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स्वास्थ्य विशेषज्ञों के इन सुझावों से देश की 'प्रदूषित हवा' को बनाया जा सकता है बेहतर

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के इन सुझावों से देश की 'प्रदूषित हवा' को बनाया जा सकता है बेहतर

Saturday May 19, 2018 , 6 min Read

हालिया विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट ने एक बार फिर वैश्विक स्तर पर भारत के वायु प्रदूषण की समस्या को उजागर किया है। डब्लूएचओ में 2016 के आँकड़ों के अनुसार दस सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर भारत में हैं। दूसरे अध्ययन बताते हैं कि हर साल पूरी दुनिया में 70 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से होती है। 

सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर


वायु प्रदूषण की वजह से सांस लेने में तकलीफ से लेकर कैंसर और मानसिक स्वास्थ्य तक पर असर होता है। वायु प्रदूषण सिर्फ दिल्ली की स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय समस्या है, जिससे निपटने की जरुरत है।

कई नागरिक संगठनों, किसानों और पर्यावरण समूहों के नेटवर्क क्लीन एयर कलेक्टिव ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के ड्राफ्ट पर अपने सुझाव पर्यावरण मंत्रालय को दिया है। 17 मई 2018 तक एनसीएपी को पर्यावरण मंत्रालय के बेवसाइट पर लोगों की प्रतिक्रिया और सुझाव के लिये डाला गया था। पिछले एक महीने में संबंधित संगठनों और समूहों द्वारा लगातार देशभर में कई चर्चा आयोजित करने के बाद अलग-अलग सेक्टर के विशेषज्ञों ने एनसीएपी को मजबूत बनाने के लिये 20 बिंदुओं पर सुझाव दिया था।

इनमें प्रमुख सुझाव हैं:-

उत्सर्जन लक्ष्य: पर्यावरण मंत्रालय को उत्सर्जन को तीन साल में 35 प्रतिशत और पांच सालों में 50 प्रतिशत कम करने के लक्ष्य को एनसीएपी में शामिल करना चाहिए।

विभिन्न प्रदूषकों को लेकर लक्ष्य निर्धारण- एनसीएपी के ड्राफ्ट में उद्योग और थर्मल पावर प्लांट से होने वाले प्रदूषण को नजरअंदाज कर दिया गया है। उद्योग और औद्योगिक क्षेत्रों में होने वाले प्रदूषण को एनसीएपी के भीतर लाकर इसे स्पष्ट समयसीमा और लक्ष्यों के साथ नियंत्रित किया जाना चाहिए।

अंतरिम लक्ष्य का अभाव: एनसीएपी को समय समय पर मूल्यांकन करने के लिये जरुरी है कि अंतरिम माइलस्टोन बनाये जायें और उसमें उद्योग और पावर प्लांट जैसे सेक्टर को भी शामिल किया जाये।

पराली प्रबंधन: एनसीएपी में पराली जलाने के मुद्दे को लेकर व्यापक रुख अपनाने की जरुरत है। वर्तमान में यह योजना अलग-थलग रुप से शामिल किया गया है। पराली के प्रबंधन और खेतों से बाहर उसके इस्तेमाल को लेकर योजना को एनसीएपी में शामिल करना होगा।

गैर मोटरयुक्त परिवहन को मजबूत करना: ‘सड़कों का चौड़ीकरण और फ्लाईओवर जैसे संरचना के विकास’ जैसे सुझाव जिसे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को 2015 और 2016 में भेजा गया, इससे उत्सर्जन में बढ़ावा ही मिलेगा क्योंकि ऐसे विकास आधारित योजनाएँ निजी वाहनों को प्रोत्साहित करेंगे। इसलिए गैर मोटरयुक्त वाहनों को बढ़ावा देने और सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को ठीक करना जरुरी है जैसा कि राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति में भी कहा गया है।

कचरा प्रबंधन: एक व्यापक शहरी कचरा प्रबंधन नीति को एनसीएपी में शामिल करना जरुरी है। अयोग्य शहरों के चयन की प्रक्रिया को परिभाषित करना- एनसीएपी में कई ऐसे शहरों को शामिल नहीं किया गया है जो वायु प्रदूषण के लिहाज से काफी खतरनाक स्तर पर पहुंच गए हैं। इनमें गुरुग्राम, फरीदाबाद, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, पटना, गया और मुजफ्फरपुर जैसे शहर गायब हैं।

100 अयोग्य शहरों से आगे: एनसीएपी को सिर्फ 100 शहरों तक सीमित नहीं किया जा सकता है। बल्कि इसमें दूसरे प्रदूषित भौगोलिक क्षेत्रों को भी शामिल करना चाहिए।

