‘युवा प्रेरणा यात्रा’, एक ऐसी यात्रा जिसको करने से आप बन सकते हैं स्टार्टअप और आंत्रप्रेन्योर
आपने अपनी जिंदगी में तरह-तरह की यात्राएं की होंगी, लेकिन कभी आप ऐसी यात्रा पर गये हैं जिसने आपकी जिंदगी बदल दी हो, उसे संवार दिया हो, उसे एक दिशा दे दी हो। जिस यात्रा के कारण आपको ये समझ में आ गया हो कि आप आगे क्या कर सकते हैं, आप कैसे एक अच्छे आंत्रप्रेन्योर बन सकते हैं। यहां हम आपको एक ऐसी ही यात्रा के बारे में बताने जा रहे हैं जो हर साल होती है और जिसका नाम है ‘युवा प्रेरणा यात्रा’। ‘आई फॉर नेशन’ के तहत इस यात्रा का आयोजन करते हैं बीएचयू एक पूर्व छात्र और इसके सह-संस्थापक रितेश गर्ग और नवीन गोयल। जो अपनी इस यात्रा के जरिये ऐसे जुनूनी युवाओं को इकत्रित कर उन जगहों की सैर कराते हैं, उन लोगों से मिलाते हैं जो दूसरों के लिए मिसाल बन गये हैं।
रितेश गर्ग उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के रूडकी तहसील के मंगलौर गांव के रहने वाले हैं। यहीं रहकर उन्होने अपनी पढ़ाई पूरी की। रितेश ने योरस्टोरी को बताया,
“ग्रेजुएशन के दौरान लगा कि मुझे कुछ अलग करना है और नौकरी कभी भी मेरे दिमाग में नहीं थी। सोचा की कुछ अलग करने के लिए सबसे मुश्किल चीज क्या हो सकती है तब पता चला की आईएएस बनना सबसे मुश्किल काम है इस तरह मैंने इसकी तैयारी शुरू की।”
आईएएस की तैयारी के लिए ये दिल्ली आये तो पता चला की इसकी कोचिंग काफी महंगी है, बावजूद किसी तरह आईएएस परीक्षा की तैयारी की और तीसरे साल ये लिखित परीक्षा में पास हो गये, लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा था इसलिए इंटरव्यू के दौरान इनको समझ में आ गया था कि वो सिस्टम में अपने को कैद नहीं कर सकते। इसलिए इन्होंने फैसला किया कि ये एमबीए करेंगे और ढाई महीने की पढ़ाई के बाद कैट की परीक्षा पास की। इस तरह बीएचयू में इनको दाखिला मिल गया।
ये तय था कि वो नौकरी नहीं करेंगे इसलिये तब तक वो दो-तीन सरकारी नौकरी भी छोड़ चुके थे। रितेश चाहते थे कि वो देश के लिए कुछ करें, वो कुछ ऐसा काम करना चाहते थे जिसमें वो लोगों को कुछ मकसद दे पाएं। इसके लिए एमबीए की पढ़ाई के दौरान इन्होने सेवार्थ नाम का एक संगठन बनाया और बनारस के आसपास के एनजीओ से जुड़कर उनकी मदद करने लगे। एमबीए की पढ़ाई खत्म करने के बाद ये राजस्थान और गुजरात के आदिवासियों के बीच रहे और उनके लिये काम किया। इसके बाद इन्होने यूपी के पांच जिलों शाहजहांपुर, हरदोई, पीलीभीत, बदायूं और सीतापुर में लोगों के कौशल निखार का काम किया। इस दौरान इनको जान से मारने की धमकी भी मिली लेकिन किसी भी धमकी से बेपरवाह रितेश ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया और वो अपने काम में लगे रहे।
लोगों के बीच काम करने के दौरान इन्होंने देखा कि देश में काफी ज्यादा गरीबी है और किसान की हालत सबसे ज्यादा दयनीय है। इनके मन में विचार आया कि गांव के बच्चों के विकास पर क्यों ना ध्यान दिया जाए। इस पूरे समय में ये समझ चुके थे कि इनको लोगों को रोजगार दिलाने के क्षेत्र में काम करना है। इसलिए इन्होंने देश भर का दौरा किया और करीब 3हजार गांवों का जायजा लिया। हिमालयी क्षेत्रों से लेकर मैदानी इलाकों का भी दौरा किया। जहां पर लोग अक्सर इनको कहते थे कि पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी कभी पहाड़ के काम नहीं आते। क्योंकि युवा रोजगार की तलाश में शहर की ओर रूख कर लेता है और पहाड़ से नदियों का पानी बह कर मैदानी इलाको में चला जाता है।
रितेश के मुताबिक,
“तब मैंने सोचा कि क्यों ना पानी और जवानी को एक दूसरे के साथ जोड़ दिया जाये और वो एक दूसरे का विकल्प बने।”
