इक्वेइष्ट्रीयन गेम्स में अर्जुन अवार्ड पाने वाली भारत की पहली और एक मात्र महिला बनीं दिव्यकृति सिंह
इक्वेइष्ट्रीयन गेम्स में एशियाई खेलो की स्वर्ण पदक विजेता है दिव्यकृति.
युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय ने राष्ट्रीय खेल पुरस्कार के तहत इस वर्ष के लिए प्रतिष्ठित अर्जुन अवार्ड की घोषणा कर दी है. डीडवाना-कुचामन जिले की परबतसर तहसील के ग्राम पीह निवासी प्रख्यात Equestrian Dressage (घुड़सवारी ड्रेसेज) एथलीट दिव्यकृति सिंह (Divyakriti Singh) इस वर्ष यह प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वाली राजस्थान की एकमात्र एथलीट बनीं है. वे इक्वेइष्ट्रीयन में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित होने वाली पहली और एकमात्र भारतीय महिला भी है. दिव्यकृति ने देश को घुड़सवारी में 41 साल के लंबे इंतजार के बाद ऐतिहासिक स्वर्ण पदक दिलाया है. अगले साल 9 जनवरी को राष्ट्रपति भवन में खेल पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे.
इक्वेइष्ट्रीयन में एशियाई खेलों की स्वर्ण पदक विजेता दिव्यकृति सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस खानविलकर की अध्यक्षता में एक प्रतिष्ठित समिति द्वारा आयोजित कठिन चयन प्रक्रिया के बाद विशिष्ट पुरस्कार विजेताओं में अपना स्थान सुरक्षित कर लिया है. प्रसिद्ध खेल आइकन में शामिल करते हुए समिति ने इक्वेइष्ट्रीयन खेल के क्षेत्र में दिव्यकृति के उल्लेखनीय योगदान को मान्यता दी है.
दिव्यकृति अपने स्कूल और दिल्ली विश्वविद्यालय के दौरान अक्सर यूरोप में (नीदरलैंड, बेल्जियम, जर्मनी, ऑस्ट्रिया) में ट्रेनिंग ले रही थीं. इतना ही नहीं उन्होंने दुनिया में घुड़सवारी की राजधानी माने जाने वाले वेलिंगटन-फ्लोरिडा, संयुक्त राज्य अमेरिका में भी ट्रेनिंग ली है.
वहीं पिछले तीन वर्षों में दिव्यकृति सिंह ने जर्मनी में अपने कौशल को निखारा है. 2023 में, उन्होंने चीन में एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली ड्रेस टीम में योगदान दिया और पिछले महीने सऊदी अरब की राजधानी रियाद में अंतरराष्ट्रीय ड्रेस प्रतियोगिता में एक व्यक्तिगत रजत और दो कांस्य पदक हासिल किए. मार्च 2023 तक इंटरनेशनल इक्वेइष्ट्रीयन एंड फेडरेशन द्वारा जारी ग्लोबल रिसर्च रैंकिंग में उन्हें एशिया में नंबर वन और विश्व में नंबर 14 का स्थान दिया था. इसके बाद उन्हें अर्जुन अवार्ड दिया गया है, जिसको लेकर गांव में खुशी की लहर है. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने भी दिव्यकृति सिंह को अर्जुन अवार्ड मिलने पर बधाई दी है.
दिव्यकृति सिंह को यह खेल विरासत में मिला है. दिव्यकृति के पिता विक्रम सिंह राठौड़ भी इस खेल में खास पहचान रखते हैँ. वो राजस्थान पोलो संघ से जुड़े रहे हैं. अपनी बेटी की इस स्वर्णिम सफलता पर खुशी जताते हुए कहा कि यह पूरे राजस्थान के लिए ऐतिहासिक पल है.