साढ़े चार हजार करोड़ का कालाधन बना गले की हड्डी
नोटबंदी के दौरान काला धन सफेद करने वाली फर्जी कंपनियों पर केंद्र सरकार 'न्यू कंपनी एक्ट' के सेक्शन 447 में एक प्रावधान जोड़ने के बाद शिकंजा कसने जा रही है।
एक शीर्ष अधिकारी के मुताबिक मुखौटा कंपनियों की श्रेणी में रखे जाने से गलत धारणा बनी है कि कुछ बड़ी कंपनियां भी मनी लांड्रिंग तथा अवैध धन को वैध बनाने के लिये मंच उपलब्ध कराकर मुखौटा कंपनी के रूप में काम कर रही हैं।
सेबी के अलावा इन कंपनियों की जांच आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय तथा गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय भी कर रहे हैं। इनमें से कई कंपनियों पर नोटबंदी के बाद नकदी लेन-देन में शामिल होने का संदेह है।
नोटबंदी के दौरान काला धन सफेद करने वाली फर्जी कंपनियों पर केंद्र सरकार 'न्यू कंपनी एक्ट' के सेक्शन 447 में एक प्रावधान जोड़ने के बाद शिकंजा कसने जा रही है। मिनिस्ट्री ऑप कॉर्पोरेट अफेयर्स और राजस्व विभाग से प्राप्त रिपोर्टों को आधार बनाते हुए ऐसी कंपनियों के खिलाफ क्रिमिनल एक्शन होने वाला है। जो भी कंपनियां फ्रॉड में पकड़ी जाएंगी, उनके जिम्मेदारों को तीन से 10 साल तक की सजा मिल सकती है। गौरतलब है कि नोटबंदी के दौरान लगभग छह हजार फर्जी कंपनियों की आड़ लेकर ही साढ़े चार हजार करोड़ का कालाधन सफेद किया गया था।
ऐसी 5800 से ज्यादा कंपनियों की जानकारी 13 बैंकों के माध्यम से केंद्र सरकार तक पहुंची थी। तभी पता चला था कि फर्जीबाड़ा करने वाली कंपनियों में से कई एक के तो सौ से ज्यादा खाते रहे हैं। नौटबंदी के दौरान उन खातों में 4573 करोड़ रुपए जमा कर दिए गए। हैरतअंगेज है कि एक कंपनी के तो 2134 खातों की जानकारी मिली है। सरकार दो लाख से ज्यादा कंपनियों के रजिस्ट्रेशन पहले ही रद्द कर चुकी है। इसके साथ ही ऐसी फर्जी कंपनियों के 55,000 से अधिक निदेशकों के नाम सार्वजनिक कर दिए गए हैं।
ऐसी कंपनियां या तो व्यापार नहीं कर रहीं अथवा अपने वित्तीय ब्योरे वार्षिक रिटर्न में छिपाती रही हैं। 'रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज' की सूचना के मुताबिक, चेन्नई, अहमदाबाद, एर्नाकुलम, कटक, गोवा, शिलांग आदि में ऐसे हजारों निदेशकों के नाम सार्वजनिक किए जा चुके हैं। दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ में 'रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज' ने ऐसी सूचियां प्रकाशित नहीं की हैं। गौरतलब होगा कि फर्जी कंपनियों के इस मामले में फिल्म जगत की हस्तियां, बड़े-बड़े बिल्डर और ब्रोकर भी जांच के घेरे में हैं। अवैध धन को वैध बनाने में इनकी भी आपराधिक भूमिका का पता लगाने में कई जांच एजेंसियां आज भी जुटी हुई हैं।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ने उन 331 सूचीबद्ध इकाइयों को कारण बताओ नोटिस भी जाने कब का जारी कर दिया है, जिन पर मुखौटा कंपनियों के रूप में धन के लेन देन का काम करने का संदेह है। इसके अलावा 100 गैर-सूचीबद्ध इकाइयों के खिलाफ भी कार्रवाई चल रही है। सेबी ने संदिग्ध मुखौटा कंपनियों के शेयरों में कारोबार पर पाबंदी का निर्णय तो कर लिया लेकिन कुछ कंपनियों ने इस मामले को प्रतिभूति एवं अपीलीय न्यायाधिकण (सैट) में चुनौती दे दी। न्यायाधिकरण ने इन कंपनियों के पक्ष में फैसला सुनाया और मामले में जांच आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी ताकि यह पता लगाया जा सके कि इन्होंने प्रतिभूति नियमों का उल्लंघन किया या नहीं। इनमें से कई कंपनियों ने सार्वजनिक रूप से बयान जारी कर किसी प्रकार की गड़बड़ी से इनकार किया और जोर देकर कहा कि वे मुखौटा कंपनियां नहीं हैं।
