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जनसंख्या नियंत्रण के लिए नये शगुन के साथ नई नीति की भी दरकार

खुशहाल परिवार के लिए जनसंख्या को स्थिर बनाना बहुत जरूरी है, लेकिन क्या बढ़ती जनसंख्या को महज 'नई पहल के शगुन जैसी योजनाएं रोक पाएंगी? क्या दो बच्चे-भविष्य अच्छे की कविता का भावार्थ प्रदेश की लगभग आधी निरक्षर जनसंख्या चालीस साल की कवायद से कुछ सीख पाई? या हम दुनिया की तर्ज पर सिर्फ जनसंख्या दिवस मना कर खानापूर्ति करते रहेंगे?

<b>फोटो साभार: सोशल मीडिया</b>

फोटो साभार: सोशल मीडिया


नवविवाहितों को 'नई पहल किट का उपहार, एक नई शुरुआत तो हो सकती है किंतु जनसंख्या विस्फोट के जिस मुहाने पर देश का सबसे बड़ा सूबा खड़ा है उसको नियंत्रित करने के लिये 'नये शगुन के साथ 'नई नीति की भी दरकार है। 

बढ़ती जनसंख्या के बरक्स प्राकृतिक संसाधनों की होती कमी विश्व की सभी सरकारों के लिये चिंतन और चिंता का कारण बन गया है। किंतु समस्या है तो सामाधान भी होगा। जनसंख्या, वृद्धि अथवा कम, पड़ने का एक मात्र प्रवेश द्वार है गर्भधारण। यदि गर्भधारण होगा तो प्रसव की संभावनाएं भी बलवती हो जाती हैं। और प्रसव के बाद जनसंख्या में इजाफा होना भी तय है। यानि गर्भनिरोध जनसंख्या वृद्धि दर को रोकने का प्राथमिक बिंदु है। शायद तभी उत्तर प्रदेश सरकार ने नव विवाहित दंपतियों को बढ़ती जनसंख्या के प्रति जागरुक करने और परिवार नियोजन का फायदा बताने के लिए नायाब तरीका निकाला है। राज्य सरकार की योजना के तहत नवविवाहितों को 'नई पहल किट दी जाएगी, जिसमें कॉन्डोम और गर्भनिरोधक गोलियों के अलावा सुरक्षित सेक्स व परिवार नियोजन की महत्ता पर एक संदेश, तौलियों-रूमालों का एक पैकेट, एक नेल-कटर, एक कंघा तथा आईना होगा।

ये 'नई पहल किट आशा कार्यकर्ताओं द्वारा वितरित की जाएंगी। इसका उद्देश्य विवाहित जोड़े को दो बच्चों तक ही परिवार को सीमित रखने के लिए प्रोत्साहित करना है। दरअसल इस पूरी कवायद का उद्देश्य न्यूली मैरिड कपल को उनकी सामाजिक व पारिवारिक जिंदगी की जिम्मेदारियों के लिए तैयार करना है। दीगर है कि लगभग 20 करोड़ की जनसंख्या और 20.23 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि दर के साथ उत्तर प्रदेश केवल भारत का अधिकतम जनसंख्या वाला प्रदेश ही नहीं बल्कि विश्व की सर्वाधिक आबादी वाली उप राष्ट्रीय इकाई भी है। विश्व में केवल पांच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमरीका, इंडोनिशिया और ब्राजील की जनसंख्या उत्तर-प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। अत: सुरसा के मुख की भांति बढ़ रही जनसंख्या के दावानल को रोकने के यदि समुचित प्रबंध न किये गये तो यह दवानल सूबे के सभी संसाधनों को लील जायेगा और संसाधनहीनता समस्त संवेदनाओं और संस्कारों को।

यदि हम पिछले पांच दशक में प्रदेश की उपलब्धियों पर नजर डालें तो ऐसा नहीं लगता कि हमने कुछ पाया ही नहीं है। किन्तु जनसंख्या में वृद्धि के कारण पर्यावरण, आवास, रोजगार की समस्या के साथ-साथ अन्य सामाजिक समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं। अनियन्त्रित आबादी से न सिर्फ आर्थिक संकट पैदा हो रहा है बल्कि भ्रष्टाचार में भी वृद्धि हो रही है। विचारणीय है कि सूबे को कोश में जल कम पड़ रहा है, भूमि समाप्त हो रही है, वायु प्रदूषित हो चुकी है और रोजगार की गति मंद है। अनियन्त्रित आबादी के कारण जल, वायु, खनिज तथा ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों का अनियोजित दोहन हमें एक ऐसी अंतहीन गुफा की ओर ले जा रहा है जहां से आगे का रास्ता दिखाई नहीं देता।

