मोबाइल फ़ोन के खेल बनाते-बनवाते बड़े खिलाड़ी बन गये हैं तनय तायल
तनय तायल गेमिंग इंडस्ट्री के उस खिलाड़ी का नाम है, जो सिर्फ बड़े-बड़े सपने ही नहीं देखता, बल्कि उनको साकार करने की कोशिश में जी-जान लगा देता है। यही वजह भी है कि अपने चार साथियों के साथ मिलकर बनायी कंपनी ‘मूनफ्रॉग’ को तनय ने नयी बुलंदी पर पहुँचाया। अपनी स्थापना के दो साल में ही ‘मूनफ्रॉग’ ने गेमिंग की दुनिया में धमाल मचाया, अपनी अलग और ख़ास पहचान बनाई।
‘मूनफ्रॉग’ की कामयाबी से तनय खुश हैं और उत्साहित भी, लेकिन वे अब अपने नए और बहुत ही हसीन सपने को साकार करने में जुटे हैं। ये सपना भी उनके दूसरे सपनों से बहुत बड़ा है। सपना सच हुआ तो नया इतिहास रचा जाएगा। ‘मूनफ्रॉग’ का नाम कारोबार और स्टार्टअप की दुनिया में अमिट छाप छोड़ जाएगा। तनय और उनके सारे साथियों की ख्याति दुनिया-भर में फैल जाएगी। सपना वाक़ई उतना बड़ा और मोहक है। सपना है, भारत में इस्तेमाल किये जाने वाले हर मोबाइल फ़ोन में ‘मूनफ्रॉग’ के बनाये किसी न किसी गेम का होना और उसका इस्तेमाल किया जाना। आंकड़ों के हिसाब से ये भी ये बहुत ही बड़ी बात होगी। आंकड़े बताते हैं कि भारत में इस समय 100 करोड़ से ज्यादा मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल किया जाने लगा है। इनमें से करीब 25 करोड़ स्मार्टफ़ोन हैं। यानी तनय का सपना है 100 करोड़ मोबाइल फोन में ‘मूनफ्रॉग’ को पहुँचाना। और ये तभी संभव है जब ‘मूनफ्रॉग’ के बनाये गेम्स में उतना आकर्षण, रोमांच और मनोरंजन हो। तनय ने अपने सपने को साकार करने के लिए अपने साथियों के साथ मिलकर ख़ास रणनीति भी बनाई है।
‘मूनफ्रॉग’ के मुख्यालय में हुई एक ख़ास बातचीत में तनय ने हमें अपने जीवन में अब तक की कई बड़ी और दिलचस्प घटनाओं की जानकारी दी और भविष्य की योजनाओं और परियोजनाओं से भी अवगत करवाया। बेहद खुश और विश्वास से भरे नज़र आ रहे तनय ने कहा, “गेमिंग इंडस्ट्री में भविष्य भारत का ही है। भारत में इनक्रेडिबल मार्केट है। मोबाइल फ़ोन इंडस्ट्री भारत में बहुत ही बड़ी है और इसी वजह से गेमिंग इंडस्ट्री के बढ़ने की संभावनाएँ बहुत ज्यादा हैं। चीन में साल 2010 में गेमिंग इंडस्ट्री 150 मिलियन डॉलर की थी जो साल 2015 में बढ़कर 7 बिलियन की हो गयी। भारत में गेमिंग इंडस्ट्री के बढ़कर 10 बिलियन की होने की सम्भावना है। जिस तरह से इंडस्ट्री बढ़ रही है, उसे देखकर तो ये लक्ष्य कुछ ही सालों में पूरा हो सकता है।”
