परिवार की जिम्मेदारी के बावजूद इस महिला ने शुरू की कंपनी, 5 सालों में 300 प्रतिशत तक बढ़ा रेवेन्यू
देबादत्ता ने इतनी मशरूफ़ियत के बाद भी बिज़नेस शुरू करने का फ़ैसला लिया और अपने इरादे को पूरा करके दिखाया। उन्होंने 'टाइमसेवर्ज़' ( Timesaverz) नाम से एक स्टार्टअप की शुरुआत की।
फ़र्नीचर रिपेयरिंग से लेकर पेस्ट कंट्रोल तक की सर्विसेज़ मुहैया कराने वाला मुंबई का यह स्टार्टअप 2013 में शुरू हुआ था। कंपनी का दावा है कि पिछले 5 सालों में उन्होंने 300 प्रतिशत बढ़ोतरी की है। साथ ही, वे यह भी मानते हैं कि यहां तक का सफ़र बिल्कुल भी आसान नहीं रहा।
एक महिला, जिसके पास परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ करियर को बेहतर बनाने का लक्ष्य भी हो, उसके लिए रोज़ अपने लिए समय निकालना कितना मुश्किल होता है, इसका अंदाज़ा, उस महिला के अलावा और कोई भी नहीं लगा सकता। हफ़्ते के 5 दिन कॉर्पोरेट लाइफ़ के हवाले करने के बाद, वीकेंड पर ही वह अपने बारे में कुछ सोच पाती है। लेकिन यह समय भी सिर्फ़ उसका अपना नहीं होता और परिवार की उलझनों को सुलझाने में यह वक़्त भी निकल जाता है। सिंगल वर्किंग महिलाओं की ज़िंदगी का अक्सर यही फ़लसफ़ा होता है। कुछ ऐसी ही कहानी थी, देबादत्ता उपाध्याय की।
देबादत्ता ने इतनी मशरूफ़ियत के बाद भी बिज़नेस शुरू करने का फ़ैसला लिया और अपने इरादे को पूरा करके दिखाया। उन्होंने 'टाइमसेवर्ज़' ( Timesaverz) नाम से एक स्टार्टअप की शुरुआत की, जो घर के छोटे-छोटे काम जैसे कि बिजली के उपकरण बनवाने, प्लंबिंग का काम करवाने, फ़र्नीचर की मरम्मत करवाने और पेस्ट कंट्रोल समेत अलग-अलग सर्विसेज़ बुक करने में उपभोक्ताओं की मदद करता है।
इस स्टार्टअप का आइडिया देबादत्ता को कहां से आया, इस संबंध में बात करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार उनके किचन के नल से पानी चूने लगा था। वह लगातार प्लंबर को फ़ोन मिलाती रहीं, लेकिन प्लंबर अगले दिन नल ठीक करने के लिए आया। इस घटना के बारे में उन्होंने अपनी साथी लवनीश भाटिया को बताया। विचार करने के बाद दोनों ने टाइमसेवर्ज़ का आइडिया निकाला। उनका उद्देश्य था कि एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म विकसित किया जाए, जहां पर लोग अपनी ज़रूरत के हिसाब से होम सर्विसेज़ बुक करा सकें। वे चाहते थे कि ग्राहक ऐप या वेबसाइट के माध्यम से बुकिंग करा सकें या फिर सीधे कस्टमर केयर पर बात करके बुकिंग करा सकें।
फ़र्नीचर रिपेयरिंग से लेकर पेस्ट कंट्रोल तक की सर्विसेज़ मुहैया कराने वाला मुंबई का यह स्टार्टअप 2013 में शुरू हुआ था। कंपनी का दावा है कि पिछले 5 सालों में उन्होंने 300 प्रतिशत बढ़ोतरी की है। साथ ही, वे यह भी मानते हैं कि यहां तक का सफ़र बिल्कुल भी आसान नहीं रहा।
कंपनी की असाधारण विकास दर का श्रेय देबादत्ता अपने साधारण बिज़नेस मॉडल को देती हैं। उनका कहना है कि कंपनी सामान्य सा कमीशन आधारित बिज़नेस मॉडल अपनाती है और इसलिए ही वे लगातार आगे बढ़ रहे हैं। कंपनी का मानना है उनका रेवेन्यू मॉडल बीटूबी और बीटूसी बिज़नेस मॉडल्स का मिश्रण है।
