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आईटी से डेरी फार्मिंग तक की यात्रा

अम्रुथा डेरी फार्म के संस्थापक हैं संतोष डी सिंह

आईटी से डेरी फार्मिंग तक की यात्रा

Friday September 18, 2015 , 4 min Read

शाम हो चुकी थी और गौशाला में पशुओं ने आराम करना शुरू कर दिया था, सिर्फ एक बछड़ा बाहर खेल रहा था। संतोष डी सिंह अपने खेती-बाड़ी के कामों को भी निपटा रहे थे और फोन पर बातचीत भी कर रहे थे। एक बहुराष्ट्रीय प्रोद्योगिकी कम्पनी में काम करने से अम्रुथा डेरी फर्म्स के संस्थापक बनने की यात्रा के बारे में संतोष जुनूनी होकर बात करते हैं।

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शुरुआत

बैंगलौर से ‘पोस्ट ग्रेजुएशन’ पूरी करने के बाद, मैंने करियर के शुरूआती एक दशक तक आईटी कम्पनियों के साथ काम किया। इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में मैंने डैल और अमेरिका ऑनलाइन जैसी कम्पनियों के साथ काम किया। उन दिनों आईटी क्षेत्र भारत में अपने चरम पर था और मुझे कई जगहों की यात्रा करने का मौका मिला। इन यात्राओं ने मेरे सामने व्यवसाय की संभावनाओं के बहुत से द्वार खोले, जिसने मुझे प्रकृति से जुड़ा उद्यम खोलने के लिए करीब ला दिया। इस प्रकार मैंने डेरी उद्योग में कदम रखने के लिए खोज शुरु की।

मैंने डेरी फार्मिंग में उद्योग करने की सोची क्योंकि यह भारतीय कृषि की अप्रत्याशित दुनिया में अपेक्षाकृत स्थिर और लाभदायक व्यवसाय है। वातानुकूलित जगह पर कार्य करने से डेरी फार्म में आना चौबीसो घंटे खुला और स्फूर्तिदायक अनुभव रहा है।

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फार्मिंग से कोई पृष्ठभूमि ना होने के कारण मैंने राष्ट्रीय डेरी रिसर्च इंस्टिट्यूट (NABARD) से ‘फुल टर्म ट्रेनिंग’ ली। शिक्षा के भाग के तहत मैंने डेरी फार्म के कामकाज देखा और महसूस किया। डेरी फार्म में इन दिनों रुकने से मुझे बहुत भरोसा मिला, मुझे लगा कि गाय पालन ऐसा आकर्षक पेशा है जिसे मैं लम्बे समय तक कर सकता हूं।

तीन गायें और तीन एकड़

मेरी डेरी की शुरुआत नगर से दूर तीन एकड़ जमीन में तीन गायों के साथ हुई, जिसको मैं सप्ताह के अंत में ही समय दे पाता था। यह तीन साल पहले था। मैंने दूध उत्पादन के लिए गायों को चारा देना, उनको नहलाना, दूध दोहना और उनका गोबर शुरू करना खुद ही शुरू किया।

मूल योजना के तहत पहले एक साल में मैंने 20 दुधारू गायों को जोड़ने और स्थिरता बनाने की परिकल्पना की। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने 20 गायों के लिए बुनियादी ढांचा बनाया। NDRI के एक ट्रेनर (जिनके तहत मैंने सीखा था), मेरी फार्म को देखने आये। उन्होंने मुझे टेक्नोलॉजीकल मदद के लिए नाबार्ड (NABARD) में पता लगाने की सलाह दी। नाबार्ड के साथ बातचीत के बाद मुझे एहसास हुआ कि मुझे पूरी ताकत से अपने अभियान को 100 मवेशी तक बढाने की जरुरत है जिससे हर रोज़ 1500 लीटर दूध उत्पादन होगा और यह 1 करोड़ का सालाना टर्न ओवर देगा।

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उत्पाद के मूल्य से डेरी साल-दर-साल बढ़ी, पिछले 5 साल में बिजनस में लाभ स्वस्थ रहा है। नाबार्ड ने जब डेरी फार्मिंग में पहल के लिए सिल्वर मैडल से नवाजा तो यह गज़ब का आत्मविश्वास बढ़ाने वाला रहा। स्टेट बैंक ऑफ़ मैसूर दुबारा प्रोजेक्ट प्लान के फंड के लिए सामने आया। फंडिंग की मदद से मैंने पूरी ताकत से 100 गायों के बुनियाद ढाँचे को बनाया।

सूखा बनाम दृढ संकल्प

इस राह में कुछ मुश्किलें आयीं, जिसके लिए हमें समाधान भी खोजने थे। इन्ही मुश्किलों में से एक अप्रत्याशित मजबूरी सूखे की वजह से हरे चारे की कमी थी, जो 18 महीनों तक चली। इस दौरान हरे चारे की लागत दस गुना बढ़ गयी, यह अभूतपूर्व था। इसका प्रभाव यह हुआ कि डेरी उत्पादन निचले स्तर पर आ गया।

ऑपरेशन को बनाए रखने के लिए नकदी में व्यवधान से निपटना जरूरी था, और इसके लिए मैंने अपनी पूरी बचत लगा दी। अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए मैंने हीड्रोपोनिक्स की पहली यूनिट को स्थापित किया जो नियंत्रित जलवायु में हर रोज़ एक टन हरी घास उगाने में सक्षम था। व्यावसायिक रूप से खरीदे गए हरे चारे की तुलना में यह कम मूल्य वाला था।

शुक्र है, कि इस साल बारिश भरपूर है और इसके साथ हीड्रोपोनिक्स से उत्पादित घास से हम फिर से डेरी मिल्क प्रोडक्शन में पाँव जमाने में सक्षम हैं। भविष्य को लेकर बहुत से संशय हैं, मैं डेरी को बढाने की ओर ध्यान दे रहा हूं।

जो मैंने सीखा है वो नए उद्यमियों के लिए अच्छा रास्ता हो सकता है। सूखे के दौरान कई छोटे-छोटे डेरी फार्म प्रकृति को दोष देते हुए नये बिजनेस की ओर मुड़ गए। लेकिन मैं कुछ बेहतर चाहने के लिए रुका रहा और आज यह देखकर खुश हूं कि देशभर में अच्छी बारिश हो रही है। अपने लक्ष्य के प्रति केन्द्रित रहना हमेशा सकारत्मक परिणाम देता है।