‘मूनफ्रॉग’ के मुख्यालय में हुई एक ख़ास बातचीत में तनय ने हमें अपने जीवन में अब तक की कई बड़ी और दिलचस्प घटनाओं की जानकारी दी और भविष्य की योजनाओं और परियोजनाओं से भी अवगत करवाया। बेहद खुश और विश्वास से भरे नज़र आ रहे तनय ने कहा, “गेमिंग इंडस्ट्री में भविष्य भारत का ही है। भारत में इनक्रेडिबल मार्केट है। मोबाइल फ़ोन इंडस्ट्री भारत में बहुत ही बड़ी है और इसी वजह से गेमिंग इंडस्ट्री के बढ़ने की संभावनाएँ बहुत ज्यादा हैं। चीन में साल 2010 में गेमिंग इंडस्ट्री 150 मिलियन डॉलर की थी जो साल 2015 में बढ़कर 7 बिलियन की हो गयी। भारत में गेमिंग इंडस्ट्री के बढ़कर 10 बिलियन की होने की सम्भावना है। जिस तरह से इंडस्ट्री बढ़ रही है, उसे देखकर तो ये लक्ष्य कुछ ही सालों में पूरा हो सकता है।”
गेमिंग इंडस्ट्री के विस्तार ने ही तनय के सपनों को नए पंख दिए हैं। इसी विस्तार में वे ‘मूनफ्रॉग’ की प्रगति की हर मुमकिन संभावनाओं को तलाश रहे हैं। एक और हक़ीक़त भी तनय की ऊर्जा को बढ़ाती है। भारत में लोग जब मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करते हैं, उनका 35 फीसदी समय किसी न किसी गेम में लगता है। इन तथ्यों को अच्छी तरह से जानने और समझने वाले तनय मौके का पूरा फायदा उठाने की कोशिश में है। दिलचस्प बात ये भी है कि तनय अपने करियर की शुरुआत से ही “अपना अलग” करने की सोचते रहे थे। अपने बलबूते कुछ बड़ा और बेमिसाल करने की तमन्ना उनके मन में हमेशा बनी रही। उन्हें पारंपरिक तौर-तरीके वाली नौकरी से ज्यादा प्यार नहीं रहा। कंप्यूटर इंजीनियर हैं और ऊपर से ‘इन्सीड’ जैसी दुनिया के प्रतिष्ठित बिज़नेस स्कूल से एमबीए की डिग्री रखते हैं। उन्हें बड़ी से बड़ी कंपनी में बड़े ओहदे पर बहुत बड़ी तनख़्वा वाली नौकरी मिल जाती, लेकिन “अपना अलग” और “बहुत अलग” करने की तमन्ना ने ही ‘मूनफ्रॉग’ को जन्म दिया।
तनय तायल को आज भी वो दिन अच्छी तरह याद है, जब उन्होंने अपनी पहली नौकरी को छोड़ा था। इंजीनियरिंग की डिग्री मिलने के साथ ही उन्हें इन्फोसिस जैसी बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गयी थी। करीब एक साल तक इन्फोसिस में काम करने के बाद तनय ने नौकरी छोड़ दी और एक स्टार्टअप ज्वाइन किया। तनय ने बड़ी और नामचीन कम्पनी को छोड़कर एक छोटी और गुमनाम कंपनी से अपना नाता जोड़ा था। तनय के इस फैसले ने सभी को हैरान किया था। उनके माता-पिता को भी बहुत आश्चर्य हुआ। ये बात उनकी समझ से बाहर थी कि आखिर क्यों उनका पढ़ा-लिखा और समझदार बेटा अच्छी-ख़ासी तगड़ी कंपनी में मोटी रकम वाली नौकरी छोड़कर जोखिम और चुनौतियों से भरी नौकरी करना चाह रहा है। माता-पिता ने एक-दो बार सवाल ज़रूर किये, लेकिन अपने बेटे से ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की। बेटे को अपनी इच्छा के मुताबिक नौकरी करने दी।
माता-पिता भी जल्द ही समझ गये थे कि तनय का स्वभाव कुछ अलग है। वे जान गये कि तनय की दिलचस्पी पारंपरिक तरीके से नौकरी करने में क़तई नहीं है। तनय कुछ अलग, अच्छा और बेमिसाल करना चाहते हैं, ये बात उनके माता-पिता समझ गये थे और यही वजह थी कि उन्होंने तनय का हमेशा साथ दिया।