देबादत्ता बताती हैं, "शुरुआत में कोई भी नहीं चाहता था कि कंपनी बीटूबी बिज़नेस मॉडल अपनाए, लेकिन हम चाहते थे कि हमारा सर्विसेज़ सीधे ग्राहकों तक पहुंचे और हमें भरोसा भी था कि एक दिन मार्केट में हमारे लिए पर्याप्त संभावनाएं खुलकर सामने आएंगी।" देबादत्ता ने जानकारी दी कि कंपनी सर्विस पार्टनर से कमिशन का 75 प्रतिशत हिस्सा शेयर करती है और शेष 25 प्रतिशत कंपनी के खाते में जाता है। कंपनी अभी तक 1 लाख से भी अधिक उपभोक्ताओं तक अपनी सर्विसेज़ पहुंचा चुकी है।
हाल में, कंपनी के 1,000 सर्विस देने वाले कर्मचारी हैं। 2013 से लेकर अभी तक कंपनी ने हमेशा अपना वर्कफ़ोर्स बढ़ाने पर ख़ास ध्यान दिया है। कंपनी सिर्फ़ सर्विस देने वाले कर्मचारियों को काम ही नहीं दे रही, बल्कि उनके स्किल्स बढ़ाने में भी उनकी मदद कर रही है ताकि उन्हें सालभर काम मिल सके। उदाहरण के तौर पर अगर कोई व्यक्ति एसी की मरम्मत का काम जानता है तो उसे सिर्फ़ एक मौसम में ही काम मिलता है और बाक़ी सालभर उसके पास काम की किल्लत होती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए कंपनी ऐसे कर्मचारियों को बाक़ी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ठीक करने की जानकारी भी देती है ताकि उनके पास कभी भी काम की कमी न रहे।
देबादत्ता साहित्य की विद्यार्थी रही हैं, लेकिन उन्होंने सेल्स और मार्केटिंग के क्षेत्र में काम करने का फ़ैसला लिया। वह टाइम्स ऑफ़ इंडिया और याहू (Yahoo) के लिए काम कर चुकी हैं। वहीं लवनीश के पास एनडीटीवी, वायकॉम 18 और सोनी जैसे बड़े समूहों के लिए डिजिटल प्रोडक्ट्स डिवेलप करने का अनुभव है। सेल्स, मार्केटिंग और नेटवर्किंग के क्षेत्रों में दोनी ही फ़ाउंडर्स का अच्छा अनुभव है और इसका उपयोग वे अपने स्टार्टअप को आगे बढ़ाने में कर रही हैं। हाल में, उनके स्टार्टअप के पास 35 लोगों की कोर टीम है।
देबादत्ता ने जानकारी दी कि कंपनी के वर्कफ़ोर्स में 50 प्रतिशत महिलाएं हैं। वह बताती हैं कि किसी को भी काम पर रखने से पहले उसका बैकग्राउंड और क्रिमिनल रेकॉर्ड जांच लिया जाता है और इसके बाद, उन्हें परीक्षाओं के कई चरणों से गुज़रना होता है।
आंकड़ों के मुताबिक़, भारत का होम सर्विसेज़ सेक्टर 15 बिलियन डॉलर का है और इसमें अपार संभावनाएं हैं। इस सेक्टर में काम करने वाली ज़्यादातर कंपनियां मेट्रो शहरों को ही तवज्जोह देती हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अभी भी इस बाज़ार में स्थानीय कामगारों का ही वर्चस्व है और असंगठित होने की वजह से इस क्षेत्र में स्किल्ड लेबर की काफ़ी कमी है। ग्राहकों की बढ़ती मांग को देखते हुए लगातार कई सर्विस प्रोवाइडर्स अब इस क्षेत्र में कदम रख रहे हैं।
कंपनी को जीएसएफ़ ऐक्सीलरेटर, एक कॉन्सोर्टियम (कंपनियों का एक समूह) और यूनीलेज़र वेंचर्स के रॉनी स्क्रूवाला की ओर से निवेश मिल चुका है। फ़िलहाल कंपनी अन्य किसी निवेश की प्लानिंग नहीं कर रही है। हाल में, कंपनी मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, हैदराबाद, दिल्ली और चेन्नई में अपनी सुविधाएं मुहैया करा रही है। देबादत्ता फ़िलहाल और किसी भी शहर में कंपनी लॉन्च करने के बारे में नहीं सोच रही हैं, लेकिन वह सुविधाओं के पोर्टफ़ोलिया में कुछ सर्विसेज़ और जोड़ना चाहती हैं।
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