...ताकि स्लम में रहने वाले बच्चे भी बना सकें फिल्में और ले सकें आगे बढ़ने की ‘प्रेरणा’
फिल्म एक ऐसी विधा है जिसके लिए हर किसी को आमतौर पर थोड़ी बहुत रुचि होती ही है। चाहे आलीशान घरों में रहने वाले हों या फिर झुग्गी में रहने वाले लोग। बस समानता यह है कि हर किसी के लिए फिल्में प्राय: एक सपने की दुनिया जैसी दिखती है। ऐसा सपना जहां, सबकुछ है पर हमसे परे है। अगर दूसरों के ऐसे सपनों को साकार करने की कोई कोशिश कर रहा हो तो आप क्या कहेंगे। वो भी उन बच्चों के सपने साकार करने की कोशिश है जो स्लम या झुग्गी बस्तियों में रहते हों। दिल्ली की रहने वाली प्रेरणा सिद्धार्थ कुछ ऐसा ही कर रही हैं। वो राजधानी दिल्ली के स्लम इलाकों में रहने वाले बच्चों को ना सिर्फ सपने दिखा रही हैं, बल्कि उन सपनों को हकीकत में कैसे पूरा किया जाता है ये भी बता रही हैं। इतना ही नहीं प्रेरणा ऐसे बच्चों के लिये वाकई में 'प्रेरणा' हैं जो अपनी जिंदगी में आगे बढ़कर कुछ ऐसा करना चाहते हैं जिनके बारे में ज्यादातर लोग सिर्फ सोच ही पाते हैं। प्रेरणा दिल्ली के स्लम इलाकों में रहने वाले बच्चों को मुफ्त में फोटोग्राफी और फिल्म बनाने की ट्रेनिंग देती हैं। अब तक वो 60 से ज्यादा बच्चों को फिल्में बनाना सीखा चुकी हैं।
प्रेरणा सिद्धार्थ के मुताबिक,
"जब मैं 5 साल की थी तभी मैंने सोच लिया था कि बड़ी होकर फिल्म मेकर ही बनूंगी। 11 साल की उम्र तक मैंने कैमरा चलाना और स्क्रिप्ट राइटिंग का काम सीख लिया था। इस दौरान मैंने अपनी स्कूली पढ़ाई भी जारी रखी।"
प्रेरणा के पिता रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर हैं और उनके पिता को सामाजिक कामों से काफी लगाव था। इसलिए वो भी अपने पिता के साथ इन कामों के लिए वक्त देती थीं। प्रेरणा जब 16 साल की थीं तब उन्होंने अपने पिता के साथ झारखंड की राजधानी रांची में बच्चों के लिए 40 दिन का एजुकेशनल कैम्प लगाया। इसमें उन्होने बच्चों को शॉर्ट फिल्म के जरिये पढ़ाने के फैसला किया। प्रेरणा का मानना था कि अगर इस तरह से वो बच्चों के पढ़ाएंगी तो उनको कोई भी बात जल्दी समझ में आएगी, क्योंकि दृश्यों के देखकर बच्चे जल्दी समझते हैं।
प्रेरणा ने स्कूली पढ़ाई के बाद फिल्म मेकिंग का कोर्स किया। फिल्म मेकिंग का कोर्स खत्म करने के बाद उन्होंने विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर अनेक फिल्में बनाई। उस दौरान दूरदर्शन के लिए काम करते हुए उन्होंने उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ के अंदरुनी इलाकों में जाकर काम किया। इसके बाद प्रेरणा ‘किड पावर मीडिया’ नाम के एक संगठन से जुड़ीं। यहां पर किसी खास मुद्दे को लेकर बच्चों को जागरूक किया जाता था। इसके लिए वो अनेक स्लम इलाकों में गई और बच्चों से ये जानने की कोशिश की कि वो किस मुद्दे पर फिल्में बनाना चाहते हैं। इस दौरान उनके सामने ऐसे कई विषय आये जिनको सुनकर वो चौंक जाती थी। स्लम में रहने वाले बच्चे एल्कोहल जैसे गंभीर विषयों के साथ घरेलू मुद्दों जैसे कि बाल विवाह, घरेलू हिंसा में फिल्म बनाने के लिए कहते थे। खास बात ये थी कि फिल्म बनाने तक के सारे में काम में इन बच्चों को शामिल किया जाता था।
हालांकि कुछ बच्चे ऐसे भी थे जो इस दौरान बिल्कुल चुपचाप रहते थे, इसलिये प्रेरणा ने ऐसे बच्चों के व्यक्तिगत विकास पर ध्यान देना शुरू किया। प्रेरणा ने योर स्टोरी को बताया