जब आर्थिक मंदी के चलते वो स्टार्टअप कंपनी बंद हो गयी थी, जिसमें तनय काम कर रहे थे, तब माता-पिता ने ही तनय को हिम्मत बांधे रखने में मदद की थी। हुआ यूँ था कि 2002-03 में दुनिया-भर के बाज़ार में मंदी छा गयी थी। स्टार्टअप में निवेश बंद हो गया था। फंडिंग रुक गयी थी। कई कंपनियों का कामकाज पूरी तरह से ठप्प हो गया था। कारोबारियों के लिए बुरा दौरा था। समय इतना खराब था कि लोग डॉट कॉम कंपनियों के अस्तित्व और भविष्य को लेकर कई बड़े सवाल खड़े कर रहे थे। इसी दौर में तनय की वो कंपनी भी बंद हो गयी जिससे उन्हें बहुत उम्मीदें थी। तनय पहली बार ऐसी संकट-भरी स्थिति-परिस्थिति में थे। ऐसी हालत में माता-पिता ने ही उन्हें संभाला और सपनों को साकार करने की कोशिशें जारी रखने के लिए प्रेरित किया।
तनय की तरक्की में उनके माता-पिता का योगदान बहुत बड़ा है। उनके पिता पेशे से इंजीनियर थे और चाहते थे कि उनके दोनों बच्चों को बेहतरीन शिक्षा मिले। इसके लिए वे पुणे आकर बस गए। पिता चाहते तो उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़े ओहदे पर नौकरियाँ मिल सकती थीं, लेकिन बच्चों की पढ़ाई में कोई बाधा ना आये इस मकसद से वे उस समय तक पुणे में ही रहे, जब तक उनके तीनों बच्चों ने उन्नत स्तरीय पढ़ाई पूरी न कर ली।
तनय कहते हैं, “मैं अपने आप को इस वजह से बहुत ख़ुशनसीब मानता हूँ कि मुझे बहुत अच्छे माता-पिता मिले। बचपन से ही पेरेंट्स ने हमें मेहनत और अच्छी शिक्षा के महत्त्व के बारे में समझाया। क्या सही है और क्या ग़लत ये हमें बताया। जो वेल्यू सिस्टम मुझे अपने पेरेंट्स से मिला उसी को लेकर मैं आगे बढ़ा था। ज़िंदगी में जोखिम भी इसी भरोसे के साथ उठाये कि कुछ गड़बड़ होने पर संभालने के लिए पिता हमेशा तैयार हैं।”
तनय तायल अपनी ज़िंदगी में कई ऐसे लोगों से मिले चुके हैं, जिन्हें बचपन में कई सारी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, कई चीज़ों के अभाव में जीना पड़ा, लेकिन, तनय को इस तरह की परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ा। उनकी स्कूली शिक्षा पुणे के बिशप स्कूल से हुई। दसवीं पास करने के बाद उनका दाखिला पुणे के ही सैंट विन्सेंट कॉलेज में करवाया गया। उन्होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई में मैथ्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी को अपना मुख्य विषय चुना था। चूँकि पिता इंजीनियर थे, स्वाभाविक तौर पर तनय के मन में भी इंजीनियर बनने का विचार हावी हुआ। उन्होंने पुणे इंस्टिट्यूट ऑफ़ कंप्यूटर टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। बीई की डिग्री हासिल करते ही उन्हें इन्फोसिस में सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी मिल गयी।
