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भारत की एकता के सूत्रधार और आधार स्तंभ लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल

भारत की एकता के सूत्रधार और आधार स्तंभ लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल

Wednesday October 31, 2018 , 6 min Read

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के केवड़ि‍या में विश्‍व की सबसे ऊंची प्रतिमा ‘स्‍टैच्‍यू ऑफ यूनिटी’ को राष्‍ट्र को समर्पित कर दिया। सरदार वल्‍लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा उनकी जयंती पर गुजरात के नर्मदा जिले स्थित केव‍ड़ि‍या में राष्‍ट्र को समर्पित की गई। जब भी राष्ट्र को एकसूत्र में पिरोने की बात आएगी सबसे पहले सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम लिया जाएगा।

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 देश के राजनीतिक इतिहास में पटेल के अविस्मरणीय योगदान का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें जवाहर लाल नेहरू के साथ महात्मा गांधी का दायां व बायां हाथ माना जाता था। 

सरदार पटेल का जन्म 31 अक्तूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ। वे बचपन से ही बहुत स्वाभिमानी तथा कठोर स्वभाव के थे। वे छोटी उम्र में ही परिवार से अलग रहने लगे किन्तु उनका अपने परिवार के साथ सुदृढृ रिश्ता जीवन भर कायम रहा। उन्होंने 22 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी इच्छा कुछ धन जमा करके इंग्लैंड में वकालत की पढ़ाई करने की थी। इसलिए उन्होंने भारत में कानून की डिग्री हासिल की और गोधरा में वकालत करने लगे। अपनी पत्नी झाबरबा, बेटी मणिबेन तथा बेटे डाहियाभाई पटेल के भरण-पोषण का फर्ज निभाते हुए वे उच्च शिक्षा के लिए धन भी जमा करते रहे। अपना संकल्प पूरा करने के लिए वे 1911 में 36 वर्ष की आयु में लंदन गए तथा वहां मिडल टेंपल इन में वकालत की शिक्षा के लिए प्रवेश लिया। उनकी योग्यता तथा दृढ़ इच्छा शक्ति का ही परिणाम था कि उन्होंने 36 महीने का पाठ्यक्रम 30 महीने में पूरा कर लिया और अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

इंग्लैंड से लौटकर वे अहमदाबाद में रहने लगे। यही नगरी उनके राजनीतिक जीवन की जन्मस्थली और कर्मस्थली बनी। यों तो सन 1917 से ही वे वकीलों और किसानों के हितों से जुड़े सार्वजनिक कार्यों में रूचि लेने लगे थे, किन्तु स्वतंत्रता आंदोलन में उनका प्रवेश गांधीजी की प्रेरणा से उस समय हुआ जब उन्होंने खेड़ा के किसान आंदोलन का नेतृत्व संभाला। यह आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में चल रहा था, किन्तु उन्हें उसी समय चंपारण के किसानों के संघर्ष का साथ देने के लिए जाना पड़ा। तब उन्होंने वल्लभभाई पटेल को इस काम के लिए चुना। पटेल ने कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ खेड़ा के किसानों को करों की अदायगी न करने के लिए तैयार किया और अंततः उनकी बहुत सी मांगें मान ली गई। इस आंदोलन की सफलता के बाद वे गांधी जी के और निकट आ गए तथा कांग्रेस में सक्रिय हो गए। 1920 में वे नवगठित गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनाए गए। 1922 से 1927 के बीच वे तीन बार अहमदाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गए।

देश के स्वतंत्रता आंदोलन के एक सुदृढ़ स्तंभ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अग्रणी नेता वल्लभभाई पटेल ने स्वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री के रूप में कुशल प्रशासक तथा दक्ष रणनीतिकार की ख्याति अर्जित की। किन्तु उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि 565 देसी रियासतों का भारतीय संघ में विलय मानी जाती है। देश के राजनीतिक इतिहास में पटेल के अविस्मरणीय योगदान का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें जवाहर लाल नेहरू के साथ महात्मा गांधी का दायां व बायां हाथ माना जाता था। स्वतंत्रता पश्चात् बनी अंतरिम सरकार में नेहरू जी प्रधानमंत्री और पटेल जी उप प्रधानमंत्री बने। कहा जाता है कि पहले से ही यह चर्चा चल पड़ी थी कि नेहरू और पटेल में से ही कोई एक प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभालेगा।

