घाटमपुर की 'विषकन्या' नाजनीन के बेस्ट फ्रेंड हैं छह किंग कोबरा
"दुनिया की सबसे खतरनाक सर्प-प्रजाति जिस किंग कोबरा को देखने भर से पसीने छूट जाते हैं, घाटमपुर (उ.प्र.) की 'विषकन्या' नाजनीन उर्फ काजल ऐसे छह जहरीले नागों के साथ चौबीसो घंटे रहती है, पिछले छह वर्षों से उन्ही के साथ खेलती, खाती, सोती और रोजाना दूध पिलाती है। उसके इस सर्पीले शौक से घर वाले परेशान हैं।"
बचपन से ही सबसे खतरनाक सांप किंग कोबरा को अपना सबसे बेस्ट फ्रेंड मान चुकी नाजनीन उर्फ काजोल अब बारह वर्ष की हो चुकी है। बुंदेलखंड (उ,प्र.) के जिला हमीरपुर स्थित घाटमपुर की रहने वाली काजोल 'विष कन्या' के नाम से मशहूर है। इस समय वह चौबीसो घंटे एक-दो नहीं, छह किंग कोबरा के साथ ही खाना खाती है, उनके ही साथ खेलती है, और उन्ही के साथ उसको नींद आती है। वह रोजाना अपने सभी किंग कोबरा दोस्तों को दूध पिलाती है। उस पर हर वक़्त इस सर्पीली दोस्ती का ऐसा जुनून सवार रहता है कि मां-बाप के लाख समझाने, डाटने-फटकारने के बावजूद वह पिछले छह वर्षों से स्कूल नहीं गई है।
नाजनीन जब तीन वर्ष की थी, कभी-कभार किताबों से नाता रखने के बाद तभी से उसने स्कूल जाना छोड़ दिया था। रोजाना वह किंग कोबरा के साथ नाश्ता करने के बाद उन्हे लेकर गांव में खेलने निकल जाती है। गौरतलब है कि किंग कोबरा का डसा हुआ व्यक्ति जिंदा नहीं रह पाता है। वह एक बार में कम से कम चालीस लोगों की जान ले सकता है। ऐसे में काजोल का छह किंग कोबरा से चौबीसो घंटे घिरे रहना किसी के लिए भी एक खौफनाक मंजर हो सकता है।
घाटमपुर में अपने माता-पिता के साथ रह रही काजोल के दो भाई और छह बहनें हैं। उसके घर वाले पहले सपेरे थे, लेकिन काफी समय से वे वह काम छोड़ चुके हैं। उन्ही दिनो काजोल पहली बार सांपों की संगत में आई थी और दुनिया के सबसे खतरनाक सांपों के साथ खिलौने की तरह खेलने लगी थी।
काजोल के इस जहरीले शौक से उसके घरवाले भी हर वक़्त परेशान रहते हैं। मां आज भी उसको स्कूल भेजने की कोशिश करती रहती है, लेकिन उसने तो अनपढ़ ही रहने का जैसे हठ कर रखा है। रोजाना उसके दिन की शुरुआत ही किंग कोबरा ग्रुप के साथ होती है। किंग कोबरा उसे भी आए दिन डसते रहते हैं लेकिन उसके पिता देसी दवाओं से उसका इलाज कर दिया करते हैं। काजोल कहती है कि लोग सांपों से डरते क्यों हैं, ये तो अच्छे दोस्त हो सकते हैं। उसको किंग कोबराओं से घिरा देखकर अच्छे-अच्छों की बोलती बंद हो जाती है। वे किंग कोबरा फन उठाए काजोल के शरीर से लिपटे रहते हैं।
इसी तरह झांसी जिले के समथर गांव के शंभूनाथ का बेटा मोनू, रामगोपाल का बेटा प्रकाश समेत कई बच्चे काजोल की तरह ही सांपों की संगत में स्कूल नहीं जाते हैं। वे सब के सब सांपों को ही अपना बेस्ट फ्रेंड मानते हैं। उन्हें हर वक़्त सांपों के बीच रहना अच्छा लगता है। लोग उन्हे जहरीले बालक के नाम से जानते हैं। काजोल के परिजनों की तरह इन बच्चों के घर वाले भी पहले सपेरे थे। बारह साल का मोनू नाग-नागिन के साथ रहने के अनुभव सुनाता रहता है।
इसी तरह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर इलाहाबाद जिले के शंकरगढ़ इलाके में सपेरों का एक गांव है कपारी। इस गांव के हर घर में सांप पाले जाते हैं। इन घरों बच्चे बच्चे गुड्डे-गुड़ियों और खिलौनों से नहीं, सांपों से खेलते हुए बड़े होते हैं। वहां किसी भी समय बच्चों को गले में नाग (कोबरा), करैत, वाइपर, घोड़ा पछाड़ जैसे जहरीले सांप लपेटे या उनके साथ खेलते हुए देखा जा सकता है।
गांव कपारी के सपेरे राजकुमार बताते हैं कि वे लोग पहाड़ी क्षेत्र में रहते हैं। सांपों की संगत उनका पेशा है। इन सांपों से ही लोगो का मन बहलाकर वे रोजाना सौ-दो सौ रुपए कमा लेते हैं, जिससे उनके परिवारों की रोजी रोटी चलती है। सोमवार के दिन मंदिरों के सामने सांप लेकर बैठने से उनकी पांच सौ रुपए तक कमाई हो जाती है। परिवार के किसी सदस्य अथवा बच्चों को यदि सांप काट भी लेता है, तो उनके पास नर्घीस, जहेर, मोगरा जड़ी-बूटियां जहर उतार देती हैं।
कपारी के जिस घर में जितने अधिक सांप होते हैं, गांव में उसका रुतबा उतना बुलंद होता है। राजकुमार को हैरत तो इस बात की होती है कि उसके गांव में आज तक किसी की सांप के काटने से मौत नहीं हुई है। सर्प-विशेषज्ञ राधेश्याम बताते हैं कि सिर्फ स्पर्श से सांपों को अहसास हो जाता है कि उनको पकड़ने वाला दुश्मन नहीं, दोस्त है। वे ज्यादातर सांप पहाड़ी इलाकों से पकड़ कर लाते हैं और उनके जहरीले दांत तोड़ देते हैं।