पुरुषों के अंडरवियर से पता चल जाता है मंदी कब आने वाली है, मजाक नहीं... दिग्गज अर्थशास्त्री की है ये थ्योरी
फेडरल रिजर्व के पूर्व प्रमुख एलन ग्रींसपैन कहते हैं कि मंदी के दौरान पुरुषों के अंडरवियर की सेल्स गिर जाती है. इसके अलवा टी-शर्ट की बिक्री में भी गिरावट देखने को मिलती है.
इन दिनों हर तरफ मंदी (Recession) की चर्चा हो रही है. कुछ अर्थशास्त्रियों ने तो यहां तक कहा है कि अमेरिका में इस साल या अगले साल तक मंदी आना तय है. अमेरिका की इकनॉमी पिछली दो तिमाही से लगातार सिकुड़ रही है. हालांकि, भारत में अभी मंदी की कोई आहट नहीं है, जिसका भरोसा खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण दिला चुकी हैं. किसी देश में मंदी आने वाली है या आ सकती है इसका अंदाजा अर्थव्यवस्था के संकुचन से लगने लगता है. खैर, इसके अलावा भी एक तरीका है, जिससे मंदी के संकेत मिलते हैं. वह तरीका है अंडरवियर और टीशर्ट की सेल. जी हां, ये सुनने में भले ही अटपटा है, लेकिन सच है.
अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के पूर्व प्रमुख एलन ग्रींसपैन (Alan Greenspan) मंदी पर ऐसे ही नजर रखते थे. वह पुरुषों के अंडरवियर और टीशर्ट की ब्रिक्री को ट्रैक करते थे और मंदी का अनुमान लगाते थे. एलन ग्रींसपैन की इस थ्योरी को बेतुका समझने की गलती बिल्कुल ना करें, उनकी गिनती बड़े अर्थशास्त्रियों में हुआ करती है. ग्रींसपैन 1987 से लेकर 2006 तक फेडरल रिजर्व के प्रमुख रहे, जो अब करीब 96 साल के हो चुके हैं. वह मानते थे कि पूरे साल अंडरवियर की बिक्री समान बनी रहती है, लेकिन अगर मंदी आती है तो इसमें गिरावट दिखने लगती है. दरअसल, मंदी के दौरान लोग इतना अधिक दबाव महसूस करते हैं कि वह अंडरवियर पर कम पैसे खर्च करने लगते हैं. उनका मानना था कि जब ऐसा वक्त आने लगता है तो समझ लेना चाहिए कि मंदी दस्तक देने वाली है.
तो भारत में मंदी आ रही है या नहीं?
अगर ग्रींसपैन की थ्योरी के हिसाब से एक अंडरवियर ब्रांड के सेल्स के आंकड़ों को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. अगर पेज इंडस्ट्रीज कंपनी के अंडरवियर ब्रांड जॉकी की बात करें तो पिछले साल के मुकाबले जनवरी-मार्च 2022 में कंपनी की बिक्री 26 फीसदी बढ़ी है. बता दें कि कॉटन महंगा होने की वजह से अंडरवियर के दामों में कंपनी ने करीब 13 फीसदी की बढ़ोतरी की है, उसके बावजूद नतीजे शानदार हैं. वहीं टी-शर्ट ब्रांड वी-मार्ट को ले लें तो उसके रेवेन्यू में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. यानी इन संकेतों तो नहीं लगता कि भारत में मंदी आने के अभी कोई आसार हैं.
