भारत का सबसे स्वच्छ शहर, जहां कचरे से बनाए जाते हैं लाखों रुपये
कर्नाटक का हेरिटेज शहर कहा जाने वाला शहर मैसूर अपने यहां निकलने वाले कई टन कचरे से लाखों रुपये बना रहा है।
मैसूर सिटी कॉर्पोरेशन के एक अधिकारी ने बताया कि कचरे के सेंटर पर हर रोज 200 टन कंपोस्ट का उत्पादन होता है। एमसीसी के पूर्व कमिशनर सीजी बेटसुरमत ने बताया कि इससे एमसीसी को 6 लाख रुपये की रॉयल्टी मिलती है और सूखे कचरे से भी पैसे मिलते हैं।
हर शहर में कचरे की समस्या काफी आम होती है। शहर के नीति नियंता इस समस्या का समाधान खोजने में विफल हो जाते हैं। लेकिन मैसूर में नगरपालिका प्रशासकों ने ये दिखा दिया है कि सही नीति बनाकर तकनीक के जरिए शहर को साफ सुथरा बनाया जा सकता है।
कर्नाटक का हेरिटेज शहर कहा जाने वाला शहर मैसूर अपने यहां निकलने वाले कई टन कचरे से लाखों रुपये बना रहा है। आजकल हर छोटे-बड़े शहर की सबसे प्रमुख समस्याओं में से एक कचरे का उचित निपटान न होना भी है। कूड़े और कचरे के ढेर से गंदगी फैलती है और फिर उससे बीमारियां। लेकिन मैसूर इस मामले में बाकी शहरों से काफी अलग है। केंद्र सरकार ने दो साल पहले देश के टॉप 10 स्वच्छ शहरों का ऐलान किया था जिसमें मैसूर को पहला स्थान मिला था। लेकिन मैसूर ने इस मुकाम को एक दिन में हासिल नहीं किया। इसके लिए कई सारी योजनाएं बनाई गईं और उन्हें लागू भी किया गया।
हर शहर में कचरे की समस्या काफी आम होती है। शहर के नीति नियंता इस समस्या का समाधान खोजने में विफल हो जाते हैं। लेकिन मैसूर में नगरपालिका प्रशासकों ने ये दिखा दिया है कि सही नीति बनाकर तकनीक के जरिए शहर को साफ सुथरा बनाया जा सकता है। पीएम मोदी ने अपने स्वच्छ भारत मिशन के तहत तीन आर का मंत्र दिया था। जिसके तहत रिफ्यूज, रिड्यूस और रीसाइकिल करने की बात कही गई थी। हालांकि अब उसमें रीयूज का भी विकल्प जोड़ दिया गया है। मैसूर में घर-घर से कचरे को इकट्ठा किया जाता है। शहर में सभी को घरों में दो तरह के डस्टबिन रखने को कहा गया है।
इन डस्टबिन में सूखा कचरा अलग और गीले कचरे को अलग रखने को कहा जाता है। एक से कंपोस्ट बनाई जा सकती है वहीं दूसरे डब्बे में फेंका गया कचरा कंपोस्ट के लायक नहीं होता है। हर रोज सुबह कचरा इकट्ठा करने वाले लोग सीटी बजाते हुए आते हैं और हर घर से कचरा इकट्ठा करते हुए चले जाते हैं। शहर में नौ रिसाइकिल सेंटर और 47 सूखे कचरे को इकट्ठा करने के सेंटर बनाए गए हैं। सफाई कर्मी रोजाना 400 पुश कार्ट और 170 ऑटो से कचरा ढोकर उन्हें यहां पहुंचाते हैं। इन सेंटरों पर कचरे को अलग किया जाता है। उसमें बोतल, धातु, जूते और प्लास्टिक कप को कबाड़ियों के हाथों बेच दिया जाता है। बाकी कचरे को कंपोस्ट बनाकर किसानों को भेज दिया जाता है।
मैसूर सिटी कॉर्पोरेशन के एक अधिकारी ने बताया कि कचरे के सेंटर पर हर रोज 200 टन कंपोस्ट का उत्पादन होता है। एमसीसी के पूर्व कमिशनर सीजी बेटसुरमत ने बताया कि इससे एमसीसी को 6 लाख रुपये की रॉयल्टी मिलती है और सूखे कचरे से भी पैसे मिलते हैं। मैसूर में 100 प्रतिशत कचरे को घर-घर जाकर ही इकट्ठा किया जाता है। इसके साथ ही लगभग 80 प्रतिशत कचरे को रिसाइकिल करने से पहले अलग कर लिया जाता है। मैसूर में हर रोज 402 टन कचरा उत्पन्न होता है जिसका आधा कचरा कंपोस्ट में तब्दील कर दिया जाता है। यही वजह है कि लगातार दो साल से भारत के सबसे स्वच्छ शहरों में मैसूर का नाम सबसे ऊपर रहता है।
मैसूर में सार्वजनिक सेवाओं का इस्तेमाल एकदम आदर्श तरीके से होता है। यहां सारे पब्लिक टॉयलेट अच्छे से काम कते हैं और इतना ही नहीं मैसूर में खुले में शौच की समस्या भी नहीं है। इसका सारा श्रेय स्वच्छ भारत अभियान और वहां के लोगों के साथ ही नीति निर्माताओं को भी जाना चाहिए। मैसूर में स्लम पुनर्वास कार्यक्रम भी चलता है जिसके तहत लगभग 6,000 शौचालय बनवाए गए हैं। इसी कारण शहर में खुले में शौच की समस्या का भी अंत हो गया। शहर को साफ बनाने में संचार साधनों ने भी काफी योगदान दिया है। यहां के एफएम स्टेशनों पर गानों के साथ ही साफ-सफाई से जुड़े प्रोग्राम भी चलाए जाते हैं। इससे शहर के लोगों में जागरूकता उत्पन्न होती है।
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