Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

निताईदास मुखर्जी हैं कोलकाता के कैलाश सत्यार्थी

बचपन से ही मन में था समाजसेवा का जज्बाआयरलैंड के होप फाउंडेशन के सहयोग से शुरू किया ‘‘हाईव इंडिया’’ एनजीओस्वामी विवेकानंद और नेताजी सुभाष हैं प्रेरणास्त्रोतजरूरतमंदों की सेवा को बनाया जीवन का ध्येय

निताईदास मुखर्जी हैं कोलकाता के कैलाश सत्यार्थी

Monday March 23, 2015 , 8 min Read

घर के पास पार्क में फुटबाॅल खेलते हुए करीब 10 वर्ष की उम्र के दो बच्चों की नजर अपने हमउम्र चिथड़ों में लिपटे एक बच्चे पर पड़ती है और दोनों का दिल पसीज जाता है। दोनों बच्चे अपने जेबखर्च से उस बच्चे की सहायता करने की ठानते हैं और उसका पेट भरने का इंतजाम करते हैं।

उस गरीब मासूम की सहायता करने वाले बच्चों में से एक थे निताईदास मुखर्जी। बचपन से ही दूसरों के दुख को सुख में बदलने का जज्बा रखने वाले निताईदास आज कोलकाता और आसपास के इलाके में सामाजिक सेवा करने वालों के बीच एक जाना-माना नाम हैं। यहां होने वाले समाजसेवा के हर अभियान में इनका और इनकी एनजीओ का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।

कई वर्ष पूर्व निताईदास और उनके मित्र स्व डा राकेश अग्रवाल ने दूसरों की सहायता करने का एक सपना देखा था। इस सपने को धरातल पर लाने के लिये एक एनजीओं ‘‘हाईव इंडिया’’ का गठन किया गया।

image

आज के समय में इस एनजीओ के 15 पूर्णकालिक सदस्य कोलकाता के सभी 79 पुलिस थानों के सहयोग से करीब 216 वर्ग किलोमीटर के इलाके में जरूरतमंदों के लिये काम करते हैं। इस काम में इन लोगों का साथ राज्य के विभिन्न सरकारी महकमे भी देते हैं जिनमें विशेष बाल पुलिस बल, आपदा प्रबंधन समिति, महिला शिकायत प्रकोष्ठ, बाल संरक्षण समिति सहित कोलकाता और आसपास के जिलों के अग्निशमन ओर आपातकालीन विभाग मुख्य हैं।

करीब 20 वर्ष पूर्व ‘‘हाईव इंडिया’’ की नींव रखने से पहले निताईदास अपने स्तर पर जरूरतमंदों की सेवा के काम में लगे रहते थे।

हम लोगों ने निताईदास से उनके इस सफर के बारे में विस्तार से बात कीं और उन्होंने अपने अब तक के जीवन के बारे में खुले दिल से बताया।

पहले आप हमारे पाठकों को अपने बारे में कुछ बताइये

मेरे पिता खुद एक मशहूर समाजसेवी रहे हैं और बचपन से ही घर के माहौल में दूसरों की सेवा का भाव देखा और महसूस किया। पिताजी के बाद स्वामी विवेकानंद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेरे जीवन के प्रेरणास्त्रोत रहे हैं। बचपन से ही स्वामी विवेकानन्द के कहे शब्द ‘‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाए’’ मेरे मन-मस्तिष्क में बस गए। हालांकि छात्र जीवन के दौरान भी मैं अपने स्तर पर जरूरतमंदों की सहायता करने का कोई मौका नहीं छोड़ता था लेकिन स्नातक की पढ़ाई के दौरान मैंने इसे अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।

1989-90 के दौरान मैंने अपने जैसे कुछ जुनूनी लोगों को साथ लेकर एक संगठन बनाया। हम लोगों ने एक बहुत पुरानी एम्बुलेंस का इंतजाम किया और शहर की सड़कों पर दम तोड़ते लोगों की जान बचाने की कोशिश शुरू की। उसी दौरान मेरी मुलाकात सिनी (चाईल्ड इन नीड इंडिया) के संस्थापक डा. समीर चैधरी से हुई, जिन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया। सिनी के सहयोग से मैंने कुछ समय के लिये गरीबों के लिये सड़क किनारे एक दवाखाना शुरू किया। लेकिन एक बार सिनी ने हाथ खींचा तो हमारा यह दवाखाना बंद हो गया और कुछ समय के लिये हमारा यह अभियान रुक गया।

इसके बाद 1999 में मैंने अपना एनजीओ शुरू करने का फैसला किया और आयरलैंड के होप फाउंडेशन के सहयोग से ‘‘हाईव इंडिया’’ की नींव डाली।

‘‘हाईव इंडिया’’ के द्वारा किन गतिविधियों को संचालित किया जाता है?

