डिजिटल इंडिया के इस दौर में सिर्फ़ कैश के सहारे बिज़नेस चलाना है टेढ़ी खीर!
मैं आपको एक हालिया घटना के बारे में बताती हूं। बेंगलुरु से हैदराबाद की फ़्लाइट में मैं विंडो सीट पर बैठी थी और प्लेन के टेक ऑफ़ करने के दौरान मैं खिड़की से बाहर का नज़ारा देख रही थी।
जैसा कि आप जानते हैं कि भारत में मॉनसून का मौसम है और प्लेन में टर्बुलेंस आम बात है। लेकिन मुझे टर्बुलेंस फोबिया है और मेरे लिए यह काफ़ी चिंताजनक स्थिति हो जाती है।
मेरे अंदर एक बहुत ही अच्छी आदत है कि जब भी मैं नवर्स या डरी हुई होती हूं तो मैं हंसने लगती हूं और प्लेन में भी मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ। मेरी हंसी सुनने से पहले तक मेरे बगल में जो सज्जन बैठे थे, वह पूरी तरह से अख़बार पढ़ने में मशरूफ़ थे, लेकिन मेरी हंसी सुने के बाद उन्होंने मेरी तरफ़ देखा और पूछा, "आप हंस क्यों रही हैं? क्या हुआ?"
मैं उन्हें कोई जवाब तो नहीं दे पाई, लेकिन मेरा ध्यान उनके सोने की तरफ़ गया। उन्होंने काफ़ी ज़्यादा सोना पहन रखा था- एक सोने का ब्रेसलेट और सोने की एक चेन।
उन्हें लगा कि मैं उन्हें देखकर हंस रही हूं और उन्हें शायद यह बात अच्छी भी नहीं लगी। मुझे लगा कि मुझे उन्हें साफ़-साफ़ बता देना चाहिए कि मैं हंस क्यों रही हूं। मैंने उन्हें फ़्लाइट फ़ोबिया के बारे में बताया। इसके बाद वह निश्चिंत हो गए और हमारी बातचीत शुरू हुई। उन्होंने बताया कि उनकी ग्रेनाइट की माइन्स हैं और इसके बाद उन्होंने पूछा कि मैं क्या करती हूं।
मैंने उन्हें बताया कि मैं अपने दम पर क़ामयाबी हासिल करने वाले और समाज के लिए कुछ सकारात्मक करने वाले लोगों की कहानियां, अन्य लोगों तक पहुंचाती हूं। उन्होंने बीच में टोकते हुए कहा कि वह भी एक ऑन्त्रप्रन्योर हैं, जिसने सबकुछ अपने दम पर बनाया है। मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि एक दिन मैं उनकी कहानी ज़रूर लोगों तक पहुंचाऊंगी। बदले में वह हंस पड़े और इसबार मुझे कुछ अजीब और ख़राब लगा कि सामने वाले शख़्स को मेरा आइडिया अच्छा नहीं लगा।
वह सज्जन अभी भी हंस रहे थे। उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैंने उनकी कहानी सार्वजनिक की तो वह फंस जाएंगे। उन्होंने कहा, "मेरा बिज़नेस अभी भी मुख्य रूप से कैश या नकदी पर ही चलता है और मेरे रेवेन्यू का एक बड़ा हिस्सा भी कैश से ही आता है। मैं मुसीबत में फंस जाऊंगा, अगर आप मेरे रेवेन्यू के बारे में लिखेंगी।"
क्या सच में अभी भी नकदी का ही बोलबाला है?
मैंने उन सज्जन से पूछा, "क्या आप अभी भी कैश के ही सहारे बिज़नेस चलाते हैं?" उन्होंने हां में सिर हिलाया और कहा कि यह समय के साथ बहुत मुश्क़िल होता जा रहा है।
उनके मुंह से यह बात सुनकर मेरे चेहरे पर संतोषभरी मुस्कान आ गई। हम भले ही उस मुक़ाम तक न पहुंच पाए हों, लेकिन हम सही रास्ते पर बढ़ रहे हैं। कैश या नकदी के सहारे बिज़नेस चलाना मुश्क़िल होता जा रहा है क्योंकि सरकार अब हर काम को ऑनलाइन कर रही है और मेरे हिसाब से यह डिजिटल इंडिया मुहिम की सबसे बड़ी उपलब्धि है।