भैया, राखी के बंधन को निभाना लेकिन इस बार जरा ईको-फ्रेंडली होकर
रक्षा बंधन तो अभी 15 अगस्त को है लेकिन पर्यावरण संरक्षण के लिए पूरे देश में इस बार स्वतःस्फूर्त ईको-फ्रेंडली मुहिम ने इस त्यौहार का पूरा मौसम ही बदल दिया है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड में तो मिट्टी, बीज, सूती धागों से बने कमाल के राखी स्टार्टअप चल निकले हैं।
पर्यावरण संरक्षण को लेकर एक ओर जहां पूरा विश्व समुदाय चिंतित है, तरह-तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं, वही भारत के कई एक राज्यों में एक्टिविस्ट और स्टार्टअप खासकर त्योहारों के मौकों पर ऐसी जोरदार मुहिम को स्वर दे रहे हैं। इस समय बाजारों में ईको-फ्रेंडली राखियां धूम मचाए हुए हैं। इंडोनेशिया से नौकरी छोड़कर अपने वतन लौट आईं अल्का लोठी अपने गृहनगर बिजनौर (उ.प्र.) में अपने पिता की श्रीकृष्ण गोशाला में गाय के गोबर से इको-फ्रेंडली राखियां बना रही हैं। राखी का आकार देकर गोबर सुखाने के बाद उसे सूती धागे जोड़ दिया जाता है। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान के सहयोग से मुनस्यारी (उत्तराखंड) के गांव जैंती में ईको-फ्रेंडली 25 महिलाओं की संस्था 'उत्तरापथ' द्वारा पहली बार प्लास्टिक को रिप्लेस करने के साथ ही स्वरोजगार के लिए रिंगाल की फैंसी राखियां बना रही है। यहां के बाजारों में इसकी भारी डिमांड रहती है। इस बार पचीस रुपए कीमत वाली दो हजार राखियां बाजार में उतारी जा रही हैं।
इसके अलावा यह संस्था रिंगाल से आकर्षक झूमर, बास्केट, डस्टपैन और पक्षियों के घौंसले भी बना रही है। संस्था की ओर से अब तक 42 मेलों में रिंगाल से निर्मित सामग्री के स्टाल लगाए जा चुके हैं। इसी तरह पर्यावरण बचाने के लिए प्लास्टिक विरोधी मुहिम में हल्द्वानी की बीस महिलाओं का एक ग्रुप पिछले कई सालों से हल्दी में डुबोकर केशमेंट धागे और ट्विलिंग पेपर से अलग तरह की राखियां बना रहा है। उनकी पैकिंग में भी पॉलीथिन का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। इस ग्रुप की कुंदन, केशमेंट, कलेवा, स्माइल आदि नामों की पांच से तीस रुपए रेंज वाली राखियां खूब पसंद की जा रही हैं।
इस रक्षाबंधन पर 'अभिका क्रिएशन्स' पौधों के बीज और मिट्टी से बनीं राखियों के किट बेच रहा है तो स्मिता भटनेर ने 'बाइस्मिता' नाम से बंदगोभी के बीज वाली प्लांटेबल राखियां तैयार की हैं, जिनके किट में राखी, रोली, चावल, गमला होता है। सौरभ के स्टार्टअप 'बायोक्यू' ने दिल्ली की झोपड़ पट्टियों में रहने वाली महिलाओं की मदद से पिछले रक्षाबंधन पर छह हजार ईको-फ्रेंडली राखियां बाजार में बेंची थीं। इस बार उससे दोगुनी से ज्यादा राखियां बेचने का इरादा है।
औरंगाबाद में 'बा नो बटवो' स्टार्टअप की फाउंडर गार्गी पर्यावरण सहेजने के लिए जेंडर न्यूट्रल प्लांटेबल यानी बीज वाली राखियां बना रही हैं, जिन्हे ऑनलाइन भी खरीदा जा सकता है। इसके लिए वह फेसबुक पर भी 'मेरी बहन मेरी ताकत' नाम से अभियान चला रही हैं। इन हेंडीक्राफ्ट राखियों को बनाने में मिट्टी के साथ करंज और अमलतास के बीज तथा धागे के रूप में चावल के पेस्ट, हल्दी, गेरू आदि का इस्तेमाल किया है।
इसी तरह बेंगलुरु (कर्नाटक) में 'सीड पेपर इंडिया' के संस्थापक रोशन राय के नेतृत्व में कुछ दिव्यांग इको-फ्रेंडली प्लांटेबल ग्रीन राखियां बना रहे हैं, जिन्हे बेचकर हेन्नुर के इन्फेंट जीसस एचआईवी होम के बच्चों की मदद की जा रही है। इस स्टार्टअप ने तो रिसायकल पेपर की पैकेजिंग वाली राखियों की पूरी किट मार्केट में उतार रखी है, जिसमें एक-एक प्लांटेबल राखी, जैविक उर्वरक, कोको पॉट प्लान्टर, पर्यावरण संरक्षण के संदेशों वाले कार्ड आदि शामिल हैं। इस टीम ने पिछले रक्षाबंधन पर आठ हजार राखियां बेची थी, इस बार पंद्रह हजार किट बेचने का लक्ष्य है।
मुंबई में मानवाधिकार कार्यकर्ता नवलीन कुमार की हत्या के बाद से मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सक्रिय एक सामाजिक संस्था 'ग्राम आर्ट' के संस्थापक ललित वंशी ने 'हम कमजोर नहीं' अभियान के तहत सौ ग्रामीण महिलाओं की मदद से तैयार गुलाबी धागे में लाल केशरी के बीजों वाली राखी ‘माहवारी’ बाजार में उतारी है। 'ग्राम आर्ट' ने वर्ष 2018 में बारह हजार ऐसी राखियां बेची थीं, इस बार बीस हजार बेचने का लक्ष्य है।