वैज्ञानिक ही नहीं, कवि भी थे शांतिस्वरूप भटनागर
पद्म भूषण से सम्मानित देश के जाने-माने वैज्ञानिक सर शांति स्वरूप भटनागर के 124वें जन्मदिन पर...
पद्म भूषण से सम्मानित देश के जाने-माने वैज्ञानिक सर शांति स्वरूप भटनागर का आज (21 फरवरी) 124वां जन्मदिन है। उनका जन्म भेड़ागांव (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। वह जब मात्र आठ महीने के थे, पिता परमेश्वरी सहाय चल बसे। चुनौतियों भरा बचपन ननिहाल में बीता। नाना ही उनकी वैज्ञानिक प्रतिभा के प्रेरणास्रोत बने। वह वैज्ञानिक ही नहीं, कवि-हृदय भी थे।
जीवन की कठिनाइयों से गुजरते हुए उन्होंने इंटर की पढ़ाई-लिखाई पंजाब यूनिवर्सिटी से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। फिर लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिल हो गए। वहां से उन्होंने 1916 में बीएससी और फिर एमएससी की पढ़ाई पूरी की।
देश आजाद होने के बाद विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक शांति स्वरूप भटनागर की ही अध्यक्षता में हमारे देश में पहली बार सीएसआईआर (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद) का सन् 1947 में गठन हुआ। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के पहले महानिदेशक बने। जीवन की अनहोनियों भरा उनका बचपन नाना के साथ बीता। पढ़ाई-लिखाई के दिनो से ही उन्हें यांत्रिक खिलौने, इलेक्ट्रानिक बैटरियां और तारयुक्त टेलीफोन बनाने-बिगाड़ने का शौक हुआ करता था। नाना के साथ बचपन में छोटे-छोटे प्रयोगों से ही उन्हें महान वैज्ञानिक बनने की प्रेरणा मिली।
भला किसे पता था कि रसायन विज्ञान में फेल होने जाने वाला छात्र शांतिस्वरूप किसी दिन भारतीय प्रयोगशालाओं के जनक के रूप में जाना-माना जाएगा। अपने कुशल-कठोर श्रम-ज्ञान के बूते इसरो के दिनो में उन्होंने एक साथ 104 उपग्रह लांच कर पूरे विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया था। आज उनको भारत की शोध प्रयोगशालाओं का जनक कहा जाता है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा सिकंदराबाद के डीएवी हाईस्कूल में हुई। छात्र जीवन से ही वह साहित्यानुरागी भी थे। सन् 1911 में लाहौर के दयाल सिंह कॉलेज में पढ़ाई के दिनो में उर्दू में उन्होंने ‘करामाती’ (सरस्वती स्टेज सोसाइटी) नाटक लिखा, जिसे वर्ष 1912 का सर्वश्रेष्ठ नाट्य पुरस्कार मिला। स्वभावतः कवि-हृदय डॉ भटनागर ने वाराणसी हिंदू विश्व विद्यालय में कार्यरत रहने के दिनो में बीएचयू का कुलगीत लिखा -
So sweet serene, infinitely beautiful
This is the presiding center of all learning
Radiant Kashi, wonder of the three worlds
Treasure-Chest of Jnana , Dharma and Satya
Nesting on Ganga`s bank, center of all disciplines.
(So sweet, serene, infinitely beautiful)
No Recent work of brick and stone
Primordial design of divinity alone
Mansions of Vidya, center of all creation.
(So sweet, serene, infinitely beautiful)
Clear here is the doctrine pure
Truth first, then only one' self
Home of Harishchandra, Truth's testing ground.
(So sweet, serene, infinitely beautiful)
The voice of God in Vedic record
Constant Inspiration for soul-accord
Work-shop of Veda Vyasa, center freedom for Bhrahma Vidya
(So sweet, serene, infinitely beautiful)
Find here the steps of freedom
Tread here the path of Dharma
Flaming trail Budha`s and Shankara`s center for philosopher-kings.
(So sweet, serene, infinitely beautiful)
Life-Giving waters of Varuna and Assi
Sustenance of Kabir and Tulsi
Fountainhead of eloquent speech and poetry.
