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... यहाँ आज भी घायल आदिवासी अपने शरीर में धंसे तीर लिए अस्पताल पहुंचते हैं

डॉक्टरों ने जटिल सर्जरी के ज़रिए निकाला आदिवासी महिला के पेट में धंसा तीर

... यहाँ आज भी घायल आदिवासी अपने शरीर में धंसे तीर लिए अस्पताल पहुंचते हैं

Tuesday June 21, 2016 , 2 min Read

इंदौर के डॉक्टरों ने आज यहां शासकीय महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय (एमवायएच) में जटिल सर्जरी के दौरान 40 वर्षीय आदिवासी महिला के पेट में धंसा तीर निकालकर उसे नया जीवन दिया। एमवायएच में इस कामयाब सर्जरी को अंजाम देने वाली 10 सदस्यीय टीम के अगुवा डॉ. अरविंद घनघोरिया ने पीटीआई को बताया कि मनु (40) के पेट में धंसे तीर को करीब चार घंटे के भीतर निकाल दिया गया। ऑपरेशन के बाद मरीज़ की हालत हालांकि गंभीर है, लेकिन उसकी जान को कोई ख़तरा नहीं है।

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उन्होंने बताया कि अलीराजपुर जिले में रहने वाली मनु पर उसके पति ने कल 19 जून की दोपहर घरेलू विवाद में तीर चला दिया, जो उसके पेट को भेदता हुआ करीब 10 इंच की गहराई तक धंस गया। बुरी तरह घायल आदिवासी महिला को अलीराजपुर के ज़िला अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से उसे कल देर रात इंदौर के एमवायएच लाया गया।

सरकारी सर्जन ने बताया, ‘आदिवासी महिला के पेट में तीर घुसने के बाद उसका काफी खून बह चुका था। अगर समय रहते यह तीर नहीं निकाला जाता, तो उसकी जान जा सकती थी।’ आधुनिक युग में तीर.कमान से हमले की घटनाएँ कई लोगों को चौंका सकती हैं, लेकिन पश्चिमी मध्यप्रदेश के झाबुआ और अलीराजपुर जिलों के आदिवासियों में इस प्राचीन हथियार का इस्तेमाल आज भी जारी है।

घनघोरिया ने बताया, ‘दोनों जिलों में आदिवासी विवाद और रंजिश की स्थिति में आये दिन एक.दूसरे पर तीर.कमान से हमला कर देते हैं। इन वारदातों में घायल होने वाले ज्यादातर आदिवासी अपने शरीर में धंसे तीर लिये एमवायएच पहुंचते हैं, जहां सर्जरी के ज़रिए तीरों को उनके जिस्म से बाहर निकाला जाता है।’ (पीटीआई)