वनों की अंधाधुंध कटाई तथा कृषि योग्य भूमि की लगातार घटती उर्वरा शक्ति गम्भीर चुनौतियां हैं। चाहे अस्पताल हो या रेलवे स्टेशन, स्कूल हो या सस्ते गल्ले की दुकान हर जगह भीड़ ही भीड़ है। सरकार जितनी भी व्यवस्थाएं उपलब्ध करा रही है सब कम पड़ती जा रही है। जिसके कारण न अस्पताल में आसानी से दवा मिलती है न रेल में आरक्षण। बच्चों का अच्छे स्कूल में प्रवेश बड़े ही भाग्य से मिलता है। तीन आदमियों की क्षमता वाले मकान में 30-30 आदमी रहने के लिए बाध्य हैं। विडंबना है कि देश के सबसे बड़े प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 73 प्रति हजार है, जो राष्ट्रीय औसत 57 से कहीं ज्यादा है। उत्तर प्रदेश में हर दिन 248 और हर घंटे 11 बच्चे निमोनिया से कालकवलित जाते हैं। उत्तर प्रदेश में कुपोषित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हालात ये हैं कि राज्य का हर दसवां बच्चा कुपोषित व हर बीसवां बच्चा अत्यधिक कुपोषित है।

हाल ही में आए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि देश के हर आठ कम वजन वाले बच्चों में एक बच्चा उत्तर प्रदेश का होता है। इसी तरह बौनेपन के शिकार देश के सात बच्चों में से एक और सूखेपन के शिकार 11 में एक बच्चा उत्तर प्रदेश का होता है। उत्तर प्रदेश में 42.4 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं, वहीं 56.8 प्रतिशत बौने और 14.8 प्रतिशत सूखेपन के शिकार हैं। हर दसवां बच्चा कुपोषण का शिकार है। 5.1 प्रतिशत तो अत्यधिक कुपोषण के शिकार हैं। ऐसे में हर बीसवां बच्चा अत्यधिक कुपोषण का शिकार है, जो उत्तर प्रदेश के लिए चुनौती बना हुआ है। बच्चों का कुपोषण भी उनकी मौत का बड़ा कारण है, क्योंकि कुपोषण से प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और उपयुक्त विकास भी नहीं हो पाता। अब सोचिये जिस प्रदेश का भविष्य कुपोषित हो वह सूबा कैसे सक्षम होगा? उत्तर प्रदेश में लड़कों की प्राथमिक शिक्षा पूरी करने की दर 50 प्रतिशत तो लड़कियों की दर सिर्फ 27 प्रतिशत ही है, जिसमे वंचित समूह की केवल 10.4 प्रतिशत बालिकाएं ही अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी कर पाती हैं। बेरोजगारी तो रक्तबीज की भांति विस्तार पा रही है। एनएसएसओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 1 करोड़ 32 लाख नौजवान बेरोजगार हैं।अभी थोड़े दिनों पहले ही राज्य में चपरासी के 368 पदों की भर्ती का विज्ञापन निकला था। इसके जवाब में सिर्फ 33 दिनों में ही 23 लाख से ज्यादा आवेदन आ गए थे।

इनमें भी बड़े पैमाने पर उच्च शिक्षा हासिल कर चुके नौजवान शामिल थे। ये हालत देखते हुए राज्य सरकार को इन भर्तियों को भी टालना पड़ा था। उपरोक्त सभी चुनौतियों का प्रमुख कारण अनियंत्रित जनसंख्या है। ऐसे में सवाल है कि वर्षों से यह प्रचार किया जा रहा है कि खुशहाल परिवार के लिए जनसंख्या को स्थिर बनाना बहुत जरूरी है, लेकिन क्या बढ़ती जनसंख्या को महज 'नई पहल के शगुन जैसी योजनाएं रोक पाएंगी? क्या दो बच्चे-भविष्य अच्छे की कविता का भावार्थ प्रदेश की लगभग आधी निरक्षर जनसंख्या चालीस साल की कवायद से कुछ सीख पाई? या हम दुनिया की तर्ज पर सिर्फ जनसंख्या दिवस मना कर खानापूर्ति करते रहेंगे? नवविवाहितों को 'नई पहल किट का उपहार, एक नई शुरुआत तो हो सकती है किंतु जनसंख्या विस्फोट के जिस मुहाने पर देश का सबसे बड़ा सूबा खड़ा है उसको नियंत्रित करने के लिये 'नये शगुन के साथ 'नई नीति की भी दरकार है। 

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