साठ हज़ार से ज्यादा किताबें सिर्फ एक क्लिक दूर 'बुक2लुक' का ऑनलाइन कारनामा
सूचना-तकनीक के दौर में पाठकों को पुस्तकों के ई-किताबें उपलब्ध करवाने वाला वेबसाइट बुक टू लुक मशहूर जर्मन प्रकाशक कंपनी ‘टेर्जियो वरलैग म्युंचैन’ और मुंबई की ‘विट्स इंटरेक्टिव’ का साझा उपक्रम है। 25 हजार यूरो के प्रारंभिक निवेश के साथ अस्तित्व में आई बुक2लुक पर फिलहाल 60 हजार से अधिक किताबें उपलब्ध हैं। छोटे प्रकाशकों और लेखकों को अपनी किताबों को ई-बुक में परिवर्तित करने के लिए प्रोत्साहन भी इस वेबसाइट का प्रमुख कार्य है।
आज के तकनीक के युग में जब सभी चीजें प्रौद्योगिकी से संचालित हो रही हैं तो इंसान की सबसे अच्छी दोस्त मानी जाने वाली किताबें भी इससे कैसे दूर रह सकती हैं। तकनीक का बढ़ता प्रयोग वर्तमान युग में किताबों को देखने और तलाशने के तरीकों में बेहद आश्चर्यजनक परिवर्तन लाने में सफल रहा है। पारंपरिक तरीके से कागज़ पर छपने वाली पुस्तकों का स्थान इलैक्ट्रॉनिक किताबों, ( ई-किताबों ) ने ले लिया है। आप इन ई-किताबों को बड़े आराम से अपने पास मौजूद ई-बुक रीडर, मोबाइल फोन या फिर कंप्यूटर पर पढ़ सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2017 तक सिर्फ अमरीका में ही ई-किताबों के पाठकों की संख्या छपी हुई किताबों के पाठकों को पछाड़ने में कामयाब होगी और वर्ष 2025 तक समूचे विश्व में ई-किताबें छपी हुई पारंपरिक किताबों को पीछे छोड़ देंगी।
प्रकाशकों ओर पुस्तक विक्रेताओं दोनों ने ही तकनीक का इस्तेमाल अपने पाठकों को अपनी तरफ खींचने में किया है। पाठकों के सामने अब अपनी पसंद की किताबों को खरीदने से पहले उनके बारे में और अधिक जानकारी इकट्ठी करने के विकल्प अब सामने हैं। एक आॅनलाइन बुकस्टोर के रूप में व्यापार की दुनिया में कदम रखने वाला ‘अमेज़न’ ने सबसे पहले किताबों के वितरण की दुनिया में तकनीक के इस्तेमाल को शुरू किया। अमेज़न ने लोगों के किताबों को पढ़ने के पारंपरिक तरीके को ही बदल दिया और इसे डिजिटल स्वरूप देते हुए दुनिया के सामने पहला ई-बुक रीडर ‘किंडल’ लेकर आए, जिसने किताबों की दुनिया को ई-पुस्तकों की दिशा में मोड़ने में बेहद कामयाबी दिलवाई।
एक ओर जहां पाठक अपनी पसंद की किताबों के आॅनलाइन उपलब्ध होने को बेहद सकारात्मक रूप से ले रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ प्रकाशक इस क्षेत्र पर आने वाले समय में अमेज़न सहित दूसरे आॅनलाइन किताब बेचने वालों के एकाधिकार होने की संभावना को खारिज नहीं कर रहे हैं।
लेखकों द्वारा किताबों की दुकानों और पढ़ने के सत्रों का आयोजन कर पाठकों तक किताबों को पहुंचाने के पारंपरिक तरीकों में भी अब तकनीक के बढ़ते हुए प्रयोग के चलते आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिल रहा है। इसके अलावा विशेषकर छोटे प्रकाशन तकनीक के बढ़ते हुए चलन के चलते सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं क्योंकि तकनीकी क्षमताओं को विकसित करने के उनके संसाधन बेहद सीमित होते हैं।
