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दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञानियों की रिसर्च पर भारी पड़ रहा डेंगू का डंक

दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञानियों की रिसर्च पर भारी पड़ रहा डेंगू का डंक

Saturday September 21, 2019 , 4 min Read

दुनिया में हर साल दस लाख लोग मच्छरों की वजह से दम तोड़ रहे हैं। इस समय हमारे देश के ज्यादातर राज्यों में डेंगू और मलेरिया फैला हुआ है। इस बीच विश्व के तमाम चिकित्सा विज्ञानी मच्छर काबू करने के रिसर्च में जुटे हैं। उधर, एक्ट्रेस नियति जोशी, एक्टर कार्तिक, जैन इमाम, ईशा सिंह, यूके की मंत्री रेनू अधिकारी को डेंगू हो गया है।

Dengue

सांकेतिक फोटो (Shutterstock)


डब्ल्यूएचओ (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन) के मुताबिक, मच्छरों की वजह से हर साल दुनिया में 10 लाख से ज्यादा लोग दम तोड़ रहे हैं। इस समय विश्व की लगभग पचास फीसदी आबादी को मच्छरों से फैलने वाले रोगों का खतरा है। इस वक़्त हमारे देश के लगभग सभी राज्यों में डेंगू अथवा मलेरिया ने लोगों को दहशत में डाल रखा है। डेंगू का शॉक सिंड्रोम मरीजों की जान से खेल रहा है। इस बीच हजारो डेंगू-मलेरिया पीड़ितों के साथ एक्ट्रेस नियति जोशी, एक्टर कार्तिक, जैन इमाम, ईशा सिंह, उत्तराखंड की दर्जाप्राप्त राज्य मंत्री रेनू अधिकारी आदि भी इन दिनो डेंगू की चपेट में हैं।


देश में सबसे भयावह स्थिति उत्तराखंड की है, जहां 50 हजार लोगों के इस समय डेंगू प्रभावित होने का दावा किया गया है।  इस समय दुनिया में मच्छरों की करीब साढ़े तीन हज़ार प्रजातियां हैं। यद्यपि, इनमें से ज़्यादातर सिर्फ फलों और पौधों के रस पर ज़िंदा रहती हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक ताज़ा जानकारी के मुताबिक, मच्छरों से होने वाला संक्रमण हर साल दुनिया भर में 21.9 करोड़ से अधिक लोगों को प्रभावित कर रहा है। 


मच्छरों से बचाव के लिए लगातार चिकित्सा विज्ञानी तरह-तरह के रिसर्च में जुटे हैं। एक ऐसी ही स्टडी के मुताबिक, मच्छर कान के पास आकर कुछ सेकेंड्स में 500 बार भिनभिनाने हैं, जिसकी फ्रीक्वेंसी इतनी तेज होती है कि इसका वाइब्रेशन न सिर्फ कान के परदों पर महसूस होता है बल्कि ये मस्तिष्क के सूचना तंत्र पर एक विशेष प्रभाव छोड़ने लगता है। यह भिनभिनाहट स्पर्श की सूचना देने वाली हमारी तंत्रिकाओं को उत्तेजित कर देती है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार, मलेरिया होने की संभावना वाले प्रमुख देशों में शुमार भारत ने इससे निपटने में 80 फीसदी से अधिक सफलता पा ली है। सन 2000 में मलेरिया के 23 लाख मामले सामने आए थे, जो पिछले साल 2018 में घटकर तीन लाख 90 हजार रह गए। सन 2000 में मलेरिया से 932 मौत की तुलना में 2018 में इससे मात्र 85 लोग मरे।





नीदरलैंड्स के कीट विज्ञानी बार्ट क्नोल्स मच्छरों को काबू में लाने के लिए पिछले 22 वर्षों से शोधरत हैं। इसके लिए वह हफ्ते में दो बार लैब में जा कर मच्छरों से अपना खून चुसवाते हैं। उनका कहना है कि कीटनाशक छिड़कने पर मच्छर उससे ही प्रतिरोधी क्षमता हासिल कर लेते हैं। इसीलिए हमें इन मच्छरों को मारने का कोई नया तरीका खोजना पड़ रहा है। डेनमार्क के हार्लेव जेनटोफ्ट यूनिवर्सिटी अस्पताल के पोस्टडॉक्टरल रिसर्च फेलो फिलिप ब्रेनिन के एक नए रिसर्च में सामने आया है कि मलेरिया संक्रमण के कारण हार्ट फेल भी हो सकता है। अब तक ऐसे 68 लोगों की मौतें हो चुकी हैं। 


हाल ही में अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मच्छरों से बचने के लिए 'ग्रैफीन लाइन' नामक कपड़े पहनने का विकल्प सुझाया है। ग्रैफीन पतले कार्बन परमाणुओं से बना स्टील से गई गुना मजबूत पदार्थ है, जिसे 2004 में मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के दो शोध प्रोफेसरों ने खोजा था। अमेरिका की मैरीलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मलेरिया रोकने के लिए मकड़ी के जहर से मेथारिजियम पिंग्सहेंस फंगस (फफूंद) बनाया है, जिससे 45 दिनों में 99 फीसदी मच्छरों को मारा जा सकता है। अफ्रीका के बुर्किना फासो में यह प्रयोग सफल हुआ है। इस बीच बताया गया है कि स्मार्टफोन पर हाई फ्रीक्वेंसी की आवाज़ें निकालने वाला एक ऐप मच्छरों को आसपास से खदेड़ दे रहा है। 


वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के जन्तु वैज्ञानिक जेफ रिफेल अब एक ऐसी कृत्रिम गंध तैयार करने में जुटे हैं, जिससे मच्छर दूर भाग जाएंगे। उनका कहना है कि इंसानों की त्वचा में मौजूद बैक्टीरिया करीब 200 प्रकार की गंध निकालते हैं। मच्छरों को मशरूम जैसी गंध पसंद होती है। मच्छर इंसान की गंध का वाइब्रेशन से अंदाजा लगाते हैं कि किसे काटना चाहिए, किसे नहीं। एक यूरोपीय रिसर्च प्रोजेक्ट ने एक जालीदार प्लास्टिक ट्यूब ईजाद किया है, जिस पर मच्छर चिपक जाते हैं। अब वैज्ञानिक स्थानीय निर्माण कंपनियों के साथ मिलकर इस एंटी मॉस्कीटो ट्यूब्स को नई इमारतों में लगाने की जुगत बिठा रहे हैं।