बंगलुरु का ये शख़्स 23 सालों से पानी का बिल भरे बिना भी रह रहा है मस्ती में
पूरी दुनिया में 78.30 करोड़ लोगों को साफ और सुरक्षित पानी नसीब नहीं होता है। यानी कि दुनिया में हर 9 में से 1 व्यक्ति साफ पानी के लिए तरस रहा है, लेकिन ऐसे में यदि एआर शिवकुमार की राह पर चला जाये तो पानी की सारी समस्याएं खत्म हो सकती हैं, वो भी पानी का बिल दिये बिना।
यदि आपसे पूछा जाये कि वो कौन सी चीज है, जिसके बिना आप अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं? तो आपका जवाब होगा, पानी। जी, पानी ही एक ऐसी ज़रूरत है जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन जिंदगी के लिए इतनी महत्वपूर्ण चीज़ होने के बावजूद क्या हम पानी की उतनी कद्र करते हैं, जितनी कि हमें करनी चाहिए? तो आपका जवाब होगा, शायद नहीं। आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरी दुनिया में 78.30 करोड़ लोगों को साफ और सुरक्षित पानी नहीं मिल पाता है। यानी कि दुनिया में हर 9 में से 1 व्यक्ति साफ पानी के लिए तरस रहा है। तो फिर ऐसे में ज़रूरत है हर व्यक्ति को बंगलुरु के एआर शिवकुमार बनने की...
एआर शिवकुमार, फोटो साभार: thebetterindiaa12bc34de56fgmedium"/>
मौसम की भविष्यवाणी करने वाली निजी कंपनी स्काईमेट के मुताबिक, 2017 मानसून में भारत में सामान्य से कम बारिश के आसार हैं।
ज़मीनें बारिश के लिए तरसनी शुरू हो गई हैं, पक्षी आसमान में टकटकी लगाये बूंदों का इंतज़ार कर रहे हैं। पानी की किल्लत जिस तरह से शहरों में बढ़ती जा रही है, उसे देख कर ये अंदाजा अच्छे से लगाया जा सकता है कि यदि हम अब भी न जागे तो आने वाले कुछ सालों में स्थिति बेहद भयानक होने वाली है। बंगलुरू जैसे शहरों में पानी की दिक्कत दिनों दिन बढ़ती जा रही है। यहां बड़ी-बड़ी हाउसिंग सोसाइटीज़ प्रत्येक रेज़िडेंट्स से मासिक तौर पर 5-8 हज़ार मेंटिनेंस लेने के बावजूद 1200-1300 के बीच पानी का अलग से पैसा ले रही हैं। 50 हज़ार से 1 लाख तक घर का किराया देने वालों के लिए 1200 सौ रूपये कोई बड़ी रकम नहीं है, लेकिन जो व्यक्ति दिन में 200 से 500 रूपये कमा रहा है वो पानी का पैसा कैसे दे पायेगा?
ग्लेशियर पिघल रहे हैं, नदियां सूख रही हैं, झीलों में आग लग जा रही है, जंगल जल रहे हैं, जानवर मर रहे हैं और इंसान पानी खरीद के पीने को मजबूर है। सालों पहले मुंबई के बारे में ये कहावत प्रचलित थी, कि 'अरे मुंबई तो ऐसा शहर है जहां पानी भी लोग पैसे दे कर पीते हैं" लेकिन अब भारत के अधिकतर शहरों का यही हाल होता जा रहा है। देश का भविष्य पूरी तरह से पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता पर टिका हुआ है, फिर भी हम हैं कि अब तक नींद से नहीं जागे। जिसे पानी मिल रहा है, उसके लिए सब ठीक है। बाकी किसकी प्यास बुझ रही है किसकी नहीं, इससे किसी का कोई लेना देना नहीं। महानगरों में हालात बहुत मुश्किल होते जा रहे हैं। दिन-ब-दिन पानी की समस्या गरीब जनता को शहर छोड़ने पर मजबूर कर रही है। ये अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले 5 सालों में पानी की समस्या एक विकराल रूप ले लेगी। सवा सौ अरब की आबादी वाले देश में पानी की किल्लत किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर देती है और पीने के पानी की बात करें तो लगभग हर शहर में पानी के टैंकर के पीछे बाल्टी और ड्रम लिए लोगों की लंबी कतारें लगती हैं। बीते तीन सालों की तरह इस ला भी सामान्य से कम बारिश का अनुमान लगाया जा रहा है। देश के लगभग सभी इलाकों में ठीक-ठाक बारिश होती है। इसके बावजूद देश में हर जगह का जलस्तर काफी तेजी से नीचे गिर रहा है। फिर हम पानी को बचाने के लिए गंभीर क्यों नहीं हैं? हम पानी के लिए पारंपरिक जल स्त्रोतों से अलग नये विकल्पों के बारे में क्यों नहीं सोचते?
