पर्यावरण बचाने के लिए जबलपुर के इस परिवार से लेनी चाहिए सीख
विकास की अंधे दौर में आज यह बात घर में खड़े किसी डेढ़ सौ साल पुराने पीपल पेड़ की नहीं, बल्कि जुनून की हद तक पर्यावरण बचाने के जबलपुर के इस पूरे परिवार के अद्भुत समर्पण की है। परिवार के मुखिया ने पिता के संकल्पों को महत्व देते हुए आज भी उसे न काटकर प्रकृति में अथाह आस्था की नई मिसाल पेश की है।
विकास की अंधी दौड़ में, आज जबकि पेड़ों को काटने में सरकारी विभाग भी पीछे नहीं, दूसरी तरफ तमाम बड़ी हस्तियां पेड़-पौधों, वनस्पतियों से पर्यावरण हरा-भरा रखने में अपना पूरा जीवन समर्पित किए हुए हैं, जबलपुर (म.प्र.) के योगेश केसरवानी के परिवार ने एक नई मिसाल पेश की है। कहा भी गया है कि लोक कल्याण की दृष्टि से दस कुँओं के बराबर एक बावड़ी का, दस बावडिय़ों के बराबर एक तालाब का, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र का और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष का महत्व होता है। यानी दस पुत्र अपने जीवन काल में जितना सुख, लाभ देते हैं, उतना एक वृक्ष सामाजिक जीवन में पर्यावरण को हरा-भरा बनाए रखता है। सन् 1994 में योगेश के पिता ने जबलपुर में अपने घर का निर्माण कराया था।
योगेश बताते हैं कि जिन दिनो में उनका मकान बन रहा था, उस स्थान पर उन्होंने एक भी पेड़ को नष्ट नहीं करने दिया। घर बनकर तैयार हो गया। परिवार के लोग उसमें रहने भी लगे। परिवार में सदस्यों की संख्या बढ़ती गई तो योगेश को अतिरिक्त स्थान की जरूरत महसूस होने लगी। ले-देकर मकान को और बड़ा कर देना ही उनके सामने एक मात्र विकल्प रहा। अब इस काम में एक पीपल का पेड़ आड़े आने लगा, जो घर का निर्माण होने के वक़्त काटा नहीं गया था। ऐसा इसलिए भी नहीं किया गया कि घर में ही पीपल का पेड़ होने से परिवार के लोगों को पूजा-पाठ के लिए अन्यत्र नहीं जाना पड़ेगा। सो, पीपल का पेड़ लगभग डेढ़ सौ वर्षों से अपने स्थान पर बना हुआ है। उनके परिवार की भी मान्यता है कि पीपल के पेड़ पर तैतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। योगेश के आवासीय परिसर में वह पीपल का पेड़ अपनी भारी-भरकम, मोटी-मोटी शाखाओं के साथ आज भी जस का तस लहरा रहा है। योगेश की पत्नी हर सुबह उसकी छांव में बैठकर पूजापाठ करती हैं।
योगेश केसरवानी बताते हैं कि घर का विस्तार करने का समय आया तो उन्होंने पेड़ कटवाया नहीं, बल्कि उसे सुरक्षित रखते हुए उसके आसपास के हिस्से में घर अतिरिक्त निर्माण करा लिया। उनके पूरे परिवार के बारे में अब धारणा बन चुकी हैं कि हम प्रकृति से प्यार करने वाले लोग हैं। पिता का दृढ़ संकल्प रहा था कि इस पेड़ को जब तक हो सके, बचाए रखें। भगवत् गीता में भी पीपल के पेड़ को अतिरिक्त महत्व दिया गया है। वह कहते हैं कि 'हमारे ऋषि मुनि जानते थे कि प्रकृति जीवन का स्त्रोत है और पर्यावरण के समृद्ध और स्वस्थ होने से ही जीवन समृद्ध और सुखी होता है। केवल इतना ही नहीं वे तो प्रकृति की देव शक्ति के रूप में अर्चना उपासना करते थे और प्रकृति को 'परमेश्वरी' भी कहते थे। जहां एक ओर हमारे दूर द्रष्टा मुनियों ने जीवन के आध्यात्मिक पक्ष पर चिन्तन किया, पर्यावरण पर भी उतना ही ध्यान दिया।' इसीलिए आज तक उन्होंने पेड़ काटा नहीं, बल्कि उसके आसपास ही घर बना लिया है।
अब तो पीपल का पेड़ ही योगेश केसरवानी के इलाके का लैंडमार्क बन गया है। उनका परिवार आम लोगों को संदेश देना चाहता है कि पीपल के पेड़ को पवित्र समझते हुए इस तरह भी वृक्षों का जीवन बचा सकते हैं। इस पीपल के पेड़ की शाखाएं उनके घर की खिड़कियों पर नाचती रहती हैं। वहां से गुजरने वाले लोग भी यह दृश्य देखकर अपने कदम थाम लेते हैं। वह बताते हैं कि जब इस घर को पहली बार बनाया गया था, उस वक़्त इंजीनियरिंग के छात्र यहां पर आया करते थे।
इस पेड़ की विचित्र आकृति पर मुग्ध होते हुए उसे समझने के प्रयास करते थे। शायद, इस पेड़ ने ही उनके परिवार को हर परेशानी से बचाए रखा है। वैसे भी पीपल का वृक्ष वातावरण में दिन-रात ऑक्सीजन छोड़ता रहता है। इसमें पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने की अद्भुत क्षमता होती है। यह पर्यावरण-मित्र अब उनके पूरे परिवार का जीवन साथी बन गया है। उन्हे लगता है कि यह बुजुर्ग देव-वृक्ष उनके परिवार की हर दुख-विपदा से रक्षा करता है। तब हमारा फर्ज बन जाता है कि हम भी उसकी प्राणपण से रक्षा करते रहें।