“अगर हमें बाल विवाह पर कोई फिल्म बनानी होती है तो सबसे पहले हम इस पर रिसर्च करते हैं कि ऐसा क्यों होता है, बाल विवाह के दौरान और उसके बाद बच्चों के साथ क्या होता है, लोग क्यों बाल विवाह करते हैं? अगर किसी का बाल विवाह हो जाये तो उससे कैसे बचा जा सकता है।”
प्रेरणा ने इन सारी जानकारी को इकट्ठा करने के लिए स्लम में रहने वाले बच्चों को शामिल किया जो ज्यादा बेहतर तरीके से काम करते हैं, क्योंकि उनके लिये ये सब चीजें आम थीं। प्रेरणा के मुताबिक स्लम में रहने वाले कई बच्चे अद्भूत होते हैं। जिनमें फिल्म मेकिंग के गुण जन्मजात होते हैं। फिल्म निर्माण के दौरान इन बच्चों को पता होता है कि कहां पर कौन सा शॉट लेना हैं, कहानी में कैसे ट्वीस्ट लाना है, कैमरे का एंगल कैसे होगा, इत्यादी। ये सब चीजें बच्चे अपने आप करते हैं।
प्रेरणा ने समाज के लिए कुछ करने की चाहत में साल 2012 में दिल्ली के स्लम में रहने वाले बच्चों को फिल्म मेकिंग का काम सीखाना शुरू किया। शुरूआत में स्लम में रहने वाले बच्चों के माता-पिता को इस काम के लिए काफी समझाना पड़ा। ये बच्चे ऐसे परिवारों से आते थे जो की पैसा कमाने में अपने माता-पिता की मदद करते थे। प्रेरणा ने तब फैसला किया कि वो शनिवार और रविवार के दिन इन बच्चों को फिल्म मेकिंग का काम सिखाएंगी, क्योंकि इस दिन इन बच्चों की छुट्टी होती थी। उन्होंने इस काम को अपने मित्र केविन के साथ शुरू किया।
इसके लिए उन्होंने दिल्ली के ईस्ट ऑफ कैलाश में अपना एक स्कूल खोला। जहां पर वो इन बच्चों को फिल्म मेकिंग से जुड़ी हर जानकारी देती हैं। वो स्लम में रहने वाले बच्चों को एडिटिंग, स्क्रिप्ट राइटिंग और दूसरी चीजें सीखाती हैं। प्रेरणा के मानना है कि फिल्म मेकिंग एक आर्ट है जब तक किसी बच्चे में वो आर्ट नहीं होगा वो इसे नहीं सीख सकता, लेकिन स्लम में रहने वाले काफी बच्चों में ये गुण जन्मजात होता है। वो बताती हैं कि जिन बच्चों ने पहले कभी कैमरा तक नहीं देखा था वो जब पहली बार कैमरा पकड़ते हैं, तो कुछ करने और सीखने की चाहत इनमें काफी ज्यादा दिखती है। इन बच्चों को जब भी फोटो खींचने का मौका मिलता है तो वो अद्भुत फोटो खीचते हैं।
प्रेरणा अब तक दिल्ली के विभिन्न स्लम इलाकों में रहने वाले करीब 60 बच्चों को फिल्म मेकिंग का काम सिखा चुकीं हैं। वो एक समय में 8 बच्चों को इसकी शिक्षा देती हैं। वो उन्हीं बच्चों का चयन करती हैं जिनमें उन्हें इस काम में रूचि दिखाई देती हैं और उन्हें लगता है कि ये बच्चा आगे चलकर इस क्षेत्र में कुछ अच्छा काम करेगा। दिल्ली में इस काम को वो सीलमपुर, मालवीय नगर, तुगलकाबाद, ओखला, उत्तम नगर जैसे स्लम एरिया में कर रहीं हैं। फंडिंग के बारे में प्रेरणा का कहना है कि उन्हें कहीं से भी कोई फंडिंग नहीं मिल रही है। वो और केविन हफ्ते में 5 दिन नौकरी कर और अपनी बनाई फिल्मों को कॉरपोरेट या दूसरे लोगों के फिल्म दिखाकर जो कमाते हैं उसी बचत से वो इन बच्चों को सिखाते हैं। अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में इनका कहना है कि अगर इनको फंडिंग मिलती है तो ये काम का विस्तार कर ज्यादा से ज्यादा बच्चों को फिल्म मेंकिंग का काम सिखाना चाहती हैं।
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