ख़ास बात ये है कि तनय का मन कभी भी पारंपरिक तरीके से की जाने वाली नौकरियों में नहीं रहा। वे स्टार्टअप की अनोखी और निराली दुनिया में जीना चाहते थे। अपने अंदाज़ से काम करना चाहते थे। कुछ नया और बड़ा करने की चाह उनमें बहुत पहले से थी। तनय काम करने और ज़िंदगी जीने के अपने तौर तरीके बनाना चाहते थे। उन्होंने करीब एक साल काम करने के बाद इन्फोसिस की नौकरी को अलविदा कह दिया। इसके बाद उन्होंने करीब सवा साल तक ‘कैलसॉफ्ट’ में काम किया। आर्थिक मंदी वाले दौरे में उन्होंने एक साल तक के लिए ‘क्यूकोया नेटवर्क’ को अपनी सेवाएँ दीं। साल 2003 में तनय ‘नेटएप्प’ से जुड़े। स्टोरेज और डाटा मैनेजमेंट की इस मशहूर कंपनी में तनय ने तीन साल तक काम किया । इसके बाद तनय यूरोप के बड़े सॉफ्टवेयर उद्यम ‘सैप’ से जुड़े। यहाँ भी वे ज्यादा समय तक नहीं रुक पाए।
भारत में कुछ अपना और बड़ा करने की चाह में वे विदेश से भारत लौट आये। विदेश में काम करते हुए तनय ने काफी अनुभव हासिल कर लिया था। स्टार्टअप की दुनिया को वे अब बखूबी समझने लगे थे। प्रोडक्ट मैनेजमेंट, बिज़नेस स्ट्रेटेजी, स्टोरेज और डाटा मैनेजमेंट में उन्होंने महारत हासिल कर ली थी।
कारोबार की बारीकियों को समझने और दुनिया-भर में कारोबार के कामयाब मॉडल जानने के लिए तनय ने विश्वविख्यात बिज़नेस स्कूल ‘इन्सीड’ से एमबीए की पढ़ाई भी की। ‘इन्सीड’ के फ्रांस और सिंगापुर के केंद्रों में ट्रेनिंग लेते हुए तनय ने न सिर्फ कारोबार प्रबंधन की बारीकियों को समझा बल्कि अपने व्यक्तित्व को भी निखारा। उनमें इतना विश्वास भरा कि वे किसी भी सेक्टर में काम कर सकते हैं। ‘इन्सीड’ ने विज्ञान और इंजीनियरिंग की पृष्ठभूमि वाले तनय को भी एक कारोबारी और उद्यमी बनने के रास्ते दिखाए थे। उन्होंने ‘इन्सीड’ से एमबीए की डिग्री लेने के बाद भी कुछ सालों तक नौकरी की। उन्होंने लगभग एक साल तक डिजिटल विज्ञापनों की कंपनी ‘कोमली मीडिया’ के लिए काम किया।
तनय की ज़िंदगी में एक बड़ा बदलाव उस समय आया जब उन्हें गेमिंग इंडस्ट्री में दुनिया-भर में नाम कमा चुकी ‘ज़िंगा’ में काम करने का मौका मिला। ‘ज़िंगा’ में काम करने के अनुभव ने तनय को एक नयी और बेहद दिलचस्प दुनिया से फिर से परिचय करवाया। ये दुनिया थी मोबाइल फ़ोन पर गेम्स खिलाने और खेलने की दुनिया। दुनिया-भर में ‘ज़िंगा’ का खूब नाम था और वो अमेरिका में मोबाइल गेम्स की दुनिया पर राज कर रही थी। ‘ज़िंगा’ ने जब भारत में अपने कदम रखे तभी तनय भी इस कंपनी के साथ जुड़ गए। ‘ज़िंगा’ में तनय ने बहुत कुछ कुछ सीखा।
