय लिया था.
Edited by Prerna Bhardwaj