अब हो सकती है मुकेश अंबानी और भारती मित्तल से एलन मस्क की सीधी टक्कर, जानिए कैसे ?
अगर ब्रॉडबैंड सर्विस के ये सारे बड़े खिलाड़ी सेटेलाइट इंटरनेट सर्विस की प्रतिस्पर्द्धा में उतरते हैं तो फायदा उपभोक्ता को ही होगा.
के मालिक और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने कथित तौर पर भारत में सेटेलाइट इंटरनेट सेवाएं देने के लिए मंजूरी की मांग की है. यह सेटेलाइट इंटरनेट सेवा वह अपने ब्रांड स्टारलिंक के तहत भारत में लांच करना चाहते हैं.
ईटी के हवाले से यह खबर आ रही है कि एलेन मस्क की कंपनी SpaceX जल्द ही भारत में सेटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रदान करने के लिए GMPCS लाइसेंस लेने के लिए भारतीय एथॉरिटीज को अपना आवेदन भेज सकती है.
इसी के साथ SpaceX भारत में सेटेलाइट सेवा के जरिए ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशंस के लिए आवेदन करने वाली तीसरी कंपनी हो गई है. इसके पहले भारती समूह वाली कंपनी OneWeb और रिलायंस जियो सेटेलाइट इंटरनेट सर्विस के लाइसेंस के लिए आवेदन कर चुके हैं.
यदि एलन मस्क की कंपनी को यह लाइसेंस मिल जाता है तो घरेलू बाजार में कॉम्पटीशन बढ़ जाएगा. इस फ्यूचर टेक्नोलॉजी में अपने कदम जमाने और मार्केट में नंबर वन रहने के लिए इन तीन बड़ी कंपनियों के बीच खासी जंग हो सकती है.
अनुमान है कि 2025 तक भारत में सेटेलाइट इंटरनेट का बाजार 13 अरब डॉलर का हो जाएगा. ऐसे में एलन मस्क का इस क्षेत्र में कदम रखना अंबानी और मित्तल दोनों के लिए कड़ी चुनौती होगी.
सेटेलाइट इंटरनेट एक तरह से इंटरनेट मार्केट में गेम चेंजर भी साबित हो सकता है. इसके जरिए दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को कनेक्ट करना आसान होगा, जहां टॉवर कम हैं और सामान्य इंटरनेट सेवाएं आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं. इसके अलावा सेटेलाइट इंटरनेट की स्पीड भी काफी तेज होती है. अभी हम जो इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं, उसकी औसत स्पीड 10 से 40 MBPS की होती है, लेकिन सेटेलाइट इंटरनेट की बेसिक स्पीड ही 300 MBPS से शुरू होती है.
सेटेलाइट इंटरनेट का इस्तेमाल अभी सिक्योरिटी एजेंसीज, इंटेलीजेंस एंजेंसीज समेत हाई सिक्योरिटी सर्विसेज के द्वारा ही किया जाता रहा है क्योंकि सामान्य वेब इंटरनेट के मुकाबले यह ज्यादा सुरक्षित भी होता है. इसके अलावा अभी सेटेलाइट इंटरनेट सर्विस सामान्य इंटरनेट सर्विस के मुकाबले बहुत महंगी होती है. एलन मस्क की स्टारलिंक की कीमत सालाना एक लाख रुपए है. महंगा होने के कारण दुनिया में कहीं भी यह इंटरनेट आम उपभोक्ताओं के बीच पॉपुलर नहीं है.
हालांकि किसी चीज के महंगे होने का मार्केट गणित ये कहता है कि उसके उपभोक्ताओं की संख्या ज्यादा नहीं है. जब मोबाइल फोन नया-नया आया था तो उसकी सेवाएं भी बहुत महंगी थीं. समय के साथ उसके विस्तार ने उसे सस्ता कर दिया. उम्मीद की जा रही है कि सेटेलाइट इंटरनेट के क्षेत्र में बड़े प्लेयर्स के आने और बड़े पैमाने पर सेटेलाइट इंटरनेट सेवा उपलब्ध करवाने का अर्थ है कि यह सर्विस सस्ती होगी और आम उपभोक्ताओं तक भी इसकी पहुंच बढ़ सकती है. कॉम्पटीशन का फायदा अंत में उपभोक्ताओं को ही होगा.
Edited by Manisha Pandey