एक उद्यमी के रूप में मेरी सबसे गलती
टीम वाईएसहिंदी
लेखकः कश्यप देवराह
अनुवादकः निशांत गोयल
मेरे गुरु ने मुझे मुद्दों पर कड़ा रहने और लोगों पर नरम रहना सिखाया है। यहां तक कि 15 वर्ष बीतने के बाद भी मैं अभी तक सीख ही रहा हूं। लेकिन वास्तव में ऐसा कहना आसान है और होना काफी कठिन है। मैं इस सलाह को पहली बार वर्ष 2001 में समझने में कामयाब रहा। काॅलेज के बाद प्रारंभ की गई मेरी पहली कंपनी डाॅट काॅम के बुलबुले के फूटने के बाद अधिग्रहण का शिकार हो गई। उस दौरान मैं अपने सहसंस्थापकों और साथियों के साथ काफी ढीठता और घमंड से पेश आता था। मैं उन लोगों के साथ बहुत मतलबी और कठोर हो गया था जिन्होंने मेरे और मेरे स्टार्टअप में अपने जीवन के सबसे बेहरीन वर्षों को खपाया था। मैं टीम के साथ अपने संबंधों को बिगाड़ने के अलावा अधिग्रहण करने वाली कंपनी की नजरों में विश्वसनीयता को खो चुका था और मुझे इन दोनों को आंशिक रूप से ठीक करने में एक दशक से भी अधिक का समय लगा। उन लोगों के साथ बैठकर एक ड्रिंक लेते समय मैं हंसकर बीते हुए समय की तरफ देखता हूं और अपनी गल्तियों को याद करते हुए उन सबका शुक्रगुजार होता हूं। हालांकि वह मेरी पहली गल्ती थी लेकिन निःसंदेह आखिरी नहीं। उसके बाद से मैं गलती के विभिन्न संस्करण तैयार करता रहा हूं और हो सकता है कि आने वाले समय में और भी नए संस्करणों का ईजाद करने में सफल रहूं। हालांकि इनमें से प्रत्येक मुझे एक बेहतर इंसान बनने में मदद करती है लेकिन फिर भी तय करने को एक लंबा रास्ता है। एक उद्यमी के रूप में मेरी सबसे बड़ी गलती लोगों के साथ निष्ठुर होना रही है।
स्टार्टअप के पारिस्थितिकीतंत्र में सिर्फ एक ही चीज स्थिर है और वह है परिवर्तन। जब लीन स्टार्टअप के लेखक एरिक राइस स्टार्टअप को परिभाषित करते हुए ‘‘बेहद अनिश्चितता के दौर में एक नए उत्पाद या सेवा प्रदान करने के लिये मानव द्वारा बनाई गई संस्था’’ कहते हैं। मनुष्य के भीतर किसी भी प्रकार के बदलाव का विरोध करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। अनिश्चितता के दौर में जब मुझे यह नहीं पता होता है कि आगे क्या होने वाला है तो मेरी सहज वृत्ति मुझे सबसे खराब परिणाम की उम्मीद लिये रहती है। और इस प्रवृति से ग्रसित होने वाला सिर्फ मैं ही नहीं होता हूं। मुझे अपने दिमाग से अनिश्चितता के भावों को निकालकर उसके स्थान पर साहस की भावना और हारने के डर को पीछे छोड़ते हुए जीतने के एक बड़े अवसर के बारे में सोचने के लिये तैयार करने में कई वर्षों का समय लगा। और आज भी यह डर कहीं न कहीं मौजूद है, शायद कहीं गहराई में दफन। विपत्ति के समय में यह डर बातचीत के माध्यम से दोबारा सामने आता प्रतीत होता है।
वर्ष 1999 में कुछ सपनों और आकांक्षाओं के साथ एक कंपनी की नींव रखी थी इस दौरान हमें निवेशकों और मीडिया का भरपूर साथ मिला ताकि हम खुद का विस्तार आसानी से कर सकें और साहसी फैसले ले सकें। लेकिन जैसे ही डाॅट-काॅम का बुलबुला फूटा और सैंकड़ों की संख्या में घाटे में चल रही पब्लिक इंटरनेट कंपनियों नैसडेक के स्टाॅक टिकर के माध्यम से दुनिया के सामने आईं चीजें एकदम से बदल गईं। स्टार्टअप्स से उम्मीद के अनुसार या तो अपने प्रतिस्पर्धियों के साथ विलय कर लिया, बी2सी से बी2बी में परिवर्तित हो गए, आकार घटाते हुए मुनाफे पर ध्यान देना प्रारंभ किया, मौजूदा निवेशकों से अधिक निवेश के लिये जोर देना शुरू किया या फिर अपनी कंपनी के मूल्य का पुनःपूंजीकरण करें। स्टार्टअप के लोगों के लिये तो इसका मतलब जबरदस्त व्यक्तिगत बदलाव के दौर से गुजरना था जबकि कुछ के लिये यह मोहभंग की अवस्था से जागने जैसा था। मेरी टीम के सदस्य भी पवई से बैंगलोर स्थानांतरित होने से गुजर रहे थे और दूसरी ओर संस्थापक अधिग्रहण एकीकृत करने के लिये सिलिकाॅन वैली के मुख्यालय की यात्रा कर रहे थे। इस सत्य ने भी कोई मदद नहीं की कि अधिग्रहण करने वाला स्वयं व्यापार करने के साथ प्रबंधन संक्रमण से गुजर रहा था।
