शहीदे आज़म की तस्वीरों से जुड़ी कुछ दिलचस्प सच्चाईयां
भगत सिंह के एक-एक शब्द आज भी पत्थर की लकीर
किसी के विचारों को भुलाने, मिटाने के लिए इससे खूबसूरत छल और क्या हो सकता है कि घर में उसकी फोटो टांग कर उस पर फूल-माला चढ़ा दी जाए अथवा चौराहे पर प्रतिमा लगा दी जाए। वही सब भगत सिंह जैसे शहीदों के साथ हो रहा है। अजेय बलिदानी भगत सिंह का आज 28 सितंबर जन्मदिन है।
सवाल उठते आ रहे हैं कि आख़िरकार, भगत सिंह की काल्पनिक और बिगाड़ी हुई तस्वीर इलेक्ट्रानिक मीडिया में कैसे वायरल की गई? 1970 के दशक तक देश हो या विदेश, भगत सिंह की हैट वाली तस्वीर ही सबसे अधिक लोकप्रिय थी।
मात्र तेईस साल की उम्र में अपने देश के लिए मर मिटने वाले अजेय बलिदानी भगत सिंह का आज (28 सितंबर) जन्मदिन है। किसी को सिर्फ याद करने, न कि उसके बताए पर चलने की सीख देना हो तो घर में उसकी फोटो या चौराहे पर प्रतिमा लगा दी जाती है, जैसे कि वह हमारे देश-समाज की बेहतरी के लिए कुर्बान होने वाले महापुरुष नहीं, किसी दूसरे लोक के देवी-देवता हों। हमारे देश में राजनीतिक दल भगत सिंह की बदली हुई तस्वीरों के साथ उन्हें एक प्रतिमा में बदलकर उसके नीचे उनके विचारों को दबा देने की आज तक कोशिश करते आ रहे हैं, ताकि देश के युवा और आम लोगों को उनकी सोच और दिशा से दूर रखा जा सके। भगत सिंह, सुखदेव जैसे युवा भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों के अग्रणी नेता थे। 23 मार्च 1931 को उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया था। आज सुखदेव का घर तालों में कैद है।
पिछले कुछ वर्षों से मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भगत सिंह की वास्तविक तस्वीरों को बिगाड़ने की होड़ मची है। मीडिया में बार-बार भगत सिंह को किस अनजान चित्रकार की बनाई पीली पगड़ी वाली तस्वीर में दिखाया जा रहा है। लेखक चमनलाल के मुताबिक भगत सिंह की अब तक ज्ञात चार वास्तविक तस्वीरें ही उपलब्ध हैं। पहली तस्वीर ग्यारह साल की उम्र में घर पर सफ़ेद कपड़ों में खिंचाई गई थी। दूसरी तस्वीर तब की है, जब भगत सिंह क़रीब सोलह साल के थे। इस तस्वीर में लाहौर के नेशनल कॉलेज के ड्रामा ग्रुप के सदस्य के रूप में भगत सिंह सफ़ेद पगड़ी और कुर्ता-पायजामा पहने हुए दिख रहे हैं। तीसरी तस्वीर 1927 की है, जब भगत सिंह की उम्र क़रीब 20 साल थी। तस्वीर में भगत सिंह बिना पगड़ी के खुले बालों के साथ चारपाई पर बैठे हुए हैं और सादा कपड़ों में एक पुलिस अधिकारी उनसे पूछताछ कर रहा है। चौथी और आखिरी इंग्लिश हैट वाली तस्वीर दिल्ली में ली गई थी, तब भगत सिंह की उम्र बाईस साल से थोड़ी ही कम थी।
इनके अलावा भगत सिंह के परिवार, कोर्ट, जेल या सरकारी दस्तावेज़ों से उनकी कोई अन्य तस्वीर नहीं मिलती है। सवाल उठते आ रहे हैं कि आख़िरकार, भगत सिंह की काल्पनिक और बिगाड़ी हुई तस्वीर इलेक्ट्रानिक मीडिया में कैसे वायरल की गई? 1970 के दशक तक देश हो या विदेश, भगत सिंह की हैट वाली तस्वीर ही सबसे अधिक लोकप्रिय थी। सत्तर के दशक में भगत सिंह की तस्वीरों को बदलने सिलसिला शुरू हुआ। भगत सिंह जैसे धर्मनिरपेक्ष शख्स के असली चेहरे को इस तरह प्रदर्शित करने के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार पंजाब सरकार और पंजाब के कुछ गुटों को बताया जाता है। 23 मार्च, 1965 को भारत के तत्कालीन गृहमंत्री वाईबी चव्हाण ने पंजाब के फ़िरोजपुर के पास हुसैनीवाला में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के स्मारक की बुनियाद रखी। अब यह स्मारक ज़्यादातर राजनेताओं और पार्टियों के सालाना रस्मी दौरों का केंद्र बन गया है।
