हाथों से चीजें तैयार करने की परंपरा को सहेजने का प्रयास करती पांच महिला उद्यमी
महात्मा गांधी ने कभी कहा था, ‘‘सिर्फ यह कहना ही काफी नहीं है कि हस्तकरघा एक ऐसा उद्योग है जिसे पुनर्जीवित किये जाने की आवश्यकता है। बल्कि सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात पर जोर देने की है कि यह हमारा केंद्रीय उद्योग है और अगर हमें अपनी ग्रामीण संस्कृति को वापस पाते हुए दोबारा स्थापित करना चाहते है तो हमें इस ओर भी ध्यान देना होगा।’’
चाहे वह कलाकारी हो, बुनाई या नक्काशी हो या फिर निर्माण और बढ़ईगीरी हो, जिन लोगों ने इन्हें तैयार करने में अपना अधिकतर समय बिताया होता है वही इस काम से मिलने वाली संतुष्टि को बेहतर तरीके से जान सकते हैं। हस्तशिल्प, जो अपने आप में खुद काफी वृहद है, सिर्फ दैनिक उपभोग से ही संबंधित नहीं है। पैसे बचाने के लिये अपने घर की मरम्मत खुद ही करने में और बहुत ही नजाकत के साथ अपने घर को एक नया रूप देने का आनंद प्राप्त करने के अनुभव में जमीन-आसमान का अंतर है। आज हम आपको जानकारी देते हैं हस्तशिल्प के क्षेत्र में पूरे जुनून के साथ काम कर रही कुछ महिला उद्यमियों के बारे में।
अर्बन कला - सविता अय्यर
कला और रचनात्मकता के प्रति अपने जुनून के चलते सविता अय्यर ने वर्ष 2012 में अर्बन कला की नींव रखी। उनके उत्पादों में चित्रकारी किये हुए जूट और कैनवस के बैग, गहने, पेंटिंग्स, की होल्डर, ट्रे इत्यादि की एक विस्तृत श्रंखला देखी जा सकती है। लकड़ी, नारियल के खोल, जूट के पुराने टुकड़ों और अन्य अपशिष्ट और बेकार उत्पादों का प्रयोग करके इन्होंने स्थिरता और डिजाइन को रचनात्मकता के उच्च स्तर तक पहुंचाने में कामयाबी पाई है।
एथनिक शैक - श्रीजता भटनागर
श्रीजता भटनागर ने वर्ष 2014 में अपने शौक, हस्तशिल्प को एक नया रूप देने के क्रम में एथनिक शैक की स्थापना की। यह कला के पारंपरिक और आधुनिक प्रचलनों का सम्मिश्रण कर परिधानों और एसेसरीज़, दुपट्टे, स्टोल, सलवार-कमीज, हैंडबैग, मूर्तियां, गृह-सज्जा, वाॅल हैंगिंग और कंबलों इत्यादि की पूरी श्रंखला से रूबरू करवाता है। यह शिल्पकारों और कलाकारों के साथ सीधे संपर्क करके उनका पूरा सहयोग करते और लेते हैं और इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें अपने काम की पूरी कीमत मिले। इसके अलावा ये उनके सामने आने वाली दिक्कतों को भी दूर करने का प्रयास करती हैं जिसका इन्हें फायदा भी मिलता है और इनका उपभोक्ता आधार बढ़ाने में सहयोग मिलता है।
साधना - लीला विजयवर्गीय
वर्ष 1998 में लीला विजयवर्गीय द्वारा सिर्फ 15 महिलाओं को साथ लेकर प्रारंभ किया गया साधना आज 625 महिला कारीगरों की संख्या तक पहुंचने में कामयाब हो गया है। उदयपुर में स्थित यह संस्थान महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने का उद्देश्य लेकर संचालित हो रहा है। इस संगठन का संपूर्ण स्वामित्व इन कलाकारों के हाथों में है और अर्जित होने वाली पूरी बचत की धनराशि पर सिर्फ इनका हक होता है। इसके चलते इन्हें अपनी आमदनी बढ़ाने के वैकल्पिक साधन प्राप्त होते हैं। साधना महिलाओं के लिये कुर्ते, घरेलू सामान, आभूषण के अलावा पुरुषों के उपयोग के लिये सामान जैसे उत्पाद का निर्माण करता है।