हाईव के द्वारा मेरा लक्ष्य है अधिक से अधिक लोगों के जीवन को बचाना और लोगों के अंधेरे जीवन में रोशनी का दीपक जलाना। हम लोग दूसरों की जिंदगी में खुशी लाने वाले कई काम कर रहे हैं। प्रारंभ में हमारा सिर्फ एक ही लक्ष्य था आपातकालीन स्थिति में फंसे किसी भी व्यक्ति की सहायता करना, लेकिन अब हम उससे काफी आगे का रास्ता तय कर चुके हैं।

जरूरतमंद परिवारों का पुनर्वास: एक बार रेलवे स्टेशन के पास की झुग्गी बस्ती में भयंकर आग लग गई जिसमें पूरी बस्ती जलकर राख हो गई। हम लोगों ने मौके पर जाकर 500 से अधिक पीडि़त परिवारों को चिकित्सा कैंप लगाकर और वहां पर स्कूल खोलकर पुनर्वासित किया। हम लोगों ने उस इलाके में 10 जगहों पर चिकित्सा कैंप लगाए और उन लोगों को मुख्यधारा में वापस लाए।

बाल सुरक्षा: हम लोग बाल सुरक्षा के मुद्दे पर भी लगातार प्रयत्नशील रहे हैं और नाबालिगों से जुड़ी समस्याओं पर काम करते रहे हैं। हम लोग बच्चों से जुड़े मुद्दों को लेकर काफी संवेदनशील रहते हैं और इस तरह के मामलों में अधिकतर स्थानीय पुलिस की सहायता लेने से भी नहीं चूकते हैं। सर्दियों के मौसम में आधी रात को हमें सड़क पर एक छोटी बच्ची रोती हुई मिली। उसी रात से हमने शहर के संवेदनशील इलाकों की सड़कों पर घूमना शुरू किया और कई मासूमों की जिंदगियों को बचाने में अपना योगदान दिया। बच्चों की सहायता के लिये हम बाल संरक्षण समिति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं।

इसके अलावा हमारा पूरा प्रयास बच्चों और महिलाओं की होने वाली तस्करी को रोकने पर भी लगा रहता है और हम लोग इस दिशा में कई जागरुकता कार्यक्रम चलाने के अलावा बचाव तंत्र को भी विकसित करने में प्रयासरत हैं। इस तरह से हम कई बच्चों और महिलाओं के जीवन को बचा चुके हैं।

अपातकालीन प्रतिक्रिया इकाई: इमरजेंसी रिस्पाँस यूनिट हमारा मुख्य हथियार है। हम लोग मुसीबत में फसे किसी भी व्यक्ति की सहायता के लिये 24 घंटे तत्पर हैं। इस दिशा में हम लोग विभिन्न माध्यमों का साथ लेकर आगे बढ रहे हैं और अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं।

हम लोगों का मुख्य ध्येय मुसीबत में फसे लोगों को बचाना, गरीब बच्चों की सहायता करना और आपदा के समय में बचाव कार्य करना है। इसके अलावा हम लोग स्थानीय पुलिस की मदद से सड़कों पर रहने वाले मानसिक विक्षिप्त बच्चों की मदद के काम को भी अंजाम देते हैं।

भविष्य में हमारी योजना कोलकाता पुलिस की मदद से एक आपातकालीन रात्रि आश्रयस्थल खोलना है जो मुख्यतः गरीब महिलाओं के लिये बहुत कारगर रहेगा।

आप लोगों को इन कामों के लिये अर्थिक यहायता कहां से मिल रही है?

