फ्रांस-भारत के बीच राफेल खरीद का हंगामा है जो बरपा
आज पूरी दुनिया में शस्र-व्यापार विकसित देशों की कमाई का सबसे बड़ा जरिया बन चुका है। अमेरिका, फ्रांस, चीन, जर्मनी, रूस दुनिया के अन्य मुल्कों को भारी मात्रा में युद्धक साजो सामान बेचकर मालामाल हो रहे हैं। अमेरिका तो दादागिरी से इस कारोबार को हवा दे रहा है। फिलहाल राफेल डील पर भारत में हंगामा मचा हुआ है।
एक अनुमान के मुताबिक आज हथियारों का अन्तरराष्ट्रीय व्यापार लगभग सत्तर बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच चुका है। यह भी गौरतलब है कि आज दुनिया भर में होने वाले हथियारों के गैर-कानूनी व्यापार एवं तस्करी के आसन्न खतरों से समूची मानवता आतंकित है।
आज विश्व में लगभग डेढ़ ट्रिलियन डॉलर सैन्य सामानों पर खर्च किए जा रहे हैं, जो दुनिया के कुल उत्पाद का 2.7 प्रतिशत बताया जाता है। यह शस्त्रों एवं सैन्य प्रौद्योगिकी के निर्माण तथा विक्रय का वैश्विक उद्योग है। इसमें सरकारी और निजी दोनों ही तरह के उद्योग शामिल हैं, जहां व्यापक स्तर सैन्य सामानों पर शोध, उनके विकास, उत्पादन, खरीद-फरोख्त और मरम्मत के कार्य होते हैं। इन शस्त्र उद्योगों में खासकर बंदूक, गोले-बारूद, मिसाइल, सैन्य वायुयान, आधुनिक कवचधारी वाहन, जलयान, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि निर्मित होते हैं। 24 दिसम्बर 2014 से लागू लगभग 85 अरब डॉलर के वैश्विक शस्त्र व्यापार का नियमन करने वाली शस्त्र-व्यापार सन्धि 130 देशों के बीच विश्वस्तरीय एक बहुपक्षीय समझौता है, जो परम्परागत हथियारों के अन्तरराष्ट्रीय व्यापार का नियमन करता है।
एक अनुमान के मुताबिक आज हथियारों का अन्तरराष्ट्रीय व्यापार लगभग सत्तर बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच चुका है। यह भी गौरतलब है कि आज दुनिया भर में होने वाले हथियारों के गैर-कानूनी व्यापार एवं तस्करी के आसन्न खतरों से समूची मानवता आतंकित है। विश्व के विभिन्न आतंकी संगठनों, राज्य विरोधी तत्त्वों एवं मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले अनेक अराजक समूहों के पास उपलब्ध हथियारों के विशाल जखीरे इसी गैर-कानूनी शस्त्र व्यापार का ही नतीजा हैं। इन अवैधानिक क्रिया-कलापों में समय-समय पर दुनिया के कई देशों के नाम उजागर होते रहे हैं और प्रतिषेध के तमाम प्रयासों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शस्त्रों का गैर-कानूनी बाजार लगातार फल-फूल रहा है। इस दिशा में शस्त्रीकरण के प्रभावी नियंत्रण और प्रतिषेध के लिए वर्ष 2003 में नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के एक समूह ने संयुक्त राष्ट्र संघ से एक विनियंत्रण प्रणाली गठित करने की मांग की थी। परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से वर्ष 2006 में शस्त्र व्यापार संधि को प्रस्तावित किया गया।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समय भारत दुनिया का सबसे बड़ा शस्त्र-आयातक देश है। यह चीन और पाकिस्तान से अधिक विदेशों से शस्त्रों की खरीद कर रहा है। वर्ष 2012 से 2016 के बीच दुनिया के कुल आर्म्स इंपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी 13 प्रतिशत रही है। वर्ष 2007 से 2011 और 2012 से 16 के बीच भारत का शस्त्र आयात 43 प्रतिशत बढ़ गया। दुनिया में जगह-जगह शीतयुद्धों के बाद से विगत पांच-छह वर्षों में पश्चिम एशिया और एशिया में शस्र-खरीद में आश्चर्यजनक तेजी आई है। दुनिया के कुल आर्म्स एक्सपोर्ट में रूस की भागीदारी 23 प्रतिशत है और इसका 70 फीसदी निर्यात भारत, वियतनाम, चीन और अल्जीरिया को किया गया है।
