‘कथालय’ बताएगा, आप कहानियों को बेहद रोचक तरीके से कैसे सुनाएं...
करीब 18 वर्ष पहले एक शिक्षिका के रूप में काम करते समय गीता रामानुजम ने रखी थी नींवकहानियों के माध्यम से समाज के बीच एक सकारात्मक प्रभाव पैदा करने का कर रही हैं प्रयासकथावाचन के क्षेत्र में पहले और एकमात्र स्वतंत्र और विश्वस्तर पर मान्यता प्राप्त संस्थान ‘एकेडमी आॅफ स्टोरीटेलिंग’ की स्थापना का भी जाता है श्रेयदेश के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय भाषा में कथावचन सत्रों का करती हैं आयोजन
कथावाचन या कहानी कहना एक कला होने के अलावा दूसरों के साथ संवाद करने, विचारों को व्यक्त करने और दृष्टांत बिंदु का एक साधन है। इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि हम दूसरों से जो जानकारी प्राप्त करते हैं, चाहे वह मौखिक हो या लिखित, उनमें से अधिकतर एक कहानी के रूप में प्रसारित की जाती है। हम अतीत की घटनाओं को परस्पर घटनाओं की एक श्रंखला के रूप में देखते हैं जिसे विभिन्न किरदारों द्वारा जिया गया होता है। ये कहानियां जिन्हें हम रोजाना या तो अगल-अलग लोगों से या मीडिया इत्यादि के माध्यम से सुनते हैं हमारी वास्तविकता को एक रूप देती हैं। ये दुनिया के बारे में हमारे विचारों को आकार देने का काम करती हैं। हालांकि यह देखना अपने आप में बेहद विस्मयकारी होता है जब शिक्षा की बात आती है तो हम कहानी और कथावाचन के इच्छुक प्रजाति के लोग रटने की प्रवृत्ति पर इतना भरोसा करते हैं। जब पात्र और उनके कृत्य अलग-अलग शब्दों और परिभाषाओं की एक मनमानी सूची में तोड़ दिये जाते हैं तो वास्तविकता अपना असल अर्थ ही खो देती है।
शुक्र है कि गीता रामानुजम द्वारा स्थापित किया गया ‘कथालय’ हमारे पुराने लर्निंग सिस्टम का एक विकल्प उपलब्ध करवाता है। बीते करीब 18 वर्षों से ‘कथालय’ शिक्षकों, अभिभावकों और विभिन्न एनजीओ को प्रतिनिधियों के साथ कहानी कहने की कला का विस्तार करने और इसके माध्यम से समाज के बीच एक सकारात्मक प्रभाव पैदा करने के काम को सफलतापूर्वक अंजाम दे रहा है।
इस कंपनी को प्रारंभ करने का विचार गीता के मस्तिष्क में तब आया जब वे एक शिक्षिका के रूप में काम कर रही थीं और उस दौरान वे प्रतिदिन आम शिक्षण पद्धतियों की एकरसता से रूबरू होने के अलावा छात्रों के अरुचिपूर्ण चेहरों को देखतीं। गीता कहती हैं, ‘‘मैं कुछ ऐसा करने के बारे में सोच रही थी जो पढ़ाई में रुचि को पैदा कर सके। जब मैं बच्ची थी मेरे पिता ने मुझे इतिहास के सबक कहानियों के रूप में बहुत बेहतरीन तरीक से पढ़ाए और समझाए थे।’’
वर्तमान समय में ‘कथालय’ देश के शहरी और ग्रामीण हर प्रकार के हिस्से का भ्रमण करते हुए अभिभावकों, शिक्षकों और विभिन्न एनजीओ के प्रतिनिधियों को यह समझाने का प्रयास करते हैं कि कैसे एक आकर्षक और प्रभावी तरीके से कहानी सुनाई जाए। ये कथावाचन सत्रों और र्काशालाओं का आयोजन करते हैं, छात्रों को कहानी के साथ जुड़ाव महसूस करवाने के लिये आवश्यक सामग्री उपलब्ध करवाने के अलावा कुछ विशिष्ट सबकों के इर्द-गिर्द तैयार की गई खुद की कहानिया भी उपलब्ध करवाते हैं। गीता कहती हैं, ‘‘कहानियां खुद में तथ्यपूर्ण होती हैं क्योंकि जब हम एक कहानी कहते हैं और तथ्यों को एकीकृतत कर पाने में सफल होते हैं या तथ्यों को बाद में बता सकते हैं। यह सब श्रोता को जगा देता है। कहानियां लोगों की रुचि आगे क्या होने वाला है इसमें जगाए रहती हैं और यह क्रियशील होती हैं, आगे बढ़ती रहती हैं, इनमें क्लाईमैक्स होता है, कथानक होते हैं और ये आवश्चर्यों के भरी होती हैं।’’
