जो अमेरिका नहीं कर पाया वो हमने कर दिखाया
अब ट्रांसजेंडर्स कर सकते हैं किसी भी शौचालय का बेरोकटोक इस्तेमाल।
अमेरिका में लंबे समय से ट्रांसजेंडर्स यानी LGBTQ समुदाय के लिए टॉयलेट के इस्तेमाल पर बहस चल रही है। वहां पर तो कई राज्यों की सरकारों ने ट्रांसजेंडर्स को अपनी चॉइस से पब्लिक वॉशरूम के इस्तेमाल पर पाबंदी तक लगा रखी है। भारत में भी इस मुद्दे पर काफी दिनों से बहस जारी थी, लेकिन भारत सरकार ने ऐसे लोगों के लिए अपने मन मुताबिक सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल करने की छूट दे दी है। स्वच्छता एवं पेयजल मंत्रालय ने स्वच्छता अभियान के अंतर्गत नियम बनाकर सभी राज्यों को इस पर अमल करने का आदेश भी दे दिया है।
स्वच्छता एवं पेयजल मंत्रालय का ये फैसला ट्रांसजेंडर को बराबरी का अधिकार देने के साथ सम्मानजनक रूप से आम नागरिक जैसी सुविधा भी प्रदान करेगा।
भारत सरकार ने 2014 में स्वच्छ भारत अभियान के जरिए पूरे देश में साफ-सफाई की अलख जगाने और शौचालय के महत्व को समझाने का काम बेहतरीन तरीके से किया है।
हमारे लिए ये खुशी की बात होनी चाहिए कि समाज का तीसरा तबका, जिसे हम ट्रांसजेंडर कहते हैं, उनके लिए भी कुछ कानूनी अधिकार बन रहे हैं। लंबे समय से चली आ रही एक बड़ी समस्या (कि ट्रांसजेंडर किसी तरह के शौचालय का इस्तेमाल करें) अब खत्म हो चुकी है। उन्हें भी अपनी ज़रूरत के लिए सोचना नहीं पड़ेगा कि वे कहां जायें, क्योंकि स्वच्छता एवं पेयजल मंत्रालय ने इस समस्या का समाधान कर दिया है।अमेरिका में लंबे समय से ट्रांसजेंडर्स को लेकर बहस चल रही है कि वे किस तरह के टॉयलेट का इस्तेमाल करें। वहां तो कई राज्यों की सरकारों ने ट्रांसजेंडर्स को अपनी चॉइस से पब्लिक वॉशरूम के इस्तेमाल पर पाबंदी तक लगा दी है। लेकिन भारत ने अपनी सूझ-बूझ का परिचय देते हुए ये बेहतरीन कदम उठाया है।
भारत में लंबे समय से इस विषय पर बहस चल रही थी। हमारे समाज में थर्ड जेंडर यानि की ट्रांसजेंडर्स को मुख्यधारा से इकदम अलग रखा जाता है। उनके साथ आम नागरिक जैसा व्यवहार भी नहीं किया जाता। सरकार का कहना है, कि ऐसे लोगों को पब्लिक टॉयलट का इस्तेमाल करने में काफी समस्याएं पैदा होती हैं, इसलिए जरूरी है कि इन्हें महिलाओं और पुरुषों दोनों के शौचालयों का इस्तेमाल करने की अनुमति दी जाये। मंत्रालय का ये फैसला ट्रांसजेंडर को बराबरी का अधिकार देने के साथ सम्मानजनक रूप से आम नागरिक जैसी सुविधा भी प्रदान करेगा।
एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में 60 फीसदी भारतीयों के पास साफ और सुरक्षित शौचालय के इस्तेमाल करने की सुविधा नहीं थी।
साफ-सफाई के मामले में शौचालय और शौच के मुद्दे को सबसे अहम माना जाता है क्योंकि इसी से सबसे ज्यादा गंदगी फैलने का खतरा रहता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में 60 फीसदी भारतीयों के पास साफ और सुरक्षित शौचालय को इस्तेमाल करने की सुविधा नहीं थी। इस आंकड़े पर गौर किया जाये, तो हमें पता चलेगा कि देश की बड़ी आबादी अभी भी खुले में शौच जाने को मजबूर है और सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिणी और दक्षिणपूर्व एशिया में साफ-सफाई की यही स्थिति है।
भारत सरकार ने 2014 में स्वच्छ भारत अभियान के जरिए पूरे देश में साफ-सफाई की अलख जगाने और शौचालय के महत्व को समझाने का काम किया है। अपने देश में आम लोगों के लिए भी हर जगह साफ और स्वच्छ शौचालयों की व्यवस्था नहीं है। ट्रांसजेंडर लोगों की समस्या थोड़ी और मुश्किल है। क्योंकि अभी तक ये नहीं तय हो पा रहा था, कि उन्हें कौन-सा शौचालय (महिला या पुरुष) इस्तेमाल करना चाहिए।
दरअसल ट्रांसजेंडर्स की पहचान महिलाओं और पुरुषों से जुदा होने के कारण ऐसी दिक्कतें आती हैं। उन्हें दूसरे लिंग के लिए बने शौचालय का इस्तेमाल करने में असहजता भी महसूस होती है, लेकिन अपने देश में अभी सिर्फ ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग शौचालयों की व्यवस्था नहीं है, इसलिए सरकार ने आदेश दिया है, कि वे किसी भी शौचालय का बेझिझक इस्तेमाल कर सकते हैं।
जिस दिन भारत में ये कानून पास हुआ उसी दौरान अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना में एक कानून पास किया गया, जिसमें कहा गया है कि ट्रांसजेंडर्स को पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करने से पहले अपना बर्थ सर्टिफिकेट दिखाना होगा।
पूरी दुनिया में ट्रांसजेंडर्स को समान नागरिकों के बराबर अधिकार पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। यह दुखद है कि उनके साथ सामान्य लोगों जैसा बर्ताव नहीं होता। बड़ी बातों को छोड़ दिया जाये, तो उन्हें मानवीय जरूरतों को पूरा करने के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ता है। इस मामले में भारत ने अमेरिका जैसे प्रगतिशील कहे जाने वाले देश को पीछे छोड़ दिया है। जिस दिन भारत में ये कानून पास हुआ उसी दौरान अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना में एक कानून पास किया गया, जिसमें कहा गया है कि ट्रांसजेंडर्स को पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करने से पहले अपना बर्थ सर्टिफिकेट दिखाना होगा। यदि मानवीय पहलू से देखें, तो ये कितने दु:ख की बात है कि शौचालय के इस्तेमाल के लिए भी किसी को बर्थ सर्टिफिकेट लेकर चलना पड़ेगा।
हालांकि उस बिल में कई सारे बदलाव किये गये हैं, लेकिन फिर भी ऐसे प्रावधान कहीं न कहीं भेदभाव को बढ़ावा तो देते ही हैं। भारत में जो कानून पास किया गया है, उसमें कहा गया है कि जहां कहीं भी जरूरत पड़े उनके लिए अच्छी सुविधाएं की जानी चाहिए और उनकी पहचान को सम्मान मिलना चाहिए।
जाहिर तौर पर सरकार के इस सकारात्मक कदम का स्वागत करना चाहिए, लेकिन इसके बावजूद भारत में अभी ट्रांसजेंडर्स को अपने अधिकार के लिए लंबी लड़ाई लड़नी है।
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