प्राचीन भारतीयों वैज्ञानिकों का वैश्विक विकास में योगदान
सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल, वैशेशिक दर्शन के व्याख्याता महर्षि कणाद, आयुर्वेदाचार्य चरक और सुश्रुत, ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर, भास्कराचार्य प्रथम, द्वितीय के नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों से अंकित हैं। भारत के प्रथम गणिताचार्य आर्यभट्ट, प्रसिद्ध गणितज्ञ रामानुजाचार्य और शून्य के प्रणेता ब्रह्मगुप्त को कौन नहीं जानता?
सांख्य दर्शन के अनुसार आध्यात्मिक आधिदैविक, आधिभौतिक, इन विविध दुखों का निवारण करना ही इस दर्शन का विषय है। इसके अनुसार पदार्थों का नाश नहीं होता, मात्र इसका रूपांतरण होता है। आधुनिक वैज्ञानिक भी द्रव्य के नित्य होने को स्वीकार करते हैं। विश्व के प्रथम अणु विज्ञानी महर्षि कणाद द्वारा प्रतिपादित परमाणु वाद के सिद्धांत से देश की प्रतिभा का आंकलन किया जा सकता है।
गणना पर आधारित ज्योतिष के महान आचार्य वराहमिहिर, शंकराचार्य प्रथम और द्वितीय विश्व में अतुलनीय हैं। सरल रीति से शुद्ध उत्तर प्रस्तुत करने में आचार्य वराहमिहिर निपुण थे। इन्होंने ज्योतिष के तीनों अंग तंत्रों पर अनेकों ग्रंथों की सर्जना करके भारतीय ज्ञान को समृद्ध किया।
सदविचार और सतसंकल्प मानव-जीवन के श्रेष्ठता के आधार स्तंभ हैं। इन गुणों से समन्वित प्राचीन भारतीय चिंतकों ने देश के विज्ञानमय कोष को अपनी अप्रतिम मेधा से समृद्ध किया है। सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल, वैशेशिक दर्शन के व्याख्याता महर्षि कणाद, आयुर्वेदाचार्य चरक और सुश्रुत, ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर, भास्कराचार्य प्रथम, द्वितीय के नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों से अंकित हैं। भारत के प्रथम गणिताचार्य आर्यभट्ट, प्रसिद्ध गणितज्ञ रामानुजाचार्य और शून्य के प्रणेता ब्रह्मगुप्त को कौन नहीं जानता?
सांख्य दर्शन के अनुसार आध्यात्मिक आधिदैविक, आधिभौतिक, इन विविध दुखों का निवारण करना ही इस दर्शन का विषय है। इसके अनुसार पदार्थों का नाश नहीं होता, मात्र इसका रूपांतरण होता है। आधुनिक वैज्ञानिक भी द्रव्य के नित्य होने को स्वीकार करते हैं। विश्व के प्रथम अणु विज्ञानी महर्षि कणाद द्वारा प्रतिपादित परमाणु वाद के सिद्धांत से देश की प्रतिभा का आंकलन किया जा सकता है। परमाणु पदार्थ का सूक्ष्मतम कण होता है। प्रत्येक परमाणु गति का स्पंदन है। इस स्पंदन के लिए वैदिक शब्द समंचन है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए दीर्घ जीवन की कामना से आयुर्वेद विज्ञान का विकास हुआ। हमारे प्रमुख आयुर्वेदाचार्य चरक एवं सुश्रुत ने क्रमशः चरक संहिता और सुश्रुत संहिता ग्रंथ की रचना की। चरक संहिता में आहार संबंधी सूक्ष्म विवेचन है। सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा की सर्वमान्य विधियां उपलब्ध है।