लेकिन इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी लोगों की अरुचि। पहाड़ी इलाकों में आंत्रप्रेन्योरशिप की ओर लोग ज्यादा ध्यान नहीं देते थे और वो सरकारी नौकरी की और मुंह ताकते थे। ऐसे में रितेश ने सोचा कि क्यों न यहां के युवाओं को ये बताया जाए कि जिन मुश्किल हालात का सामना वो करते हैं उसी तरह की चुनौती का दूसरे लोग भी सामना कर अच्छा काम कर रहे हैं और उनके काम से काफी बदलाव भी देखने को मिला है। इसलिये ये काम वो भी कर सकते हैं।
इसके बाद रितेश गर्ग ने एक प्रोग्राम डिजाइन किया और उसका नाम रखा ‘युवा प्रेरणा यात्रा’। इसमें इन्होंने सौ लोगों का चयन किया। इनमें से 50 लोग हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले युवा होते हैं और शेष 50 लोग दूसरे क्षेत्रों में रहने वाले लोग होते हैं। इसका मकसद ये था कि एक ओर जो जमीनी तौर पर काम कर रहे लोग और दूसरी तरफ वो लोग जिनके पास तकनीकि ज्ञान था, उनको एक प्लेटफॉर्म के जरिये जोड़ा जाए। ताकि वो एक दूसरे के साथ जानकारी को साझा कर सकें। इसके अलावा रितेश ने ऐसे लोग ढूंढे जिन्होंने जमीनी स्तर पर अपने इनोवेटिव आइडिया के बल पर कुछ काम किया। जिसके बाद अब वो उन सौ लोगों को ऐसे इनोवेटिव लोगों से मिलाने का काम कर रहे हैं।
ये अपनी यात्रा के लिए जिन लोगों का चयन करते हैं उसमें उनकी शैक्षिक योग्यता की जगह ऐसे लोग चुनते हैं जिनमें कुछ नया करने का जुनून होता है। पिछले तीन सालों से रितेश इस यात्रा को चला रहे हैं। रितेश के मुताबिक करीब 35 प्रतिशत लोगों ने इस यात्रा का फायदा उठाते हुए अपना काम शुरू कर दिया है। जैसे उत्तरकाशी में एक गांव में जहां पर 6 किसानों ने मिलकर सब्जी उगाने का काम मिलकर शुरू किया था और आज 12सौ किसान मिलकर उस काम को कर रहे हैं। खास बात ये है कि मदर डेयरी उनकी सब्जियों को उन किसानों से खरीदने का काम करती है। इतना ही इन किसानों ने बिना बिजली का एक रोप-वे बनाया हुआ है जो 12सौ मीटर की ऊंचाई तक सब्जी-फल लाने ले जाने का काम करता है।
‘युवा प्रेरणा यात्रा’ के कारण ही बहराइच के रहने वाले हिमांशु कालिया ने गांव वालों के साथ मिलकर ईको टूरिज्म का काम शुरू किया है और उस जगह को मगरमच्छ सेंचुरी के तौर पर विकसित किया है। नतीजा ये है कि आज इस इलाके को देखने के लिए विदेशों से लोग यहां आते हैं। इसी तरह कश्मीर के रहने वाले सुहास कौल युवा प्रेरणा यात्रा से सीख लेते हुए बेंगलुरू में पेंटिंग की प्रदर्शनी लगाते हैं। ये पेंटिग गांव के लोगों की बनाई होती है और पेंटिंग बेचने से जो रेवन्यू मिलता है उसका अस्सी फीसदी उन्हीं गांव वालों को दे दिया जाता है। इसी तरह पिथौरागढ़ के जीवन ठाकुर ने अपने गांव को आदर्श गांव बनाने का काम शुरू कर दिया है।
रितेश के मुताबिक,
‘युवा प्रेरणा यात्रा’ में शामिल लोगों के ऐसे ही लोगों से मिलाया जाता है। उनसे चुनौतियां पूछी जाती हैं, उनके काम के बारे में जानकारी ली जाती है। इस तरह दूसरे लोग उनसे सीख सकते हैं कि वो अपने यहां भी कुछ ऐसा ही काम कर सकते हैं। जिसके बाद लोगों को विश्वास होता है कि वो भी कुछ कर सकते हैं और उस बारे में सोचते हैं।
ऐसे में जब कोई इनके पास अपना आइडिया लेकर आता है तो रितेश और उनकी टीम उस आइडिया पर काम कैसे करना है ये भी बताती है।
साल 2013 में रितेश ने पहली ‘युवा प्रेरणा यात्रा’ की शुरूआत की थी। हर साल होने वाली ‘युवा प्रेरणा यात्रा’ की शुरूआत उत्तराखंड के देहरादून से होती है, ये यात्रा सात दिन की होती है। जिन सौ लोगों का चयन इस यात्रा के लिए होता है वो चार बसों में सवार होते हैं। हफ्ते भर की इस यात्रा के दौरान ये हिमालय क्षेत्र के अलग अलग गांव में जाकर वहां के लोगों से मिलते हैं। इस दौरान ये करीब एक हजार किलोमीटर की यात्रा करते हैं। आज रितेश गर्ग के साथ ‘युवा प्रेरणा यात्रा’ का काम इसके सह-संस्थापक नवीन गोयल और 8 वॉलंटियर देखते हैं।
ये यात्रा हर साल अप्रैल में होती है। अगले साल की यात्रा के लिए ये 15 अगस्त से लोगों का आवेदन मांगना शुरू कर देते हैं और इस बार आवेदन की अंतिम तारीख 29 फरवरी रखी गई है।
वेबसाइट : www.yuvaprernayatra.org