ट्राउट मछली के स्टार्टअप से एक ही सीजन में 50 लाख रुपए की कमाई
"हृदय रोगियों के लिए सबसे स्वास्थ्यवर्धक डेढ़ हजार रुपए किलो बिक रही ट्राउट मछली के कारोबार से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के किसान मालामाल हो रहे हैं। उत्तराकाशी (उत्तराखंड) के कपिल रावत ने नौकरी छोड़कर ट्राउट पालन का स्टार्टअप शुरू किया है। वह पहले ही सीजन में 50 लाख की शुद्ध कमाई करने वाले हैं।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पिछली सरकार वक़्त मत्स्य पालन के लिए अलग से मंत्रालय बना दिया था ताकि मछली पालन करने वाले किसानों आमदनी में इजाफा हो सके। उसका साफ असर अब उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश मत्स्य पालक किसानों पर दिखने लगा है, जिनमें एक हैं उत्तरकाशी (उत्तराखंड) के गांव बार्सू के कपिल रावत। उन्होंने सबसे मंहगी बिकने वाली ट्राउट मछली का स्टार्टअप शुरू किया है।
यह काम शुरू करने से पहले कपिल नौकरी करते थे। मछली पालन की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। अचानक एक दिन उन्होंने तय किया कि वैज्ञानिक तकनीक से मत्स्य पालन करेंगे। वह नौकरी के दौरान ही ट्राउट फार्मिंग के बारे में जानकारियां जुटाने लगे। बाद में नौकरी छोड़ पूरी तरह मत्स्य पालन में जुट गए। कपिल ने सबसे पहले ट्राउट प्रजाति की मछलियां पालने के लिए 15 मीटर लम्बे, एक मीटर चौड़े और एक मीटर गहरे टैंक बनवाए, लेकिन जानकारी की कमी के चलते वह इस काम में सफल नहीं सके। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी।
बाद में कपिल रावत ने पुराने टैंकों को दोबारा से बनवाया, जो ऊपर-नीचे रखे गए, ताकि एक टैंक से पानी होता हुआ दूसरे टैंक में पहुंच जाया करे। उसके बाद उन टैंकों में ट्राउट मछली के बीज डाले गए। इसके लिए कपिल को मछली विभाग ने करीब ढाई लाख रुपये का अनुदान दिया। इस समय कपिल के टैंकों में चार हजार से अधिक ट्राउट मछलियां पल रही हैं। आने वाले चार महीनों के भीतर उनको अपने टैंकों से कुल एक टन मछलियां मिलने की उम्मीद है। उल्लेखनीय है कि इस समय ट्राउट मछली डेढ़ हजार रुपए प्रति किलो बाजार में बिक रही है। इस तरह तैयार हो जाने के बाद वह पहले ही सीजन में लगभग 60 लाख रुपए की मछलियां बेचने वाले हैं। केवल एक कांटे वाली ट्राउट की उस बिक्री में से दस लाख उनकी लागत घटा दी जाए, फिर भी कम से कम पचास लाख का मुनाफा तय माना जा रहा है। कपिल के गांव बार्सू के ही किसान परमेंद्र सिंह ने तीन तालाबों में इस बार मात्र 50 किलो ट्राउट बेचकर 75 हजार रुपए कमाए हैं।
कपिल रावत बताते हैं कि अब आगे वह ट्राउट मछली पालन का एक बड़ा प्रोजेक्ट लगाने जा रहे हैं, ताकि उसमें लोगों को रोजगार भी मिले। इस प्रोजेक्ट के तहत वह ट्राउट मछलियों के बीज भी अपने यहां ही तैयार कराना चाहते हैं। इससे ट्राउट के बीजों का एक और कारोबार खड़ा हो जाएगा।
उत्तराखंड में ट्राउट मछली मुख्य रूप से उत्तरकाशी के डोडीताल में पाई जाती है। सन् 1910 में टिहरी रियासत के समय राजदरबार के अंग्रेज मित्र नार्वे के नेल्सन ने डोडीताल में ट्राउट मछली के बीज डाले थे। तभी से डोडीताल में एंगलिंग के लिए देश-विदेश के सैलानी यहां पहुंच रहे हैं। ट्राउट मछलियों का बाजार पश्चिमी राष्ट्रों में भी है। यूरोप, अमेरिका की ठंडी नदियों में ट्राउट मछलियां पाई जाती हैं। डिब्बा बंद मीट में इसका बड़ा बाजार है। स्वाद और पौष्टिकता में ट्राउट सबसे अलग है। फाइव स्टार होटलों में इनकी लगातार बड़ी डिमांड रहती है। ट्राउट दिल के मरीजों के लिए रामबाण का काम करती है।
हिमाचल प्रदेश तो प्रति वर्ष 150 टन से अधिक ट्राउट देश के बाहरी राज्यों में निर्यात कर रहा है। इसकी सबसे ज्यादा मांग दिल्ली और पंजाब में है। हिमाचल प्रदेश में ट्राउट मत्स्य पालन पिछले सौ वर्षों से किया जा रहा है। नाबार्ड के मुताबिक, केवल 2.30 लाख रुपए में ट्राउट फार्मिंग शुरू की जा सकती है, ऐसे में अगर आपको 20 फीसदी सब्सिडी मिल जाती है तो आपको मात्र 1.8 लाख रुपए का इन्वेस्टमेंट करना होगा। भारत में यह हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के अलावा केवल जम्मू कश्मीर, तमिलनाडु और केरल में पैदा हो रही है। हिमाचल प्रदेश में ही इसका सबसे अधिक उत्पादन होता है। यहां ब्राउन और रेनबो कलर की ट्राउट मिलती हैं। राज्य सरकार द्वारा यहां ट्राउट फार्मिंग के लिए विशेष मदद दी जाती है।