भले ही हर कोई पर्यावरण और पानी जैसे संकट के लिए कुछ न सोचता हो लेकिन देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो पानी बचाने के लिए न केवल उपाय खोजते हैं बल्कि उन उपायों को अमल में भी लाते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं एआर शिवकुमार।
WHO यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन का कहना है, कि एक औसत परिवार की लगभग सभी जरूरतें 500 लीटर पानी में पूरी हो जाती हैं। दो दशक पहले अपने सर्वे के दौरान शिवकुमार को यो जानकर आश्चर्य हुआ था, कि बुरे से बुरा मॉनसून भी पानी की सभी जरूरतें पूरी कर सकता है। उसके बाद उन्होंने अपने घर में RWH सिस्टम लगवाने का फैसला लिया और बारिश के पानी को सभी घरेलू ज़रूरतों में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
बंगलुरु में रहने वाले शिवकुमार पेशे से वैज्ञानिक हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने पिछले 23 सालों से पानी का बिल नहीं भरा है। अगर आप सोच रहे हैं, कि ऐसा करके वे सरकार का नुकसान कर रहे हैं, तो आप अपने सोच का दायरा थोड़ा बढ़ा लीजिये। क्योंकि जब आपको उनके काम के बारे में पता चलेगा तो आपको अफसोस होगा कि हमने ऐसा क्यों नहीं किया।
दरअसल शिवकुमार ने अपने घर में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग (RWH) सिस्टम लगा रखा है जिसके माध्यम से वे बारिश के पानी को हर काम के इस्तेमाल में लाते हैं। यहां तक कि वे पीने के लिए भी इसी पानी का इस्तेमा करते हैं। पिछले दो दशकों से वे बारिश के पानी से ही अपनी जरूरतें पूरी कर रहे हैं।
साल 1995 में शिवकुमार जब अपना घर बनवा रहे थे, तो उनके दिमाग में ये खयाल आया कि बारिश का पानी हम बेकार क्यों होने देंते हैं? उन्होंने सोचा, कि कोई ऐसा उपाय खोजा जाये, कि जिससे बारिश का पानी बेकार न जाये और उनके काम में लाया जा सके। इसके लिए उन्होंने खूब माथापच्ची की। सबसे पहले उन्होंने ये पता लगाने की कोशिश की, कि एक साधारण परिवार में कितने पानी की आवश्यकता होती है? जब वे जानकारियां जुटा रहे थे, तो उन्हें पता चला कि एक औसत परिवार की लगभग सभी जरूरतें 500 लीटर पानी में पूरी हो जाती हैं। WHO यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन का डेटा भी यही कहता है। फिर उन्होंने गणित लगाना शुरू किया कि पिछले सौ सालों में बेंगलुरु शहर में कितनी बारिश हुई है। उन्हें ये जानकर आश्चर्य हुआ कि बुरे से बुरे मॉनसून से पानी की सभी जरूरतें पूरी की जा सकती हैं। बस फिर क्या था शिवकुमार ने ठान लिया कि वे अपने घर में भी RWH सिस्टम लगवाएंगे और बारिश के पानी से ही अपनी जरूरतें पूरी करेंगे। शिवकुमार कहते हैं,
'मैंने थोड़ी सी कैलकुलेशन की तो मुझे पता चला कि साल में लगभग 90 से 100 दिनों की बारिश होती है। तो इससे मैं लगभग 45,000 लीटर पानी तो इकट्ठा ही कर लूंगा। यदि मैं जमीन के नीचे टैंक बनवाता, तो मुझे मोटर की जरूरत पड़ती और उसके लिए अलग से बिजली का खर्च आता।'
बिजली के खर्च से बचने के लिए शिवकुमार ने ज़मीन के नीचे टैंक बनवाने की बजाय छत पर ही टैंक बनवाये हैं। उन्होंने हर टैंक में वॉटर फिल्टर लगा रखा है, जिससे पानी साफ होकर उन तक पहुंचता है। ये फिल्टर उन्होंने खुद बनाये हैं और इसका पेटेंट भी उनके पास है।
पानी की एक-एक बूंद की अहमियत समझने वाले शिवकुमार के घर में एक रीचार्ज पिट भी है। जिसमें इस्तेमाल हो चुका पानी पहुंचता है और जमीन का वॉटर लेवल भी सुधरता है। आप जानकर शायद चौंक जायें, लेकिन ये सच है कि सिर्फ एक साल के भीतर उनके घर के आसपास का जलस्तर 200 फुट से उठकर 40 फुट तक आ गया है। उन्होंने अपने घर में मोटर भी लगवा रखी है। बारिश के पानी से जमीन का पानी रीचार्ज होता है और वे मोटर के सहारे पानी खींचकर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं।
शिवकुमार बड़े जुगाड़ू किस्म के आदमी हैं। कपड़े धुलने और किचन के इस्तेमाल के बाद जो पानी बहता है वे उसे भी किसी न किसी तरह से इस्तेमाल में ले आते हैं। किचन से निकले पानी को वह अपने बगीचे में इस्तेमाल कर लेते हैं और सिर्फ पानी ही नहीं बिजली के लिए भी उन्होंने इको फ्रेंडली तरीका खोज लिया है। उन्होंने घर के ऊपर सोलर पैनल लगा रखे हैं, जिससे उनका घर हमेशा रोशन रहता है।
यदि शिव कुमार की तरह दुनिया के बाकी लोग भी जागरुक हो जायें और पानी बचाने की कवायद शुरू कर दें, तो पानी की समस्या बड़ी आसानी से दूर की जा सकती है और तेजी से गिरते जलस्तर को भी सुधारा जा सकता है। शिवकुमार का कहना है,
'यदि शहर के आधे घरों में भी RWH सिस्टम लग जाये तो बंगलुरु में पानी की समस्या कभी नहीं होगी और सिर्फ बंगलुरु ही क्यों, पूरे देश में यदि इसे अमल में लाया जाये तो पानी की समस्या तो दूर होगी ही, हमारी आने वाली पीढ़ी भी हमें शुक्रिया अदा करेगी।'
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