गणना पर आधारित ज्योतिष के महान आचार्य वराहमिहिर, शंकराचार्य प्रथम और द्वितीय विश्व में अतुलनीय हैं। सरल रीति से शुद्ध उत्तर प्रस्तुत करने में आचार्य वराहमिहिर निपुण थे। इन्होंन ज्योतिष के तीनों अंग तंत्रों पर अनेकों ग्रंथों की सर्जना करके भारतीय ज्ञान को समृद्ध किया। विक्रमादित्य द्वारा अयोध्या का पुनरुद्धार कर अयोध्या में स्थित विभिन्न तीर्थ स्थानों आदि को पूर्वस्थिति में करवाने का श्रेय इन्हीं को जाता है। कनक भवन में लगे प्रस्तर में भी इसका उल्लेख है।
भास्कराचार्य प्रथम के दो अन्य ग्रंथ महाभाष्करीय तथा लघुभास्करीय का अतिशय महत्तव है। भास्कराचार्य द्वितीय को खगोल विज्ञान का अद्भुत ज्ञान था। इन वैज्ञानिकों की ज्ञान विधि का लाभ सुदीर्घ आयु तक मिलता रहा है। 19 अप्रैल 1979 को भारत में निर्मित प्रथम कृत्रिम उपग्रह आर्यभट्ट, आद्य गणिताचार्य एवं खगोलशास्त्री की स्मृति में अंतरिक्ष में स्थापित किया गया।
आधुनिक वैज्ञानिकों में, पौधों में भी प्राण होने की सिद्धता देने वाले जगदीश चंद्र बसु, भौतिक विज्ञान में नोबल पुरस्कार पाने वाले चंद्रशेखर वेंकटरमण, रेडियो, खगोल विज्ञान व कॉस्मिक किरणों पर कार्य करने वाले डॉ. एस भागवंतम, डॉ. आत्माराम ने रसायन उद्योग को भारत में स्थापित कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रो. श्याम सुंदर जोशी, जिन्होंने विद्युत क्षेत्र भौतिक, रासायनिक क्रियाओं की खोज की।
रामेश्ववरम में जन्में भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अबुल पैकर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम ने रक्षा वैज्ञानिक के रूप में प्रक्षेपास्त्रों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। इस योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। कलाम ने समाज को लाभ पहुंचाने के लिए माइक्रोप्रोसेसर आधारित प्रणालियां तथा सॉफ्टवेयर, मल्टीचैनल टेलीमीटरी सिस्टम, कार्डिएक पेसमेकर, अनामिका, साइटोस्केन, दंत रोपण, हृदय वॉल्व तथा कूल्हे की हड्डी का इंप्लांट, लकवा पीड़ितों के लिए कैलीपर का निर्माण कर रक्षा प्रौद्योगिकों के माध्यम से समाज के कष्टों को कम करने के लिए अतुलनीय काम किया।
इतना ही नहीं डॉ कलाम आध्यात्मिक खोजों में लगे रहते थे। उन्होंने प्रकृति शीर्षक कविता में लिखा है,
अचानक एक फूल मेरे सिर पर गिरा
और बोला
ओ! सपने बनाने वाले
ईश्वर की तलाश क्यों?
वह हर कहीं है
जीवन उसका आशीर्वाद है।
प्रकृति से प्रेम करो
और उसके बनाए सभी जीवों से प्यार करो
तुम हर जगह ईश्वर को पाओगे।
आज हमारा देश आणविक संपन्न देशों में अग्रणी है। ऐसे समय में राष्ट्र के प्राचीन वैज्ञानिकों और आधुनिक वैज्ञानिकों के संगम में प्रत्येक भारतवासी को ज्ञानार्जन अनुसरण करके लाभान्वित होना नितांत आवश्यक है। क्योंकि हमारे वैज्ञानिको नें सत्यम् शिवम् सुंदरम् की कामना से वैज्ञानिक खोजें की हैं। वैज्ञानिक जीवन के कारण उन्नति राष्ट्र की होती हैं, वैज्ञानिक आवष्कारों में जीवन में हलचल होती है।
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