एक शीर्ष अधिकारी के मुताबिक मुखौटा कंपनियों की श्रेणी में रखे जाने से गलत धारणा बनी है कि कुछ बड़ी कंपनियां भी मनी लांड्रिंग तथा अवैध धन को वैध बनाने के लिये मंच उपलब्ध कराकर मुखौटा कंपनी के रूप में काम कर रही हैं। कई छोटे ब्रोकर संदिग्ध मुखौटा कंपनियों की सूची में हैं। उनके बड़े ब्रोकरेज समूह से जुड़ाव की जांच सेबी कर रहा है। कुछ ब्रोकरों की भूमिका जांच के घेरे में आने से शेयर बाजार में अफरा-तफरी जैसी स्थिति हो जाया करती है।
सेबी के अलावा इन कंपनियों की जांच आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय तथा गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय भी कर रहे हैं। इनमें से कई कंपनियों पर नोटबंदी के बाद नकदी लेन-देन में शामिल होने का संदेह है। उनमें से कुछ के नाम सार्वजनिक नहीं किये गये हैं। इसका कारण मामले की संवेनशीलता और जांच प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करना बताया जा रहा है। बड़ी संख्या में जिन कंपनियों ने मुखौटा कंपनियों के रूप में काम किया, वे जमीन-जायदाद, जिंस और शेयर ब्रोकिंग, फिल्म और टेलीविजन, प्लांटेंशन और गैर-बैंकिंग वित्तीय सेवाओं से संबद्ध इकाइयों से जुड़ी हैं। संदिग्ध कंपनियों से इन संपर्कों और सभी संदिग्ध लेन-देन के बारे में जानकारियां तलब की जा रही हैं।
नोटबंदी के दिनो में अपना कालाधन सफेद करने के लिए फिल्म-टीवी जगत और रियल के नवधनाढ्यो ने भांति-भांति के क्रिया-कलाप किए। उनमें कइयों को सबसे आसान तरीका यह लगा कि उन्होंने नकदी का कुछ हिस्सा बैंकों में जमा करवा दिया क्योंकि वित्त मंत्रालय ने 2.50 लाख रुपए तक की जमा राशि पर छूट दे रखी थी। किसी ने ब्लैक मनी मंदिर के डोनेशन बॉक्स में डाल दी और मंदिर प्रबंधन ने उस पैसे को गुमनाम दान में दिखा दियाकर उसे नई करेंसी से बदल दिया और इस सेवा के लिए कमीशन ले लिया। किसी ने कालाधन खंपाने के लिए बैक डेट में कुछ वित्तीय संस्थानों से फिक्स्ड डिपॉजिट की रसीद ले ली।
किसी ने गरीबों को बैंकों के बाहर लाइन में लगवाकर कालाधन उनके खातों में (2.50 लाख रुपए तक) जमा करवा कर सफेद कर लिया तो कुछ पैसे वालों ने गरीबों को ब्याज मुक्त कर्ज में बांट दिया। इसी तरह किसानों का भी इस्तेमाल किया गया। इस अवैध लेन-देन में जन-धन खाताधारक भी रहे। हालात ये हो चले कि तरह तरह के नोट माफिया सक्रिय हो उठे। ऐसे माफिया को 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों के बदले 15 से 80 फीसदी तक रकम दी जाने लगी। नोटबंदी से बचने के लिए खासकर व्यापारियों ने अपने कर्मचारियों को एडवांस में कई-कई महीने की सैलरी बांट दी। रेलवे में 14 नवंबर तक पुराने नोट स्वीकार किए जाने की खबर मीडिया मिलते ही तमाम लोगों ने अंधाधुंध टिकट कटा लिए ताकि बाद में कैंसल कराकर नए नोट हासिल कर लें।
मनी लॉन्ड्रिंग कंपनियों का भी खूब इस्तेमाल हुआ। उसी दौरान सोने की कीमतों में तेज उछाल दिखा तो पुरानी करेंसी खपाने के लिए ज्वैलरी शो रूम पर जमावड़े होने लगे। जब पता चला कि राजनीतिक पार्टियां किसी से भी बीस हजार रुपए तक का डोनेशन ले सकती हैं और वह भी दानकर्ता का नाम बताए बगैर, तो ऐसे सियासी ठिकानों पर भी लेन-देन करने वालों के मजमे लग गए। अब सरकारी एजेंसियां ऐसे माध्यमों को खंगालने में जुटी हैं।
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