हम लोगों की आर्थिक मदद मुख्यतः तो आयरलैंड की होप फाउंडेशन ही करती है। इसके अलावा कई बड़ी कंपनियां अपनी सीएसआर (काॅरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी) का कुछ हिस्सा हम लोगों के कामों में खर्च करते हैं। साथ ही बड़ी संख्या में आमजन अपने समय और धन के द्वारा हमारा मनोबल बढ़ाते हैं।

अबतक के सफर में आई कुछ चुनौतियों के बारे में चर्चा करें तो....

सेवा के रास्ते में कदम-कदम पर कांटे ही कांटे बिछे हुए है। मेरे अबतक के अनुभव के आधार पर आम जनता के मन में अपने लिये विश्वास पैदा करना सबसे बड़ी चुनौती रहा। इसके अलावा हम लोगों के पास मौजूद विकल्पों के अनुपात में हमारे काम करने का दायरा बहुत बड़ा है। इस काम के लिये विभिन्न सरकारी महकमों के साथ सामंजस्य बिठाना भी अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती साबित हुआ है।

शुरू के दो से तीन साल तो हमें पुलिस को अपने साथ काम करने के लिये तैयार करने में लगे क्योंकि वे लोग हमारे प्रयासों को लेकर काफी सशंकित थे। लेकिन लोगों की सेवा के प्रति हमारा समर्पण भाव देखकर जल्द ही उन सरकारी विभागों को हमारे प्रयासों पर भरोसा हुआ।

इसके अलावा सरकारी असपतालों के साथ काम करना हमारे लिये काफी कठिन साबित हुआ। हम लोग किसी जरूरतमंद को लेकर अस्पताल जाते तो डाॅक्टर बड़ी मुश्किल से उसका इलाज करने के लिये तैयार होते। शुरू के दौर में मेरे लिये डाॅक्टरों को सेवा के प्रति अपना समर्पण और मरीज के प्रति उनकी निष्ठा को समझाने में काफी दिक्कत हुई लेकिन आखिर में जीत मेरी ही हुई।

एक बार की बात है, मैं एक मरीज को लेकर सरकारी अस्पताल में रात के 11 बजे से अगले दिन सुबह 6 बजे तक बैठा रहा क्योंकि उस मरीज की स्थिति को देखकर कोई भी डाॅक्टर उसका इलाज करने को तैयार नहीं था। आखिरकार मेरे समर्पण को देखते हुए एक डाॅक्टर सामने आया और उस मरीज का इलाज शुरू हुआ।

क्या आप इस तरह के कुछ सहयोगात्मक कार्यों के उदाहरण साझा करना चाहेंगे?

हमारे द्वारा बचाए गए व्यक्तियों में से कई की गुमशुदगी पुलिस के कागजों में दर्ज थी। उनमें से कुछ का अपहरण किया गया था तो कुछ घर से लापता होकर अपना रास्ता भटक गए थे। इसके अलावा कई बुजुर्गों और मानसिक विक्षिप्तों को भी हमने बचाया है। इस काम के लिये हम लोग पुलिस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लगातार प्रयत्नशील रहते हैं।

करीब पाँच साल पहले दुर्गा पूजा के दौरान हम लोगों ने एक अपहृत लड़की को बचाने में मदद की थी। मेरे ख्याल से वह लड़की अपहरणकर्ताओं के चंगुल से भाग निकली थी। चूंकि उन दिनों लगभग सारी पुलिस दुर्गा पूजा का शांतिपूर्वक आयोजन करवाने में व्यस्त थी इसलिये हमें उस लड़की को उसके परिवार तक पहुंचाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। इस घटना के बाद से हमने इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिये पुलिस के सहयोग से एक कार्ययोजना तैयार की है।

इस काम के लिये हमने पुलिस और अपने कार्यकर्ताओं के सहयोग से लापता बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा के लिये एक आकस्मिक दस्ता तैयार किया है। यह दस्ता प्राथमिक उपचार किट, कपड़ों, कंबलों और खिलौनों इत्यादि से लैस है। पिछले वर्ष दुर्गा पूजा के समय हमारे इस तरह के दस्ते कार्यशील रहे और कई लोगों की मदद करने में कामयाब हुए।