कानूनी अधिनियम के अंतर्गत- एनसीएपी को कानूनी अधिनियम जैसे वायु एक्ट 1981 के भीतर लाना चाहिए जिससे जनता यह सुनिश्चित कर सके कि अगर एनसीएपी को लागू नहीं किया जाता है तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है।

भाषायी बाधा: एनसीएपी ड्राफ्ट सिर्फ अंग्रेजी भाषा में है जिससे कि इसमें ज्यादातर भारतीय नागरिक भागीदारी नहीं ले सकते। इसे दूसरे क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इसमें अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सके और इसके लिये जरुरत होने पर एक महीने और पब्लिक कमेंट के लिये खुला रहना चाहिए।

स्पष्ट समयसीमा और लक्ष्य की कमी

ग्रीनपीस इंडिया के सीनियर कैंपेनर सुनील दहिया कहते हैं, “पर्यावरण मंत्रालय को एनसीएपी में उत्सर्जन कम करने के लिये स्पष्ट समयसीमा और लक्ष्य निर्धारित करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। एनसीएपी एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें विभिन्न प्रदूषकों से निपटने के लिये प्रतिबद्ध होकर काम किया जा सकता है। अगर उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य और विभिन्न प्रदूषकों से निपटने की योजना को इसमें शामिल नहीं किया जाता है तो फिर यह व्यर्थ का अभ्यास साबित होगा।"

उत्सर्जन मानकों पर सरकार के दोहरे रवैये पर बोलते हुए लाइफ के रित्विक दत्ता ने कहा, “एक तरफ सरकार एनसीएपी को ला रही है तो दूसरी तरफ पहले ही मौजूद अपने वायु प्रदूषण मानकों को खुद से ही खत्म भी कर रही है। पावर प्लांट से निकलने वाला उत्सर्जन वायु प्रदूषण बढ़ाने में खासा योगदान देता है । लेकिन सरकार 2015 में कोयला पावर प्लांट के लिये लाये गए मानकों को खुद ही खत्म करने की कोशिश में है। एनसीएपी में सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं, न तो इसमें साफ रणनीति दिख रही है और न ही स्पष्ट लक्ष्य ही दिख रहा है। यह कार्यक्रम बहुत तकनीक आधारित है और इसमें मानकों का उल्लंघन करने पर किसी भी तरह के कार्रवाई की चर्चा भी नहीं की गयी है”।

ठोस क्लिनिकल आंकड़ों का अभाव

हालिया विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट ने एक बार फिर वैश्विक स्तर पर भारत के वायु प्रदूषण की समस्या को उजागर किया है। डब्लूएचओ में 2016 के आँकड़ों के अनुसार दस सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर भारत में हैं। दूसरे अध्ययन बताते हैं कि हर साल पूरी दुनिया में 70 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से होती है। पुरी दुनिया में 10 लोगों में से 9 लोग खतरनाक हवा में सांस ले रहे हैं। इन सबके बावजूद एनसीएपी के मौजूदा ड्राफ्ट में वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रश्नावलियों के आधार पर बनाया गया है जबकि इसे क्लिनिकल आंकड़ों के आधार पर होना चाहिए था, जिससे वायु प्रदूषण और रोग के बीच कड़ी को स्थापित करता।

चितरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के पूर्व सहायक निदेशक मानस रंजन रे बताते हैं, "वायु प्रदूषण मौन हत्यारा है, इसे देखा नहीं जा सकता, लेकिन यह हम सबको मार रहा है। वायु प्रदूषण की वजह से सांस लेने में तकलीफ से लेकर कैंसर और मानसिक स्वास्थ्य तक पर असर होता है। वायु प्रदूषण सिर्फ दिल्ली की स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय समस्या है, जिससे निपटने की जरुरत है। झरिया, छत्तीसगढ़ और पर्यटन स्थल जैसे गंगटोक और दार्जिलिंग या फिर गया, लखनऊ और कलकत्ता तक में वायु प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा है।"

यदि पर्यावरण मंत्रालय लोगों के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर है तो उसे मजबूत राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम लेकर आना होगा और उसे लागू करने के लिये जरुरी कदम उठाने होंगे। क्लीन एयर कलेक्टिव उम्मीद करता है और मांग करता है कि पर्यावरण मंत्रालय इन सुझावों को एनसीएपी के अंतिम प्रारूप में शामिल करे और वायु प्रदूषण से निपटने के लिये इस कार्यक्रम को सचमुच का एक शक्तिशाली माध्यम बनाये।

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