जर्मनी में बच्चों की किताबों के एक प्रमुख प्रकाशक अपनी पुस्तकों को बेचने के लिए नए तरीकों को खोजने में लगे हुए थे। राॅल्फ मोलर जर्मनी में 30 वर्षों से भी अधिक समय से प्रकाशन के काम में लगे हुए है और उन्होंने इस क्षेत्र में कई अद्वितीय काम किये हैं। उन्होंने अपनी पत्नी आइरिस के साथ मिलकर एक प्रकाशन और साॅफ्टवेयर कंपनी Systhema शुरू की और जर्मनी के पहले ऐसे प्रकाशन बन गये, जो जर्मन भाषा बोलने वाले देशों में किताबों की दुकानों से अपने सस्ते साॅफ्टवेयर बेचने लगे।
इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी के ही साथ एक और प्रकाशन कंपनी टेर्जियो वरलैग म्युंचैन की नींव डाली, जिसने आगे चलकर सफलता से झंडे गाड़ दिये। इनके द्वारा प्रकाशित की गई एक संगीतमय किताब को बाद में संगीत में बदल दिया गया जो बाद में 600 से अधिक प्रदर्शन कर बेहद सफल साबित रही। इसके अलावा में जर्मनी में सीडी-रोम उतारने वाले प्रारंभिक प्रकाशकों में भी रहे। 1990 के दशक में इंटरनेट के बढ़ते हुए प्रचलन के साथ ही टेर्जियो का सफलता का सफर भी थमने-सा लगा। सीडी जल्द ही अप्रासंगिक होती गईं क्योंकि अधिकतर सामग्री लोगों के लियए आॅनलाइन उपलब्ध थी और वह भी अधिकतर बिल्कुल मुफ्त।
वर्ष 2009 आते-आते, अमेज़न के बढ़ने के साथ ही टेर्जियो को अपने अस्तित्व के लिए ख़तरा और अधिक बढ़ता हुआ लगने लगा तब मोलर को समझ में आया कि अब वक्त बदल चुका है और अधिकतर पाठक इंटरनेट की दुनिया में जी रहे हैं और उन तक पहुँचकर ही आप अपनी किताबों की बिक्री को नये आयाम दे सकते हैं। मोलर ने हाल ही में जर्मन बुक आॅफिस, नई दिल्ली द्वारा बैंगलोर में आयोजित ग्लोबल लोकल टाॅक श्रृंखला द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में अपने इन विचारों को दूसरों के साथ साझा किया।
उन्होंने मुंबई के बाहर से शिक्षणोंरंजन के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी विट्स इंटरेक्टिव के सीईओ हितेश जैन के साथ हाथ मिलाने का फैसला किया। उन्होंने हितेश से एक ऐसी प्रणाली विकसित करने को कहा जिसकी मदद से वे अपनी किताबों को इंटरनेट के द्वारा बेचने में सफल हो सकने के अलावा अपने पुस्तकों की झलकियां सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं के सामने भी ला सकें। टोर्जियो और विट्स ने 25 हजार यूरों के प्रारंभिक निवेश के साथ ही एक संयुक्त उद्यम शुरू किया। इन लोगों ने पुस्तकों की खोज के व्यापक काम के लिये एक एक प्रणाली विकसित करने की दिशा में काम करना शुरू किया और उसे नाम दिया book2look.com।