(So sweet, serene, infinitely beautiful)
Music, Economics, other arts so many
Maths, Mining, Medicine and Chemistry
Fraternal forum of East and West , university in trust sense.
(So sweet, serene, infinitely beautiful)
Patriotism of Malviyaji
His intrepidity and energy
All in youthful manifestation, centre for men of action
इससे पूर्व जीवन की कठिनाइयों से गुजरते हुए उन्होंने इंटर की पढ़ाई-लिखाई पंजाब यूनिवर्सिटी से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। फिर लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिल हो गए। वहां से उन्होंने 1916 में बीएससी और फिर एमएससी की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद दयाल सिंह ट्रस्ट से छात्रवृति लेकर पढ़ने के लिए अमेरिका जाना चाहे लेकिन जहाज में सीट न मिल पाने पर ब्रिटेन में थम गए। उन्होंने लंदन की यूनिवर्सिटी से फ़्रेड्रिक जी डोन्नान के शैक्षिक-संरक्षण में विज्ञान में डाक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नाइटहुड से सम्मानित किया। भारत लौटने पर वह वीएचयू में प्रोफ़ेसर, बाद में फ़ैलो आफ़ रॉयल सोसायटी बने। उन्होंने मैग्नेटिक इंटरफेयरेंस बैलेंस का आविष्कार किया।
यदि वह वैज्ञानिक नहीं होते तो निश्चित वह भविष्य के बड़े सृजनधर्मी हुए होते। वह वीएचयू में तीन साल रसायन विज्ञान के प्रोफेसर रहे। पंजाब यूनिवर्सिटी में फिजिकल केमेस्ट्री के प्रोफेसर और यूनिवर्सिटी केमिकल लैबोरेट्रीज के डायरेक्टर बने। यहीं पर उन्होंने रिसर्च करना शुरू किया। सन् 1940 में उन्होंने अलीपुर (कोलकाता) में बोर्ड ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (बीएसआइआर) प्रयोगशाला बनाई। वहाँ पर वह दो साल निदेशक रहे। इसके बाद 1942 में कौंसिल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च की नींव रखी। उसके बाद उन्होंने कई प्रयोगशालाओं की स्थापना की। उनकी खोज ने कच्चे तेल की खुदाई की कार्यपद्धति को उन्नत किया।
फिजिकल कमेस्ट्री, मैग्नेटो केमिस्ट्री और एप्लाइड केमिस्ट्री में उनकी बेजोड़ खोज रही। उनके शोध विषयों में एमल्ज़न, कोलाय्ड्स और औद्योगिक रसायन शास्त्र थे परन्तु उनका मूल योगदान रही चुम्बकीय रासायनिकी। प्रोफेसर आरएन माथुर के साथ मिलकर उन्होंने चुम्बकीय रासायनिक क्रियाओं पर अति उल्लेखनीय इन्टरफ़ेयरेन्स संतुलन का प्रतिपादन किया। डॉ भटनागर ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की प्रेरणा से हमारे देश में कुल बारह राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना कीं, जिनमें प्रमुख हैं - केन्द्रीय खाद्य प्रोसैसिंग प्रौद्योगिकी संस्थान (मैसूर), राष्ट्रीय रासायनिकी प्रयोगशाला (पुणे), राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला (नई दिल्ली), राष्ट्रीय मैटलर्जी प्रयोगशाला, (जमशेदपुर), केन्द्रीय ईंधन संस्थान, (धनबाद) आदि।
वह भारत सरकार के शिक्षा विभाग के सलाहकार और यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) के पहले सभापति भी रहे। वह कुशाग्र मेधा वाले वैज्ञानिक शांति स्वरूप भटनागर का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने एनआरडीसी (नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कारपोरेशन) और सीएसआईआर (वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद) की भी नींव रखी। अब तो हर वर्ष सीएसआईआर की ओर से 1958 से लगातार विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान के लिए डॉ. शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार देश के युवा वैज्ञानिकों को दिया जाता है। सन् 1954 में डॉ भटनागर को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
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