इस दौरान अमेरिका एक तिहाई हिस्सेदारी के साथ दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश बन चुका है। इसका करीब-करीब आधा माल मध्य पूर्व के देशों में पहुंच रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक हथियार निर्यात में चीन की हिस्सेदारी 3.8 प्रतिशत से बढ़कर 6.2 प्रतिशत हो चुकी है। चीन अब फ्रांस और जर्मनी की तरह टॉप-टीयर का सप्लायर बन चुका है। विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत का सैन्य बजट कुल जीडीपी का 2.4 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2017-18 के लिए रक्षा व्यय 2,74,114 करोड़ रुपये था, जिसमें पेंशन की राशि शामिल नही है। वर्ष 2012 से 2016 के दौरान सऊदी अरब विश्व का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक देश रहा है। आज सऊदी अरब के शस्त्र आयात में 212 प्रतिशत तक की वृद्धि हो चुकी है।
भारत सरकार ने ढाई सौ अरब डॉलर के बजट के साथ देश में ही लड़ाकू जेट, बंदूकों और पनडुब्बियों के निर्माण का संकल्प लिया है लेकिन अपनी रक्षा जरूरतों के लिए आज भी यह रूस, अमेरिका और इजराइल जैसे देशों पर निर्भर है, जबकि चीन अपनी रक्षा जरूरतों का बहुत बड़ा हिस्सा खुद बनाने के साथ ही वह फ़्रांस, जर्मनी जैसे विकसित देशों को रक्षा सामग्री का निर्यात भी करने लगा है। भारत अपनी रक्षा जरूरतों के लिए 68 प्रतिशत ऐसी खरीदारी रूस से करता है। भारत रूस से मुख्यतः रणनीतिक रक्षा उपकरण एस 400 मिसाइल शील्ड, पनडुब्बियां, ड्रोन आदि खरीदता है। भारत को 14 प्रतिशत रक्षा सामग्री निर्यात करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश अमेरिका है।
अमेरिका से भारत को हरक्यूलिस विमान, अपाचे और चिनूक हेलीकॉप्टर, एम 777 होवित्ज़र बंदूकें, ड्रोन आदि निर्यात होते हैं। वर्तमान में भारत अमेरिका से हथियार खरीदने वाले देशों में नंबर पर है। भारत अपने कुल रक्षा आयात का 8.2 प्रतिशत इजराइल से हवाबाज मिसाइलें, लांचर, संचार प्रौद्योगिकी, ड्रोन आदि आयात कर रहा है। रक्षा क्षेत्र में भारत और फ़्रांस के बीच बहुत मजबूत गठजोड़ है। भारत ने हाल ही में फ़्रांस से 36 राफेल फाइटर जेट का सौदा किया है, जिसको लेकर इस समय पूरे देश की राजनीति में भूचाल आया हुआ है। निवर्तमान वायु सेना प्रमुख अरूप राहा का कहना है कि सिर्फ 36 राफेल लड़ाकू विमान पर्याप्त नहीं। भारत को अपने प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त के लिए तकरीबन 200 से 250 लड़ाकू विमानों की आवश्यकता है।
एक और जहां, कांग्रेस राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर देशभर में हाय तौबा मचाए हुए है, पहली बार फ्रांस के तीन राफेल लड़ाकू विमान भारत आ चुके हैं। उन्हें भारतीय वायुसेना के पायलटों की ट्रेनिंग के लिए ग्वालियर एयरबेस पर उतारा गया। भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच राफेल फाइटर जेट डील सितंबर 2016 में हुई थी। ये सौदा लगभग 60145 करोड़ (7.87 बिलियन यूरो) का हुआ था। संसद के मानसून सत्र में राफेल विमान सौदे को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच हुई गर्मागर्म बहस के बाद कांग्रेस और सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा अब आमने-सामने हैं। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रक्षा फर्म की मदद करने का आरोप लगाया है, जिसका इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है।
अब ये सवाल केंद्र सरकार के गले की हड्डी बन चुका है कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को सौदे से बाहर रखकर अंबानी की अनुभवहीन नवगठित कंपनी को यह डील क्यों थमा दी गई। इस बीच फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा है कि राफेल का निर्माण करने वाली कंपनी डसॉल्ट एविएशन से राफेल सौदे के लिए अंबानी की फर्म का नाम भारत सरकार की तरफ से सुझाया गया था। इधर, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दावा किया है कि राफेल लड़ाकू विमान सौदा ‘इतना बड़ा घोटाला है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।’
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