उबाऊ होती शिक्षा को एक मजेदार अनुभव बनाने की कामयाब कोशिश 'इंफाइनाइट इंजिनियर्स'
क्या आप भी यह मानते हैं कि क्लास में पीछे बैठने वाले छात्र पढ़ाई में कमजोर होते हैं? क्या पीछेे बैठने वाले छात्र जिंदगी में पीछे ही रह जाते हैं? या वे कुछ नया करने के लायक नहीं होते? अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप बिल्कुल गलत हैं। क्योंकि कई ऐसे लोग हैं जो हमेशा क्लास में पीछे बैठे लेकिन अपनी नवीन सोच और आइडिया ने उन्हें जिंदगी में सफल बना दिया।
एमसी जयकांत बचपन से उन बच्चों में शुमार रहे जो क्लास में हमेशा अपने लिए पीछे वाली सीट की तलाश मेें रहते हैं। क्लास में हमेशा उन्होंने औसत अंक ही पाए। स्कूल के बाद उन्होंने एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमीशन लिया। जब वे इंजीनियरिंग के तीसरे साल में थे तब छात्रों को डिज़ाइन और फ्रैब्रिकेशन के अंतर्गत प्रोजेक्ट्स दिए गए। जयकांत ने सोच क्यों न कुछ अलग बनाया जाए जो किसी ने न बनाया हो। कुछ नया करने की इच्छा मन में लेकर जयकांत ने ब्लेडलेस विंड टर्बाइन विषय को अपना प्रोजेक्ट चुना और अपना प्रोजेक्ट बनाया। कुछ समय बाद एक दिन जयकांत को उनके दोस्त ने बताया कि सेमिनार हॉल में प्रोजेक्ट की प्रेजेंटेशन चल रही है। फिर वे लोग भी सेमिनार हॉल पहुंच गए और पीछे जाकर बैठ गए ताकि उनका समय एक एसी हॉल की ठंडक में आसानी से कट सके और उन पर किसी का ध्यान भी न जाए। लेकिन एक स्टाफ कर्मचारी ने उन्हें वहां देख लिया और फिर जयकांत ने उन्हें बताया कि उनका प्रेजेंटेशन भी तैयार है और वे पे्रजेंटेशन देने आए हैं। जयकांत ने सोचा कि वे उनकी बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेंगे लेकिन थोड़ी ही देर बाद जब जयकांत का नाम पुकारा गया तो वे हैरान रह गए और थोड़ा घबरा भी गए। फिर किसी तरह उन्होंने खुद को बैलेंस किया और स्टेज पर आ गए। जहां उन्होंने पांच मिनट में अपना प्रेजेंटेशन दिया। लगभग एक सप्ताह बाद जयकांत को पता चला कि उस दिन के सभी प्रेजेंटेशन्स में जयकांत के प्रेजेंटेशन को सबसे अधिक अंक मिले हैं। यह खबर सुनकर जयकांत बहुत हैरान हो गए। जयकांत ने इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। बार-बार वे खुद से यही सवाल कर रहे थे कि यह कैसे हो गया? जयकांत की इस हैरानी की एक वजह यह भी थी कि जिंदगी में पहली बार वे किसी परीक्षा में प्रथम आए थे। बेशक किसी प्रेजेंटेशन में पहले स्थान पर आना कोई इतनी बड़ी घटना नहीं है लेकिन जयकांत के लिए यह पल उनकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट बन गया। उसके बाद जयकांत ने खुद से सवाल करने शुरु किए। खुद को टेस्ट करना शुरु किया और फिर सारे कॉलेज व और इंटर कॉलेज प्रेजेटेंशन में भाग लेना शुरु कर दिया।
इस दौरान जयकांत अपने दोस्त के साथ गोवा गये और जब वे गोवा से वापस चेन्नई लौट रहे थे कई तरह के विचार उनके दिमाग में आते जा रहे थे। चेन्नई लौटते ही उन्होंने तय किया कि अब उनके दिमाग में जैसे ही कोई क्रिएटिव आइडिया आएगा वे सभी आइडियाज को नोट करते चले जाएंगे और उन आइडियाज पर काम करेंगे। साथ ही जयकांत के दिमाग में यह सवाल भी बार-बार खड़ा हो रहा था कि आखिर क्यों आज के छात्र कुछ अलग नहीं सोच रहे हैं? क्यों वे केवल वही काम कर रहे हैं जो सालों से सभी करते आ रहे हैं? और आखिर क्यों वे खुद को केवल वहीं तक सीमित रखना चाहते हैं? जबकि सभी छात्र पढ़ने में अच्छे हैं। जयकांत इसका उत्तर पाना चाहते थे। आखिरकार उन्होंने खुद इसका जवाब भी खोजा और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस सब की वजह हैं हमारे स्कूल और शिक्षा देने का हमारा पुराना तरीका। हमारे स्कूल शुरु से बच्चे को केवल पढ़ने में ज़ोर देते हैं कुछ नया सीखने पर नहीं। ज्यादा अंक लाने के चक्कर में किसी का ध्यान इस ओर नहीं जाता कि बच्चे ने सीखा क्या। क्या केवल पढ़कर या रटकर अच्छे अंक लाना ही शिक्षा प्राप्त करना है? क्या अच्छे अंक लाने की होड़ में हम उस आनंद से वंचित नहीं हो रहे जो सच में हमें पढ़ते समय आना चाहिए?
