फैशन डिजाइनर तो नहीं बनीं, लेकिन खड़ी कर ली 2 करोड़ की कंपनी
अदिति ने खुद के दम पर करीब दो करोड़ से अधिक टर्नओवर का बिजनेस स्थापित किया। लेकिन उन्हें इस बात का डर था कि उसका परिवार उसके बिजनेस को कहीं बंद न करवा दे। इसी कारण अदिति ने दो साल पहले नौकरी छोड़ने के बाद भी घर वालों को इस पूरे बिजनेस की जानकारी तक नहीं दी। लेकिन आज जब चारों तरफ अदिति के नाम का डंका बज रहा है तो परिवार के लोग भी उसकी खुशी में शरीक हो रहे हैं।
ग्रैजुएशन के बाद अदिति चौरसिया की इच्छा थी कि वह फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई करेंगी, लेकिन परिवार ने इसकी अनुमति नहीं दी। क्या पता था, कि आगे चलकर अदिति इससे भी कुछ बड़ा करने वाली हैं।
पढ़ाई पूरी होते ही अदिति ने एक बिजनेस शुरू किया जिसे 'तितलियां' नाम दिया। बिजनेस के तहत वे कस्टमाइज्ड हैंडमेड कार्ड बनाकर बेचती थीं। बिजनेस चला तो देश-विदेश से ऑर्डर आने लगे। परिवार को पता चला तो उन्होंने बिजनेस को बंद करवाकर अदिति को कहा कि सिर्फ नौकरी पर ध्यान दो, ये बिजनेस मत करो।
एक महिला की इच्छाशक्ति वो ताकत होती है जो बड़े-बड़े पहाड़ों को भी झुकने पर मजबूर कर देती है। जब वो अपने मन में कुछ ठान लेती है तो उसको पूरा करने से उसे कोई रोक नहीं सकता। समाज की तमाम बंदिशों को वो आसानी से तोड़ देती है, लेकिन जब उसके घरवाले ही उसे कैद करने लगे तो वो एक तरह के द्वंद्व में फंस जाती है। वहां से निकलना बहुत मुश्किल काम होता है। एक महिला की कोशिश होती है कि वे खुद को उस बुलंदी तक ले जाए जहां पहुंचकर उसके परिवार के लोग उस पर गर्व महसूस करें।
कुछ ऐसी ही जिंदगी छत्तीसगढ़ के गढ़ी मलहरा की रहने वाली अदिति चौरसिया की थी। लेकिन उन्होंने इस द्वंद्वयुद्ध पर अपने बलबूते विजय हासिल की। अदिति ने खुद के दम पर करीब दो करोड़ से अधिक टर्नओवर का बिजनेस स्थापित किया। लेकिन उन्हें इस बात का डर था कि उसका परिवार उनके बिजनेस को कहीं बंद न करवा दे। इसी कारण अदिति ने दो साल पहले नौकरी छोड़ने के बाद भी घर वालों को इस पूरे बिजनेस की जानकारी तक नहीं दी। आज जब चारों तरफ अदिति के नाम का डंका बज रहा है तो परिवार के लोग भी उसकी खुशी में शरीक हो रहे हैं।
जब अपनों ने ही लगाईं बंदिशें
ग्रैजुएशन के बाद अदिति चौरसिया ने की इच्छा थी कि वह फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई करेंगी। अदिति को परिवार ने फैशन डिजाइनिंग करने की अनुमति नहीं दी। मार्केटिंग की पढ़ाई के लिए वे इंदौर चली गईं। अदिति के मुताबिक,'मैं गांव की पहली लड़की थी जो कोएड स्कूल में पढ़ी थीं। सिर्फ ऐसे स्कूल में पढ़ने की वजह से मेरे बारे में लोग न जाने कैसे-कैसी बातें करते थे। इससे मन दुखता भी था, लेकिन मैं इन सबसे बाहर निकली। एमबीए करने के साथ ही मैंने डिसाइड किया कि जॉब में बंधकर काम न करते हुए अपना कुछ करना है।'
पढ़ाई पूरी होते ही अदिति ने एक बिजनेस शुरू किया जिसे 'तितलियां' नाम दिया। बिजनेस के तहत वे कस्टमाइज्ड हैंडमेड कार्ड बनाकर बेचती थीं। बिजनेस चला तो देश-विदेश से ऑर्डर आने लगे। परिवार को पता चला तो उन्होंने बिजनेस को बंद करवाकर अदिति को कहा कि सिर्फ नौकरी पर ध्यान दो, ये बिजनेस मत करो। परिवार ने बिजनेस बंद ही करवा दिया। उनका परिवार इस पेशे को सही नहीं मानता था और वे चाहते थे कि अदिति स्कूल में पढ़ाने जैसा कोई 'आरामदायक' और लड़कियों के लिए आदर्श मानी जाने वाली नौकरी ही करे।
अदिति की हौसलों वाली उड़ान
परिवार के दबाव के बाद अदिति इंदौर के कॉलेज में पढ़ाने लगीं। इसी दौरान स्टार्टअप शुरू किया जिसका नाम था 'इंजीनियर बाबू'। खुद को बुलंदी तक पहुंचाने के लिए आधा दिन नौकरी व आधा दिन बिजनेस किया। इंजीनियर बाबू कंपनी का काम मोबाइल एप्लिकेशन और वेबसाइट बनाना है। बिजनेस में मन लगते ही नौकरी छोड़ दी। फिर एक और स्टार्टअप 'मोटरबाबू' शुरू किया, यह कंपनी कस्टमर की गाड़ी को ऑन डोर सर्विस देकर गाड़ी सर्विस और रिपेयर करवाती है। पिछले साल इसका टर्न ओवर दो करोड़ का हो गया।
अदिति के मुताबिक ,'कई बार लगता था कि नौकरी छोड़ने के बारे में परिजनों को बता दूं, लेकिन फिर मैंने तय किया है कि घरवाले मेरे काम से इस बात को जानें, तो बेहतर होगा।' कुछ समय बाद जब घरवालों ने अखबार में पढ़ा कि छतरपुर की लड़की ने बनाई 2 करोड़ की कंपनी तब उनको वो सम्मान मिला जिसके लिए अदिति संघर्ष कर रही थी। आज उनके पास 45 से ज्यादा लोगों की टीम काम कर रही है।
दादा जी के नाम पर बनवाना चाहती हैं अस्पताल
हर इंसान की तरह अदिति भी खूब पैसा कमाना चाहती हैं पर उसका लक्ष्य कुछ और है। वह इस पैसे से अपने गांव में दादाजी के नाम से एक अस्पताल बनवाना चाहती है। अदिति कहती हैं कि बिजनेस शुरू करने के लिए बहुत कुछ सहा है और खोया भी है। इसलिए युवाओं विशेषकर लड़कियों को वह कहती है कि आत्मनिर्भर बनना चाहिए।