एक युवा और नौसखिये उद्यमी के रूप में इस दुनिया को अपने टीम के सदस्यों की नजरों से देखने के स्थान पर मैं उनसे यह उम्मीद कर रहा था कि वे इस दुनिया को वैसे ही देखें जैसे मैं उसे देख रहा हूं। मैं अपनी टीम की सुनने के लिये, बदलावों और अनिश्तिताओं के बारे में उसके साथ वार्ता करने के लिये बिल्कुल भी समय नहीं निकाल रहा था और इसके अलावा मैं उनसे उस जुनून से नहीं जुड़ पा रहा था जो मैंने उन्हें अपने साथ जोड़ते समय दिखाया था। एक समय ऐसा आया जब उनमें से एक ने यह कहा कि संस्थापक हमारे बारे में भूलकर सिलिकाॅन वैली भाग गए हैं। उन्हें ऐसा लगा कि संस्थापक अपने लिये फायदेमंद व्यक्तिगत सौदे करने में व्यस्त हैं जबकि उनके कर्मचारी यहां खाली बैठे हैं। मैंने तुरंत प्रतिक्रिया दी। समय के साथ टीम के सदस्यों को लगा कि वास्तव में ऐसा ही हो रहा है। जल्द ही उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि अब वे जो हैं अपने दम पर हैं।
भारतीय स्टार्टअप पारिस्थितिकीतंत्र अनिश्चितता के साथ परिवर्तन के एक दौर से गुजर रहा है। वर्ष 2000 के डाॅटकाॅम हादसे से कुछ लोग ही आने जाने में सफल रहे और सिर्फ कुछ ही लोग वर्ष 2008 में टेक स्टार्टअप्स पर आये वित्तीय संकट के प्रभावों को महसूस करने में सफल रहे। वर्तमान में उससे कहीं अधिक बड़ी संख्या में स्टार्टअप्स, उद्यमी, कर्मचारी, ठेकेदार और आपूर्तिकर्ता वर्तमान के परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं। भारत में तकनीकी स्टार्टअप का भविष्य काफी उज्जवल दिखाई दे रहा है लेकिन व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक स्टार्टअप का भविष्य बिल्कुल निश्चित है। हम बीते 18 से 24 महीनों में काफी तेजी से आगे बढ़ने में कामयाब रहे हैं और कई उद्यमियों के साथ हुई मेरी निजी बातचीत के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि हम एक ऐसे दौर में प्रवेश करने जा रहे है जो मोहभंग से भरा हुआ है। यह एक बेहद धूमधाम वाली पार्टी के बाद की अगली सुबह की तरह है। हैंगओवर उतर चुका है और आपके फोन पर आपकी माता की 12 मिस्ड काॅल आ चुकी हैं। इसके अलावा आप नींद के आगोश में खोने से पहले आपने फोन को चार्जर पर लगाना भी भूल गए थे। स्टार्टअप्स के साथ जुड़े लोगों के पास डरने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इस बहस का कहीं कोई अंत नहीं है कि यह किसकी गलती है। मायने सिर्फ यह रखता है कि परिवर्तन हो रहा है और आपको उससे निबटना आना चाहिये। मैं अपने अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूं कि लोगों के साथ कड़ाई से पेश आना स्थितियों को और भी बद्तर कर सकता है। अपनी तमाम ऊर्जा को संरक्षित कर मुद्दे के समाधान में झोंकना समाधान की दिशा में एक बेहतर कदम हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो आप उस समय में एक दूसरे का साथ देने के लिये गले लग सकते हैं। अगर ऐसा नहीं भी होता है तो आप अबसे कुछ वर्षों बाद एक-दूसरे को गले लगा सकते हैं कि आप लोग विपरीत परिस्थितियों में भी अलग नहीं हुए और अब भी साथ काम कर सकते हैं। हालांकि ऐसा कहना आसान है और करना मुश्किल। मुद्दों का कड़ाई के साथ सामना करें और लोगों के साथ नरमी से पेश आएं।