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वैश्विक भूख सूचकांक मापने का क्या है पैमाना? भारत क्यों जता रहा है आपत्ति?

भारत सरकार ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि वैश्विक भूख सूचकांक भ्रामक है और इसमें भारत की छवि को खराब करने का प्रयास किया गया है.

वैश्विक भूख सूचकांक मापने का क्या है पैमाना? भारत क्यों जता रहा है आपत्ति?

Wednesday October 19, 2022 , 4 min Read

वैश्विक भूख सूचकांक (Global Hunger Index) के नवीनतम जारी आंकड़े में भारत 127 देशों की सूची में 107 वें स्थान पर आ गया है. साल 2021 में भारत 116 देशों में 101वें स्थान पर था. वैश्विक भूख सूचकांक में भारत को 29.1 स्कोर के साथ गंभीर स्तर की श्रेणी में रखा गया है. हालांकि यह साल 2000 के 38.8 अंक के खतरनाक स्तर में सुधार को दर्शाता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बाल पोषण का प्रदर्शन काफी चिंताजनक है. लेकिन भारत सरकार ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि वैश्विक भूख सूचकांक भ्रामक है और इसमें भारत की छवि को खराब करने का प्रयास किया गया है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि जिन चार संकेतकों में तीन का इस्तेमाल किया गया है वे बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े हैं तथा पूरी आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. उन्होंने कहा कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार, अल्पपोषण, स्टंटिंग (नाटापन), वेस्टिंग (ऊंचाई के हिसाब से कम वजन) और बाल मृत्यु दर के संकेतक अपने आप में भूख मापने के लिए पर्याप्त नहीं हैं क्योंकि अकेले ये भूख को नहीं दर्शाते हैं. मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि भूख को मापने वाले सूचकांक में इस्तेमाल करने वाले कई उपाय संभवत: प्रासंगिक हैं.

पिछले साल खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों की राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने एक सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा में कहा था कि वैश्विक भूख सूचकांक (जीएसआई) भारत की वास्तविक स्थिति नहीं चित्रित करता क्योंकि यह भूख मापने का गलत पैमाना है.

कैसे की जाती है वैश्विक भूख सूचकांक की गणना?

वैश्विक भूख सूचकांक वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूख को मापता है. यह सूचकांक तीन क्षेत्रों के चार बिंदुओं को निर्देशित करता है.

  • खाद्य आपूर्ति के कारण पर्याप्त पोषणयुक्त भोजन न मिलना (अल्पपोषण)
  • बच्चों में नाटापन की दर
  • लंबाई-वजन अनुपात (लंबाई के हिसाब से कम वजन)
  • बाल मृत्यु दर के तहत पांच वर्ष से कम आयु का मृत्यु दर

मानकीकृत अंकों के आधार पर होती है गणना

तीन बिंदुओं के तहत 4 क्षेत्रों में प्रत्येक को 1988 के बाद से उस संकेतक के लिए दुनियाभर में देखे गए उच्चतम स्तर के देशों के मूल्यों के आधार पर एक मानकीकृत स्कोर दिया जाता है.

मानकीकृत अंको को फिर प्रत्येक देश के लिए वैश्विक भूख सूचकांक  स्कोर की गणना के लिए इकट्ठा किया जाता है. कुपोषण और बाल मृत्यु दर प्रत्येक वैश्विक भूख सूचकांक  स्कोर में एक तिहाई का योगदान देता है जबकि लंबाई-वजन अनुपात का प्रत्येक स्कोर में छठा भाग रहता है.

0 सबसे अच्छा और 100 सबसे खराब पॉइंट

वैश्विक भूख सूचकांक स्कोर को 100 पॉइंट स्केल पर चिह्नित किया जाता है. इसमें 0 सबसे अच्छा स्कोर (कोई भूख नहीं) है और 100 सबसे खराब है. इसका मतलब हुआ कि जितना कम स्कोर होता है उस देश का प्रदर्शन उतना बेहतर माना जाता है.

वैश्विक भूख सूचकांक  ने 2015 में अपनी कार्यप्रणाली में संशोधन किया था जिसके कारण अधिकांश देशों के वैश्विक भूख सूचकांक  स्कोर में ऊपर की ओर बदलाव आया है.

  • 9.9 या उससे नीचे का स्कोर – निम्न
  • 10.0 से 19.9 का स्कोर – मध्यम
  • 20.0 से 34.9 का स्कोर – गंभीर
  • 35.0 से 49.9 का स्कोर – खतरनाक
  • 50.0 या उससे अधिक का स्कोर - बेहद खतरनाक

कैसे हासिल होता है डेटा?

वैश्विक भूख सूचकांक मुख्य रूप से सूचकांक में शामिल सभी देशों में स्थित बहुपक्षीय एजेंसियों और संगठनों से डेटा प्राप्त करता है ताकि भाग लेने वाले सभी देशों के लिए प्रत्येक बिंदुओं के तहत स्कोर की गणना की जा सके. इन संगठनों में खाद्य और कृषि संगठन और यूनिसेफ शामिल हैं.

कब हुई शुरुआत?

इस रैंकिंग की शुरुआत साल 2000 से हुई. इसका उद्देश्य 2030 तक दुनियाभर में भुखमरी की समस्या को खत्म करना था. साल 2000 में भारत का GHI स्कोर 38.8 था. साल 2007 आते-आते यह स्कोर घटकर 36.3 हो गया. 2014 में ये स्कोर खतरनाक स्तर से नीचे आया. 2014 में यह स्कोर 28.2 था. तब भारत गंभीर श्रेणी के देशों में शामिल था. यह अभी भी गंभीर स्तर पर बरकरार है। हालांकि, इस स्कोर में बढ़ोतरी (29.1) हुई है.