उनके इस कार्यक्रम की सफलता और लोकप्रियता के फलस्वरूप अब देशभर के कई स्कूलों ने कथावाचन को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करना शुरू कर दिया है। ‘कथालय’ के इन कार्यक्रमों का प्रमुख उद्देश्य सामाजिक विज्ञान में बच्चों की समझ और रुचि को बढ़ाने पर ध्यान देना है। इसके अलावा शब्दावली, पर्यावरण के प्रति जागरुकता और भाषा का विकास भी इनके कार्यक्रमों में शामिल है। भारत की सांस्कृतिक विविधाता को ध्यान में रखते हुए और ग्रामीण इलाकों की आवश्यकताओं की पूर्ती करते हुए जहां अंग्रेजी भाषा का विस्तार ही नहीं है इनके ये कार्यक्रम स्थानीय भाषाओं में आयोजित किये जाते हैं।
इन सबे परिणास्वरूप ऐ ऐसी कक्षा सामने आती है जिसमें पढ़ने वाले छात्र-छात्रा काम में सक्रियता से लगे रहते हैं, मजे लेते हैं और सबसे महत्वपूण यह है कि वे वास्तव में सीखने में सफल होते हैं। गीता बताती हैं, ‘‘यह श्रोता और कहानी सुनाने वाले के बीच एक भावनात्मक संबंध बना देता है। यह श्रोता को दिल तक छू जाती है क्योंकि यह उनके भावनात्मक पक्ष को छूकर जाता है।’’
कथालय की शिक्षण रणनीति चाहे कितनी ही प्रभावी हो जब कथावाचन जैसी एक प्राचीन और कला के परंपरा के रूप में संरक्षण की बात आती है तो आज के डिजिटल संचार तकनीक के मुकाबले काम करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। गीता यह देख रही हैं कि कैसे इस आणुनिक कक्षाओं की निर्भरता इन तकनीकों पर बढ़ती जा रही है। वे बताती हैं, ‘‘छात्र अब अलग हो गए है और अक्सर वे एकाक्षर वाले जवाबों के रूप में प्रतिक्रिया देते हैं। न तो वे शब्दों की व्याख्या कर पाते हैं और न ही स्वयं को व्यक्त कर पा रहे हैं ........... मुझे लगता है कि हम अपने संवाद कौशल को भूलते जा रहे हैं।’’
इन सब वजहों के चलते कथालय द्वारा किया जा रहा काम और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इसको समय पर पहचानते हुए कथालय ने इस क्षेत्र में किये जा रहे अपने काम को परिशिष्ट देते हुए ‘एकेडमी आॅफ स्टोरीटेलिंग’ की स्थापना की है जो कथावाचन के क्षेत्र का पहला और एकमात्र स्वतंत्र और विश्वस्तर पर मान्यता प्राप्त संस्थान है। अगर आप एकेडमी को समझने में कामयाब रहे तो आप यह समझ पाएंगे कि कथालय का लक्ष्य सिफ शिक्षा के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है। एक अकादमी द्वारा प्रस्तुत किये जा रहे विभिन्न पाठ्यक्रम किसी भी पृष्ठभूमि से आने वाले कथावाचकों के लिये खुले हैं फिर चाहे वे शिक्षक हों या एनजीओ के प्रतिनिधि या फिर किसी बड़ी कंपनी में कार्यरत पेशेवर। गीता कहती हैं, ‘‘प्रत्येक व्यक्ति की एएक पसंद या नापसंद होती है। उन्हें इसे शिक्षा के रूप में लेने की कोई आवश्यकता नहीं है बल्कि वे इसे अपने कार्यक्षेत्र में मूल्य संवर्धन के रूप में अपना सकते हैं।’’
तो उन लोगों को जिन्हें अपने जीवन में ‘कथालय’ की प्रासंगिकता को लेकर कोई संदेह है वे दोबारा विचार कर लें। इसस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं और आप किस क्षेत्र में कार्यरत हैं, आप सिर्फ कहानी सुनाने वाले हैं। कोई भी व्यक्ति जो संवाद की महत्ता को समझता है, सिर्फ अपने विचार को कहने या सुनाने पर ही यकीन नहीं करते हुए उसे समझाने और लागू करवाने में यकीन करता है उसे अपनी कहानी कहने की क्षमता पर गंभीरता से विचार करना चाहिये। क्योंकि गीता भावनात्मक होकर कहती हैं, ‘‘जब आप एक कहानी सुना रहे होते हैं तो आपको पता होता है कि वहां पर वे लोग हैं उसे उसे सुन रहे हैं और वे इससे प्रेरित होकर कुछ न कुछ अपने दिल में लेकर जा रहे हैं और यह सबसे शानादार अनुभूति होती है।’’
आप भी अपनी कहानी कहने की कला को सुधारना चाहते हैं?