गांधी जी की इच्छा के अनुरूप सरकार में नेहरू को प्रथम और पटेल को द्वितीय स्थान मिला। कुछ इतिहासकार आज तक यह कहते हैं कि यदि उस समय पटेल को प्रधानमंत्री पद मिलता तो देश की राजनीतिक एवं आर्थिक दशा-दिशा भिन्न होती। यह बात अलग है कि स्वतंत्रता के लगभग 3 वर्ष बाद ही 15 दिसम्बर 1950 को 75 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। किन्तु स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी अग्रणी भूमिका के पश्चात् तीन वर्षों के छोटे से कालखंड में ही अपनी व्यावहारिक एवं सकारात्मक सोच तथा दृढ़ व्यक्तित्व के कारण ‘लौहपुरूष’ का खिताब अर्जित किया। इससे पहले बारदौली आंदोलन का सफल नेतृत्व करने पर उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि से नवाज़ा गया था। इस तरह उन्हें भारतीय एकता के सूत्रधार लौह पुरूष सरदार पटेल के रूप में याद किया जाता है।

खेड़ा में ग्रामवासियों को संगठित करने का उनका अनुभव 1928 में बारदौली सत्याग्रह में काम आया जब उन्होंने अहमदाबाद नगर पालिका की जि़म्मेदारी से मुक्त होकर पूरी तरह से स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति स्वयं को समर्पित कर दिया। पटेल ने चार महीनों तक अनवरत रूप से किसानों को कर का भुगतान न करने के लिए तैयार किया और आंदोलन के लिए जनता से धन भी एकत्र किया। अगस्त 1928 में सरकार बातचीत के लिए तैयार हो गई और पटेल ने वार्ता के कुशल संचालन के माध्यम से किसानों के कल्याण के अनेक उपायों पर ब्रिटिश शासकों को राज़ी कर लिया। इसी सत्याग्रह के दौरान उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि मिली। 1931 में नमक सत्याग्रह में उन्होंने आगे बढ़कर भाग लिया। उन्हें रास गांव में गिरफ्तार कर लिया गया। पटेल तथा बाद में गांधी जी की गिरफ्तारी के फलस्वरूप नमक आंदोलन और तेज़ होता गया।

1931 में पटेल कराची अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने बुनियादी मानव अधिकारों की रक्षा, धर्म निरपेक्ष स्वरूप, न्यूनतम वेतन तथा अस्पृश्यता के उन्मूलन जैसे मूल्यों को स्वतंत्रता आंदोलन का अंग बनाने के प्रस्ताव स्वीकार किये। लंदन गोलमेज़ सम्मेलन असफल रहने पर जनवरी 1932 में गांधी जी और पटेल को जेल में डाल दिया गया। जेल में पटेल और गांधी जी विभिन्न विषयों पर चर्चा करते रहते थे जिससे दोनों के बीच वैचारिक तथा व्यावहारिक निकटता और सुदृढ़ हो गई। 1934 तक पटेल कांग्रेस में अग्रणी नेताओं की पंक्ति में आ गए और वे पार्टी गतिविधियों के लिए धन जुटाने वाले प्रमुख नेता बन कर उभरे । 1934 में केन्द्रीय एसेंबली और 1936 में प्रादेशिक एसेंबलियों के चुनाव के समय वे कांग्रेस के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष रहे और उम्मीदवारों के चयन में उनकी बड़ी भूमिका रही।

1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन का दौर आते-आते सरदार पटेल नेहरू, आज़ाद तथा राजगोपालाचारी के साथ कांग्रेस के सर्वोच्च नेताओं की श्रेणी में शामिल हो चुके थे। इन सभी ने गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन’ का समर्थन किया। 7 अगस्त 1942 को कांग्रेस ने ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ शुरू करने का प्रस्ताव स्वीकार किया। इस दौरान स्वास्थ्य ठीक न होने के बावजूद सरदार पटेल देश भर में घूम-घूम कर ओजस्वी भाषण देते रहे। साथ ही आंदोलन का खर्च वहन के लिए धन एकत्र करने के काम में भी जुटे रहे। 7 अगस्त को मुम्बई के ऐतिहासिक गोवालिया चैक में आयोजित एक लाख से अधिक लोगों की विशाल जनसभा को पटेल ने भी सम्बोधित किया। 9 अगस्त को उन्हें कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और 1945 तक वे अहमदनगर के किले में कैद रहे। 15 जून 1945 को वे रिहा किए गए। 1946 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में पटेल ने गांधी जी के आग्रह पर अपना नाम वापस ले लिया। यह चुनाव इस दृष्टि से महत्वपूर्ण था कि कांग्रेस का अध्यक्ष ही स्वतंत्र भारत की पहली सरकार का नेतृत्व संभालेगा।

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जानकारी स्रोत: pib- subhash setiya