अब जयकांत को अपने सवाल का जवाब मिल चुका था, और इसी जवाब को जयकांत ने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। अब वे नई पीढ़ी के लिए इस दिशा में तर्कसंगत तरीके से काम करना चाहते थे। छात्र जो भी पढ़े उसे तर्कसंगत तरीके से व्यवहारिक तौर पर करे जिससे उसे पढ़ाई में भी मज़ा आए और उसे सभी विषय आसानी से समझ भी आएं। शिक्षा का मतलब केवल अच्छे अंक लाने तक सीमित न हो बल्कि उसका सही इस्तेमाल हो। जब जयकांत ने इस विचार को अपने दोस्तों के साथ शेयर किया तो सभी तुरंत इस विषय पर काम करने को तैयार हो गए। फिर जयकांत ने अपने दोस्त हरीश के साथ १५ सिंतबर २०१३ में 'इंफाइनाइट इंजिनियर्स' की शुरुआत की।
'इंफाइनाइट इंजिनियर्सÓ का मकसद व्यवहारिक विज्ञान को जमीनी स्तर यानी उनका प्रयोग करके छात्रों के समक्ष सरल तरीके से समझाकर पेश करना था ताकि बच्चे भी कुछ नया सोचें और उनका दृष्टिकोण रचनात्मक हो सके।
जयकांत और हरीश के अलावा एस जयविगनेश, ए किशोर बालागुरु और एन अमरीश भी 'इंफाइनाइट इंजिनियर्स' के सह संस्थापक हैं। वर्तमान में यह लोग कई ट्रेनिंग सेंटर्स, रोबोटिक और ऐरो मॉडलिंग की शिक्षा स्कूल स्टूडेंटस को दे रहे हैं। इंफाइनाइट इंजीनियर्स का मकसद स्कूल के सिलेबस के साथ जुड़कर छात्रों को बेहतरीन शिक्षा अनुभव देना है जो छात्रों के लिए उपयोगी हो। मकसद शिक्षा को किताबों या ब्लैकबोर्ड तक सीमित न रखते हुए उसके प्रैक्टिकल इंप्लीमेंटेशन से उसे समझाना है। शिक्षा को बोझ नहीं बल्कि मजेदार अनुभव बनाना है।
कंपनी ने शुरुआत दो स्कूलों से की थी, लेकिन आज यह चेन्नई के लगभग अस्सी स्कूलों में काम कर रही है। जल्दी ही कंपनी अप्लाइड साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट बनाने की दिशा में काम कर रही है ताकि किसी भी स्कूल का छात्र यहां आकर शिक्षा प्राप्त कर सके और अपने क्रिएटिव आइडियाज से सफलता की नई ऊंचाईयों को छू सके।
सफलता का श्रेय -
कंपनी के सभी लोग अपनी सफलता का श्रेय उन लोगों को देना चाहते हैं जो उनकी आलोचना करते हैं क्योंकि यही आलोचना कंपनी को और बेहतर करने की प्रेरणा देती है। एक बार कंपनी के प्रयासों को लेकर एक प्रोफेसर ने कहा कि इंफाइनाइट इंजीनियर्स एक व्यर्थ का प्रयास है जो चलने वाला नहीं है। प्रोफेसर द्वारा की गई इस आलोचना को इंफाइनाइट इंजीनियर्स के सभी सदस्यों ने संकल्प के तौर पर स्वीकार किया और अपने काम के प्रति और दृढ़ हो गए इसलिए कंपनी उक्त प्रोफेसर साहब को भी अपनी सफलता का श्रेय देती है जिन्होंने उन्हें जुनून की हद तक इस दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया।
सही बात तो यह है कि पढ़ाई करने का असली तरीका क्या हो? इस सवाल का सबसे सही जवाब तो क्लास में पीछे बैठने वाले छात्र ही बेहतर तरीके से समझा सकते हैं क्योंकि वही इस सच को जानते हैं कि अध्यापकों की कौन सी बातें पीछे बैठे छात्रों को सालों से सोने पर मजबूर करती रही हैं।