इस टीम ने बिबलेट के नाम से एक विजेट तैयार किया जिसकी मदद से प्रकाशक दुनियाभर में फैले अपने भावी पाठकों तक आॅनलाइन पहुँचने में कामयाब रहें। मोलर के अनुसार बुक2लुक दुनियाभर के ‘‘स्पेनिश भाषी मुल्को, अंग्रेजी-भाषी मुल्कों और जर्मन-भाषी मुल्कों’’ के पाठकों और प्रकाशकों के लिए उपलब्ध है। फिलहाल बुक2लुक पर 60 हजार से अधिक पुस्तकें उपलब्ध हैं। जर्मनी में book2look.de की अपार सफलता के बाद उन्होंने इसे अमरीका, ब्रिटेन और स्पेन के प्रकाशकों के लिए भी अपने दरवाज़े खोले। बिबलेट सिर्फ प्रकाशकों और स्व-प्रकाशकों के बीच ही लोकप्रिय नहीं है बल्कि लेखक, पुस्तक विक्रेता, किताबों की दुकानों के मालिक और ब्लाॅगर भी इसका खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं।
एक प्रकाशक को अपनी पुस्तक की पीडीएफ फाइल उसके बिब्लियो विवरण (शीर्षक, लेखक, प्रकाशक, आईएसबीएन, इत्यादि) के साथ बुक2लुक के पास जमा करवाना होता है। अधिकतर मामलों में प्रकाशक पीडीएफ के रूप में पूरी किताब इनके साथ साझा न करते हुए उसके कुछ अंश ही साझा करते हैं। मोलर का मानना है कि प्रकाशकों को पुस्तक का पूरा विवरण साझा करना चाहिये। एक बार पीडीएफ जमा करने के बाद 45 मिनटों के भीतर ही पुस्तक का बिबलेट संस्करण तैयार कर दिया जाता है। बिबलेट को तैयार करने के लिये प्रकाशक को एक निधार्रित शुल्क का भुगतान करना होता है और उसके बाद यह बिबलेट हमेशा के लिये बुक2लुक की वेबसाइट पर प्रकाशित हो जाती है।
बुक2लुक पर यह बिबलेट पाठक को एक पन्ने पलटने वाली किताब के रूप में उपलब्ध होती है। इस किताब का एक चित्र, जिसपर क्लिक करके इस बिबलेट को पढ़ने के लिए खोला जा सकता है, को फेसबुक, ट्विटर, लिंक्डइन जैसे सोशल मीडिया पर भी एक संस्तुति के साथ साझा किया जा सकता है। इस संस्तुति को पाठक एक निजी संदेश के साथ अपने दोस्तों को ई-मेल के द्वारा भी भेज सकते हैं।
मोलर कहते हैं कि बुक2लुक पर मिलने वाली सुविधाएँ और विकल्प अपने आप में अनोखे हैं और दूसरी कई वेबसाइटें बुक2लुक पर उपलब्ध सुविधाओं के कुछ हिस्सों को ही उपभोक्ताओं तक पहुंचा रही है। वे मानते हैं कि पाठ्य सामग्री को प्रकाशकों से साथ साझा करके वे बिक्री को बढ़ाने में सहयोग ही कर रहे हैं। मोलर कहते हैं कि आने वाला समय अर्थ संबंधी एलगोरिद्म पर आधारित सिफारिशी मंचों का है और वे एक और सहज पुस्तक सिफारिशी वेबसाइट फ्लिपइनटूडाॅटकाॅम बाजार में लाने की तैयारी कर रहे हैं।
भारत में काम करने वाले छोटे प्रकाशक प्रौद्योगिकी के बढ़ते कदमों के भयभीत हैं और प्रौद्योगिकी के महारथी प्रकाशन के काम के बारे में न के बराबर ज्ञान रखते हैं। किसी बड़े स्तर पर अभी प्रौद्योगिकी और एक छोटे प्रकाशक का मिलन होना अभी भी बाकी है।
मोलर की सफलता साबित करती है कि सटीक दृष्टिकोण और एक अच्छे तकनीकी साथी की मदद से अद्वितीय प्रकाशन उत्पादों और सेवाओं का निर्माण करते हुए आने वाले इंटरनेट के युग का सामना करने के लिये तैयार हुआ जा सकता है।
मूल- वेंकटेश कृष्णमूर्ति