‘ज़िंगा’ में काम करने के दौरान ही तनय के मन में एक बार फिर अपने बलबूते कुछ नया और बड़ा करने की इच्छा जागी। इस बार ये इच्छा इतनी मजबूत और प्रभावशाली थी कि तनय ने ‘ज़िंगा’ में बड़े ओहदे और बड़ी मोटी रकम वाली नौकरी छोड़ दी। इसके बाद तनय अपने सपनों को साकार करने की कोशिश में जुट गए। इसी दौरान उनके कुछ साथियों ने भी ‘ज़िंगा’ को अलविदा कह दिया था। इन साथियों की सोच भी तनय जैसी ही थी। वे भी अपने दम पर कुछ बड़ा काम करने की सोच रहे थे। चूँकि सभी के विचार मेल खाते थे और लक्ष्य भी एक जैसा ही था, इन साथियों ने एक साथ मिलकर काम करने और अपनी नयी कंपनी बनाने का फैसला लिया। पांच यार-दोस्त मिले, कुछ बैठकें कीं और फैसला कर लिया कि मोबाइल फ़ोन की गेमिंग इंडस्ट्री में ही अपनी नयी कामयाबियों के झंडे गाड़ेंगे।
तनय तायल ने अंकित जैन, कुमार पुष्पेश, ऑलिवर जोंस और डिम्पल कुमार मैसुरिया के साथ मिलकर अक्टूबर ,2003 में ‘मूनफ्रॉग’ कंपनी शुरू की। शुरुआती दिनों में इन पाँचों ने बैंगलोर के आर्थर रोड पर एक गेराज जैसी जगह को अपना दफ्तर और प्रयोगशाला बनाकर काम किया। काम कुछ इतना शानदार और ग़ज़ब का हुआ कि ‘मूनफ्रॉग’ का बड़ा और शानदार दफ्तर अब बैंगलोर के ही कैम्ब्रिज रोड पर एक आलीशान बिल्डिंग में है। तनय तायल कहते हैं, “हम पाँचों कुछ अपना अलग और बड़ा करना चाहते थे। हमें जल्द ही एहसास हो गया कि हमें क्या करना है। उस समय परिस्थिति भी हमारे अनुकूल लग रही थी। इको-सिस्टम अच्छा था। गेमिंग इंडस्ट्री काफी फल-फूल रही थी। बिज़नेस काफी हो रहा था। वैसे भी हम सभी गेमिंग इंडस्ट्री को अच्छी तरह से समझ चुके थे। हम अपने अपने डोमेन में एक्सपर्ट थे। टेक्नोलॉजी, प्रोडक्टमेकिंग, मार्केटिंग ... सभी के बारे में हम जानते थे। हमें लगा कि परिस्थिति का फायदा उठाया जा सकता है और हमने अपनी कंपनी शुरू कर ली।” बड़ी बात ये है कि इन पांच साथियों ने मौके और परिस्थिति का भरपूर लाभ उठाया। बाज़ार में अपनी अलग पहचान बनाने और अपनी पैठ जमाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।
‘मूनफ्रॉग’ की संवृद्धि की संभावनाओं को देखते हुए सिकोया ने पहले एक मिलियन डॉलर की फंडिंग की। जैसे-जैसे संवृद्धि की संभावनाएं और भी बढ़ी टाइगर ग्लोबल और सिकोया ने ‘मूनफ्रॉग’ पंद्रह मिलियन अमेरिकी डॉलर की फंडिंग की। ‘मूनफ्रॉग’ अपनी स्थापना से ही गेमिंग इंडस्ट्री में धमाल मचा रही है। कंपनी मोबाइल फ़ोन गेमिंग की दुनिया में कामयाबी के नए-नए झंडे गाड़ रही है। ‘मूनफ्रॉग’ ने काफी कम समय में ही खूब नाम कमाया है। उसके बनाये मोबाइल फ़ोन गेम्स लोगों में काफी लोकप्रिय हैं। ‘मूनफ्रॉग’ ने अपने शुरुआती दिनों में विदेशी बाज़ार के लिए मोबाइल फ़ोन गेम्स बनाये, लेकिन अब ये कंपनी भारतीय बाज़ार के लिए देशी गेम्स भी बना रही है। ‘तीन पत्ती गोल्ड’ गेम काफी मशहूर है।