भारत को मंदी से बचाने के हो रहे कई उपाय
निर्मला सीतारमण ने कुछ समय पहले ही कहा था कि महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर कदम उठा रहा है. बता दें कि पिछले कुछ महीनों में रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 1.4 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है और अब यह दर 5.40 फीसदी हो गई है. उन्होंने बांग्लादेश या पाकिस्तान के बजाय भारत की तुलना अमेरिका से करने की बात कही. उन्होंने कहा कि बुरे हालात में भी पिछले 2 सालों में भारत को विश्व बैंक, आईएमएफ और दूसरी वैश्विक संस्थाओं ने मजबूत रैंकिंग दी है. वित्त मंत्री ने बताया कि अमेरिका की जीडीपी में दूसरी तिमाही में 0.90 फीसदी और पहली तिमाही में 1.6 फीसदी की गिरावट आई, जिसे उन्होंने औपचारिक मंदी का नाम दिया है.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट भी कहती है भारत में नहीं आएगी मंदी
ब्लूमबर्ग के सर्वे में भारत में मंदी की संभावना को शून्य कहा गया है. ब्लूमबर्ग ने कुछ अर्थशास्त्रियों के बीच एक सर्वे किया, जिसमें यह बात सामने आई. सर्वे के मुताबिक सबसे बुरे आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका के लिए अगला साल और भी खराब साबित हो सकता है. अगले साल श्रीलंका के मंदी की चेपट में आने की संभावना 85 फीसदी है. यह आंकड़ा न्यूजीलैंड के लिए 33 फीसदी, ताइवान के लिए 20 फीसदी, ऑस्ट्रेलिया के लिए 20 फीसदी और फिलीपींस के लिए 8 फीसदी है. इसके अलावा चीन के मंदी की चपेट में आने की संभावना 20 फीसदी है. दक्षिण कोरिया और जापान के लिए यह आंकड़ा करीब 25 फीसदी है. एशिया में मंदी की संभावना 20-25 फीसदी है. अमेरिका के मंदी के चपेट में आने की संभावना 40 फीसदी है, जबकि यूरोप के सामने 50-55 फीसदी जोखिम है.
मंदी का मतलब है आर्थिक गतिविधियों में कमी आ जाना. इसका नतीजा ये होता है कि सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में निगेटिव ग्रोथ रेट देखने को मिलती है.
अमेरिका में मंदी का आना तय है!
भले ही भारत में मंदी आने की बात को निर्मला सीतारमण से सिरे से खारिज कर दिया है, लेकिन अमेरिका में मंदी आना तय है. फाइनेंशियल टाइम्स और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो बूथ के ज्वाइंट सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ है. सर्वे में 10 अर्थशास्त्रियों से बात की गई, जिनमें से 7 ने कहा कि अमेरिका में इस साल नहीं तो अगले साल मंदी का आना तय है.
भारत पर क्यों नहीं होगा मंदी का असर
मंदी का असर भारत पर नहीं होगा या अगर होगा भी तो बहुत ही मामूली. ऐसा इसलिए क्योंकि मंदी की वजह से भारत के निर्यात पर असर होगा. भारत में लोगों को खाने-पीने की चीजें आयात करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अधिकतर चीजें तो भारत में ही उगाई जाती हैं. वहीं दूसरी ओर भारत की बड़ी आबादी एक मजबूत मार्केट की तरह काम करेगी, जो अर्थव्यवस्था के पहिए को रुकने नहीं देगी. यही वजह है कि हर मंदी से भारत आराम से बाहर निकल जाता है, क्योंकि जरूरी चीजों के लिए हम आयात पर निर्भर नहीं हैं.
मंदी से क्यों डरते हैं लोग?
यूं ही लोग मंदी से नहीं डरते... जब मंदी आती है तो कई ऐसी चीजें होती हैं, जिसका असर हर किसी पर पड़ता है. निवेश का माहौल बिगड़ जाता है. इससे लोगों का खर्च करने का पैटर्न भी बदल जाता है. खाने-पीने या इस्तेमाल की कई चीजों पर लोग अंकुश लगा देते हैं, जिससे मांग बहुत ज्यादा घट जाती है और कई बार तो कुछ कंपनियां बंद होने की कगार तक पहुंच जाती हैं. कंपनियां बंद होने या मांग घटने की वजह से नौकरियों पर संकट पैदा हो जाता है. छंटनी का दौर चल पड़ता है, जिससे बहुत सारे लोगों की आजीवीका पर बुरा असर पड़ता है. जो बड़े बिजनस होते हैं, उन पर मंदी का ये असर होता है कि वह भारी नुकसान झेलते हैं और कई बार तो वह कर्ज चुकाने में डिफॉल्ट तक कर जाते हैं. मंदी के दौर में किसी कंपनी या किसी व्यक्ति के दिवालिया होने की खबरें भी आने लगती हैं.