जो कभी भरती थीं घरों में पानी, आज हैं 20 लाख का टर्नओवर देने वाली वेबसाइट की मालकिन
घरों में पानी भरने वाली बनी 20 लाख का टर्नओवर देने वाली कंपनी की मालकिन
पाबिबेन रबारी एक ऐसी निडर, आत्मनिर्भर और बुद्धिमान महिला हैं, जो आज के समय में मिसाल बन कर उभरी हैं। यदि उनकी ज़िंदगी को देखा जाये, तो यह बात सच साबित होती है, कि उपलब्धि और काबिलियत पैसों की नहीं बल्कि मेहनत की मोहताज होती है। पाबिबेन ने ज़िंदगी में आई अनगिनत रुकावटों को लांघते हुए शिखर की चोटियों को चूमा है और साथ ही कई ऐसी महिलाओं को उस काबिल भी बनाया है जो सिर्फ घर के चूल्हे-चौके तक सिमित हो कर रह गयी थीं।
घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण पाबिबेन ने चौथी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी और 10 वर्ष की उम्र से ही अपनी माँ के साथ काम पर जाने लगीं। वो लोगों के घरों में पानी भरा करती थीं जिसके बदले में उन्हें मात्र 1 रूपये मेहनताना दिया जाता था।
भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर क्षेत्र में अलग-अलग कला देखने को मिल जाती है, वो कला जो अपने आप में अद्भुत होती है और इतिहास बयां करती हो। इस बदलते दौर में ऐतिहासिक कला को जीवित रख पाना बहुत बड़ी चुनौती बनती जा रही है। इस बड़ी चुनौती को स्वीकारते हुए गुजरात के कच्छ के भदरोई गाँव की महिला पाबिबेन रबारी ने ‘पाबिबेन डॉट कॉम’ नामक फर्म की शुरुआत कर आज कला के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं।
महज 5 वर्ष की उम्र में अपने पिता को खोने वाली पाबिबेन अपनी 3 बहनों में सबसे बड़ी हैं। घर की बिगड़ती परिस्थितियों की वजह से उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास समय से पहले ही हो गया। जब उनके पिता की मृत्यु हुई उस वक़्त उनकी माँ गर्भवती थीं और उसी हालत में परिवार पालने के लिए घरों में काम किया करती थीं, साथ ही मां के साथ पाबिबेन भी लोगों के घरों में काम किया करती थीं। पाबिबेन उन दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उन्होंने चौथी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी और 10 वर्ष की उम्र से ही अपने माँ के साथ काम पर जाने लगीं। वे लोगों के घर पानी भरा करती थीं जिसके एवज़ में उन्हें मात्र 1 रूपये मेहनताना दिया जाता था।
आदिवासी समुदाय डेबरिया रबारी में जन्मी पाबिबेन ने अपनी माँ की मदद से पारंपरिक सिलाई-कढ़ाई सिखी। इस समुदाय में यह प्रथा है कि लड़कियों को शादी के बाद दहेज के तौर पर अपने हाथों से सिलाई और कढ़ाई किये हुए कपड़ों को ससुराल ले जाना होता है। उन्हें एक कपड़ा तैयार करने में करीब 1 से 2 महीने लग जाते हैं, जिस कारण उन्हें काफ़ी वक़्त अपने माँ-पिता के घर पर रह कर अपनी दहेज की तैयारी करनी पड़ती है। इस समस्या को देखते हुए समुदाय के बुजुर्गों ने इस नियम को समाप्त करने का फैसला किया।
पाबिबेन ने 1998 में एक संस्था ज्वाइन की जिसे एक एनजीओ के द्वारा फंडिंग की जाती थी। उनकी इच्छा थी, कि यह कला भी लुप्त न हो और रबारी समुदाय के नियम भी बरकरार रहें इसलिए पाबिबेन ने इसे एक पेशा बना दिया और अपनी सिलाई-कढ़ाई वाली कला को दूसरों तक भी पहुंचा कर इसे विकसित करने का फैसला किया। उन्होंने ट्रिम और रिबन की तरह कपड़ों पर की जाने वाली कड़ाई के लिए एक मशीन एप्लीकेशन की शुरुआत की और उसका नाम “हरी-जरी” रखा। काफ़ी समय तक उन्होंने इस पर काम किया और वे रजाई, तकिये के कवर और कपड़ों पर तरह तरह के डिजाइनिंग के काम सीखें, जिसके एवज में उन्हें महीने के 300 रूपये तनख्वाह दी जाती थी।
18 वर्ष के उम्र में ही उनकी शादी हो गयी और यहीं से उनकी जिन्दगी में नया मोड़ आया। कुछ विदेशियों ने उनकी शादी में हिस्सा लिया और उनके द्वारा बनाये हुए बैग की बहुत बड़ाई की, पाबिबेन ने गिफ्ट के तौर पर उन विदेशियों को कढ़ाई किये हुए कुछ बैग दिए। विदेशियों ने उसे पाबीबैग के नाम से प्रसिद्ध कर दिया, जिस से उन्हें अंतरास्ट्रीय स्तर तक अपनी कला को पहुचाने मेंबो मदद मिली। शादी के बाद उनके पति ने भी भरपूर साथ दिया और उनके कला को आगे बढ़ाने में पूर्ण रूप से सहयोग किया। कुछ वर्ष बाद उन्होंने अपनी कला को और निखारते हुए प्रदर्शनी में भी भाग लेना शुरू कर दिया।
गाँव की महिलाओं के साथ मिल कर पाबिबेन ने अपने काम को बढ़ाने का मन बना लिया और पाबिबेन डॉट कॉम का निर्माण किया। उनके टीम को अहमदाबाद से करीब 70 हजार रूपये का पहला अॉर्डर मिला, जिसे पूरे टीम ने बहुत ही मेहनत से समय पर पूरा कर दिखाया। गुजरात सरकार ने भी उनके काम की सराहना करते हुए बधाई दी और उनका मनोबल बढ़ाया।
हर दिन नए डिजाइनिंग सीखने के प्रयास में लगी रहने वाली पाबिबेन आज 25 प्रकार के अलग-अलग डिज़ाइन पर काम कर रही है और अपने टीम में 60 से भी अधिक महिलाओं को रोजगार दिया है। आज उनके द्वारा चलाई जाने वाली पाबिबेन डॉट कॉम नामक वेबसाइट सालाना 20 लाख रूपये की टर्न-ओवर कर करी है। उनके बनाए गये डिज़ाइन को अब फ़िल्मी पर्दों पर भी जगह मिल रही है। उनकी मेहनत और काम को देखते हुए सरकार ने उन्हें 2016 में ग्रामीण आंत्रेप्रेन्योर बन कर औरों को मदद करने के लिए ‘जानकी देवी बजाज’ पुरस्कार से नवाज़ा है।
पाबिबेन रबारी एक ऐसी निडर और आत्मनिर्भर महिला हैं, जो इस बदलते समाज के लिए मिसाल है। ज़िंदगी में अनगिनत रुकावटों को लांघते हुए उन्होंने शिखर की चोटियों को चूम लिया है। अपने साथ कई ऐसे महिलाओं को उस काबिल बनाया है जो सिर्फ घर के चूल्हे-चौके तक सिमित हो कर रह गयी थीं।
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