बताते हैं कि ब्रिटेन में रहने वाले एक पंजाबी कवि अमरजीत चंदन ने वो तस्वीर शाया की है, जिसमें 1973 में खटकर कलाँ में पंजाब के उस समय के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के राष्ट्रपति रहे ज्ञानी जैल सिंह भगत सिंह की हैट वाली प्रतिमा पर माला डाल रहे हैं। भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह भी उस तस्वीर में हैं। भारत के केंद्रीय मंत्री रहे एमएस गिल बड़े ही गर्व के साथ कहते सुने गए थे कि उन्होंने ही प्रतिमा में पगड़ी और कड़ा जोड़ा था। यह समाजवादी क्रांतिकारी नास्तिक भगत सिंह को 'सिख नायक' के रूप में पेश करने की कोशिश थी। दरअसल, भगत सिंह के विचारों में इतना ताप है कि उससे समाज के शोषकों, राजनेताओं के कान खड़े हो जाते हैं। वे नहीं चाहते कि लोग भगत सिंह के विचारों को जानें और उनके बताए रास्ते पर चलकर अपने देश-समाज के लिए कुछ करें।
शहीदे आज़म को याद करते हुए उनके जीवन की सच्चाइयों को हमेशा जानते रहना, उनके विचारों का अनुसरण करते रहना आज भी समय की शख्त जरूरत है। लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 की शुरुआत किसी और दिन की तरह ही हुई थी। फ़र्क सिर्फ़ इतना सा था कि सुबह-सुबह ज़ोर की आँधी आई थी लेकिन जेल के क़ैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा, जब चार बजे ही वॉर्डेन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं। उन्होंने कारण नहीं बताया। उनके मुंह से सिर्फ़ ये निकला कि आदेश ऊपर से है। अभी क़ैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है, जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फुसफुसाते हुए गुज़रा कि आज रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है। उस क्षण की निश्चिंतता ने उनको झकझोर कर रख दिया।
क़ैदियों ने बरकत से मनुहार की कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी चीज़ जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में बंद थे। और भारत के उन तीनो लाल को फांसी पर चढ़ाने के बाद निर्मम तरीके से टुकड़े, टुकड़े कर फूंकने के बाद नदी में बहा दिया गया।
लाहौर हाई कोर्ट में मुक़दमे की नए सिरे से सुनवाई के लिए 'भगत सिंह मेमोरियल फ़ाउंडेशन' नाम के एक संगठन ने याचिका दायर कर रखी है। उन पर इल्ज़ाम था कि उन्होंने एक ब्रितानी अधिकारी की हत्या की है। फ़ाउंडेशन मांग कर रहा है कि इस मुद्दे पर ब्रिटेन माफी मांगे और स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों को भारी मुआवज़ा भी दे। इस केस में बहुत सारे पेंच रहे हैं। शहीद भगत सिंह केस की एफ़आईआर निकलवाई गई तो उसमें न भगत सिंह का नाम, न राजगुरु का, न सुखदेव का। ये तीनों बेगुनाह थे, जिन्हें फांसी पर लटका दिया गया। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों का इंसाफ़ कितना खूंखार था।
भगत सिंह को किताबें पढ़ने का इतना शौक था कि एक बार उन्होंने अपने स्कूल के साथी जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिए कार्ल लीबनेख़्त की 'मिलिट्रिज़म', लेनिन की 'लेफ़्ट विंग कम्युनिज़म' और आप्टन सिंक्लेयर का उपन्यास 'द स्पाई', कुलबीर के ज़रिए भिजवा दें। भगत सिंह जेल की कठिन ज़िंदगी के आदी हो चले थे। उनकी कोठरी नंबर 14 का फ़र्श पक्का नहीं था। उस पर घास उगी रहती थी। कोठरी में बस इतनी ही जगह थी कि उनका पाँच फ़ुट, दस इंच का शरीर बमुश्किल उसमें लेट पाए। इतनी मुश्किलों के बावजूद वह आखिरी सांस तक भारत की आजादी का संघर्ष करते रहे। भगत सिंह के ये शब्द आज भी पत्थर की लकीर हैं -
उसे यह फ़िक्र है हरदम, नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें, सितम की इंतहा क्या है?
दहर से क्यों खफ़ा रहे, चर्ख का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें।
कोई दम का मेहमान हूँ, ए-अहले-महफ़िल,
चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ।
मेरी हवाओं में रहेगी, ख़यालों की बिजली,
यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी, रहे, रहे, न रहे।
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