व्यक्तिगत तौर पर तनय का लगाव ‘गेम्स’ के साथ बचपन से ही था। वे कहते हैं, “बचपन से ही मुझे आर्टिस्टिक, इंजीनियरिंग और टेक्टोनिकल फ़ील्ड में काफी दिलचस्पी थी। मुझे कंप्यूटर और फिर बाद में मोबाइल फ़ोन पर गेम्स खेलने का भी शौक रहा है। और इस शौक को मैंने हमेशा बनाये रखा। मेरा शौक अब मुझे अपने काम में बहुत मज़ा दे रहा है।” तनय जब भी अपने बचपन के क़िस्से सुनाते हैं उनके चेहरे पर खुशी साफ़ झलकती हैं। वो मुस्कुरा उठते हैं। तनय ने हमें बताया कि जब वे दसवीं में थे तब वे अपने पड़ोसी के घर जाकर वहाँ कंप्यूटर पर गेम्स खेलते थे। बचपन में तनय ने ‘बॉम्बरमैन’ और ‘पैकमैन’ खूब खेला था। उनके ज़हन में वीडियो गेम कंसोल की यादें अब भी ताज़ा हैं। तनय ने ये भी बताया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उन्होंने “एज ऑफ़ एम्पायर्स’ ’ खूब खेला था। इस खेल के लिए दूसरे साथियों से जुड़ना और नेटवर्क बनना ज़रूरी होता है। खिलाड़ियों का नेटवर्क बनाकर खेले जाने वाले इस गेम से तनय को बहुत प्यार हो गया था।
चूँकि तनय बचपन से ही कंप्यूटर और मोबाइल फ़ोन पर गेम्स खेलने वालों की मानसिकता को अच्छी तरह से समझते थे, उन्होंने अपने इस अनुभव और ज्ञान का पूरा फायदा ‘मूनफ्रॉग’ को दिया। भारतीय लोगों की मानसिकता और उनके शौक को ध्यान में रखते हुए ही तनय ‘मूनफ्रॉग’ में नए-नए गेम्स बनवा रहे हैं। तनय का ये मानना है कि जिस गेम में नेटवर्किंग बनाने और बढ़ाने की ज़रुरत होती है वैसे गेम्स बनाने पर ही कंपनी को कई तरह से फायदे होते हैं।
तनय के जीवन में कुछ छोटी-बड़ी घटनाएं ऐसी भी होती रहती हैं जो उन्हें नए-नए मनोरंजक और रोमांचकारी गेम्स बनाने के लिए प्रेरित करती रहती हैं । ये घटनाएं तनय को उत्साहित और प्रेरित तो करती ही हैं उन्हें बहुत आनंद भी देती हैं । शुरुआती दिनों में एक दिन तनय को किसी ने देहरादून से फ़ोन किया और बताया कि उन्हें ‘मूनफ्रॉग’ का ‘तीन पत्ती गोल्ड’ इतना पसंद आया कि उन्होंने अपने पांच-छह दोस्तों से फोन खरीदवाया और उसमें तीन पत्ती गोल्ड डलवाया । ये वो दिन थे जब लोगों की फीडबैक के लिए तनय ने अपना नम्बर सार्वजनिक किया था । लेकिन कंपनी के गेम्स की लोकप्रियता के शीर्ष पर पहुँचने और इस तरह के के कॉल्स की झड़ी लगने से तनय ने अपना नंबर हटवा लिया । एक बार तनय को एयरपोर्ट पर एक कॉफ़ी शॉप के कर्मचारी से ये पता चला कि वो भी ‘मूनफ्रॉग’ के गेम्स खेलता है तब उन्हें बहुत खुशी हुई । जब तनय ये देखते हैं कि गली-कूचों में भी ‘मूनफ्रॉग’ के गेम्स खेले और खिलाये जा रहे हैं जब उन्हें यकीन होने लगता है कि भारत के हर मोबाइल फ़ोन में ‘मूनफ्रॉग’ के पहुँचने का सपना सच होगा ।