हैदराबाद में उगाया जा रहा विदेशी सलाद, बिना मिट्टी के बढ़ते हैं पौधे
सचिन और श्वेता दरबरवार ‘सिंपली फ्रेश’ के माध्यम से ऐसे फूल, सब्जियां और फल उगा रहे हैं, जो सिर्फ विदेशों (खासतौर पर ठंडे देश जैसे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड) में उगते हैं, लेकिन सिंपली फ्रेश, इन्हें भारतीय जमीन और मौसम में भी उगा रहा है। 'सिंपली फ्रेश' की शुरूआत 2010 में हुई थी। कुछ सालों तक कंपनी को अच्छी प्रतिक्रिया और बाजार नहीं मिला और फिर 2014 में कंपनी को पहला ऑर्डर सिंगापुर और मलेशिया से माइक्रो ग्रीन्स की सप्लाई का मिला।
इस तकनीक की सबसे खास बात यह है कि इसमें बिना मिट्टी के उपज होती है। पौधा जमीन से लगभग 2 फीट ऊंचाई तक बढ़ता है। बीज और पौधे की सिंचाई पानी और मिनरल्स के मिश्रण की सहायता से की जाती है।
नीयत साफ और इरादा पक्का हो तो लोग अक्सर ऐसे काम कर जाते हैं, जो दुनिया को चौंका देते हैं। हम सभी चाहते हैं कि हमें हेल्दी खाना मिले, लेकिन कितने लोग हैं, जो इसकी उपलब्धता के बारे में गंभीरता से सोचते हैं। हम बात कर रहे हैं सचिन और श्वेता दरबरवार और उनकी कंपनी ‘सिंपली फ्रेश’ की। सिंपली फ्रेश, ऐसे फूल, सब्जियां और फल आदि उगा रहे हैं, जो सिर्फ विदेशों (खासतौर पर ठंडे देश जैसे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड) में उगते हैं क्योंकि उन्हें खास तरह के वातावरण की जरूरत होती है। लेकिन सिंपली फ्रेश, इन्हें भारतीय जमीन और मौसम में ही उगा रहा है।
हाल में बेंगलुरु, चेन्नै, हैदराबाद और मुंबई के सभी बड़े होटलों में कंपनी, इनकी सप्लाई कर रही है। देश में, विदेशी सलाद की सब्जियों आदि के लिए, सिंपली फ्रेश एकमात्र सप्लायर है। गौरतलब है, कि यह उत्पादन हाइड्रोपोनिक फार्मिंग नाम की खास विधि के जरिए किया जा रहा है। दरबरवार दंपती द्वारा शुरू की गई सिंपली फ्रेश कंपनी की शुरूआत 2010 में हुई थी। कुछ सालों तक कंपनी को अच्छी प्रतिक्रिया और बाजार नहीं मिला। 2014 में कंपनी को पहला ऑर्डर सिंगापुर और मलेशिया से माइक्रो ग्रीन्स की सप्लाई का मिला।
क्या है हाइड्रोपोनिक फार्मिंग?
इस तकनीक की सबसे खास बात यह है कि इसमें बिना मिट्टी के उपज होती है। पौधा जमीन से लगभग 2 फीट ऊंचाई तक बढ़ता है। बीज और पौधे की सिंचाई पानी और मिनरल्स के मिश्रण की सहायता से की जाती है। आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि पौधों को आधार और मजबूती के लिए मिट्टी की जरूरत होती है और उसकी अनुपस्थिति में पौधों का विकास कैसे संभव है? दरअसल, इन पौधों की जड़ों को आधार और पोषण मिट्टी के बजाय कोकोपीट से दिया जाता है। कोकोपीट, कोकोनट यानी नारियल से फाइबर निकालकर बनाया जाता है। यह पौधों के विकास के लिए पूरी तरह से प्राकृतिक माध्यम होता है।
आपको बता दें कि सचिन और श्वेता 2 एकड़ जमीन में यह पैदावार कर रहे हैं। उनके खेत डिजिटल सिस्टम से जुड़े हैं और उसी के जरिए खेती की निगरानी की जाती है। यह सिस्टम, वातावरण की स्थिति का ध्यान रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि पौधों को उपयुक्त परिस्थितयां मिल सकें। सचिन ने इन पौधों की खेती के लिए ऑस्ट्रेलिया में रहकर खास तरह का प्रशिक्षण लिया।
पौधों को कैसे मिलती है ठंडक?
ग्रीनहाउस की दीवारों पर ऐसी व्यवस्था की गई है कि दीवारों के सहारे ही पानी उतर सके और पौधों को उपयुक्त ठंडक मिल सके। साथ ही, पंखों के जरिए ग्रीनहाउस के अंदर नमी और सूखे मौसम की स्थितियां बनाने का प्रयास किया जाता है।
कैसे तय होती है उर्वरकों की मात्रा?
उर्वरकों का सही अनुपात तय करने के लिए भी डिजिटल सिस्टम का इस्तेमाल होता है। पहले पता लगाया जाता है कि समय विशेष पर पौधे को किस तरह के और कितनी मात्रा में उर्वरक की जरूरत है और उसी हिसाब से पौधों में इनकी सप्लाई होती है। सचिन मानते हैं कि इस खास तकनीक के जरिए, आम खेती के तरीकों की अपेक्षा पानी कम मात्रा में इस्तेमाल होता है। ऑस्ट्रेलिया में कई सालों तक एक बैंक में बतौर सॉफ्टवेयर डिवेलपर काम करने के बाद भारत लौटे सचिन और उनकी पत्नी बताते हैं कि इन पौधों के पोषण का ख्याल आपको वैसे ही रखना होता है, जैसे कि आप अपने बच्चे की देखभाल करते हैं।
कैसे करें ऑर्डर?
आप बिग बास्केट और नेचर्स बास्केट, जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से ऑर्डर कर सकते हैं। साथ ही, सिंपली फ्रेश के उत्पाद आपके लिए बिग बाजार और हाइपर सिटी सुपरमार्केट्स पर भी उपलब्ध हैं। सचिन कहते हैं कि उनके उत्पाद इतने फ्रेश हैं कि ग्राहक सीधे पैकेट से निकालकर बिना धोए उन्हें खा सकते हैं। इन उत्पादों के विकास में किसी भी तरह के कीटनाशकों या केमिकल्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। ये खेत एचएसीसीपी से प्रमाणित हैं।
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