सबला हैंडिक्राफ्ट्स - मलम्मा यलवार
मलम्मा यलवार ने वर्ष 1986 में सबला संगठन की स्थापना की। बाजीपुर में स्थापित सबला महिलाओं से आधारित मुद्दों के लिये पूरी तरह से समर्पित है। यह महिलाओं को विभिन्न कौशलों में अपना हाथ आजमाने के लिये प्ररित करते हुए उन्हें उत्पादक गतिविधियों में बदलने के लिये अवसर प्रदान करता है जिसके चलते इनके पास आमदनी के साधन बढ़ाने में मदद मिलती है। सबला ने पारंपरिक लम्बाणी और कसूटी शिल्प को पुनर्जीवित करने में एक महती भूमिका निभाई है। इनके द्वारा तैयार किये गए सभी उत्पाद पारंपरिक रूप से हस्तनिर्मित होने के साथ उच्च गुणवत्ता वाले भी होते हैं।
क्रियेटिव हैंडिक्राफ्ट्स - इसाबेल मार्टिन
अबसे 25 वर्ष पहले ईसाबेल मार्टिन नामक एक स्पेनिश मिशनरी मुंबई के अंधेरी इलाके में रहती थी। आसपास की झुग्गियों मेें रहने वाली महिलाओं ने उनसे आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के रास्ते तलाशने की दिशा में कदम बढ़ाने के क्रम में उनकी मदद मांगी। उन्होंने एक स्थानीय सामुदायिक संगठन का सहयोग लिया और इन महिलाओं के लिये एक क्रेच की व्यवस्था की।
झुग्गियों में रहने वाली महिलाओं में से दो ने सिलाई की कक्षाएं लेना प्रारंभ किया और दूसरी महिलाओं को साॅफ्ट टाॅय, कपड़े और अन्य पारंपरिक हस्तशिल्प तैयार करना सिखाना शुरू किया। इसाबेल ने अपने स्त्रोतों की मदद से इनके द्वारा तैयार किये गए उत्पादों को स्थानीय स्तर के अलावा स्पेन, फ्रांस और इटली तक पहुंचाने में मदद की। सिलाई के उन पहले सबकों के लगभग दो दशक बाद क्रियेटिव हैंडिक्राफ्ट्स वर्तमान में 300 से भी अधिक महिलाओं को पूर्णकालिक रूप से और 400 से भी अधिक मौसमी महिला श्रमिकों को रोजगार के अवसर प्रदान करती है। इन महिलाओं द्वारा तैयार किये गए विभिन्न उत्पाद मुंबई के तीन उपनगरीय इलाकों, अंधेरी, कांदीवली और ब्रांद्रा इलाकों में स्थित 3 दुकानों में बिक्री के लिये रखी जाती हैं।
कोई भी वस्तु कैसे तैयार की जाती है और उसे किस कारण से उसी तरह तैयार किया जाता है यह जानना आधुनिक जीवन में पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। हस्तशिप सामग्री, मूल और तैयार करने की एक सामूहिक भाषा है जो चीजों को सीखने का मूल्य पैदा करती है। यह एक सच्चाई हैै कि हस्तनिर्मित उत्पाद इतने सस्ते नहीं होते हैं लेकिन इनका मूल्य सिर्फ मुद्रा से ही नहीं लगाया जा सकता। यह राजनीतिक और सामाजिक अधिक है। यह जानना कि किसी चीज की उत्पत्ति कब और कैसे हुई है हमें और अधिक जागरुक बनाता है और एक उपभोक्ता के रूप में हमारी जिम्मेदारी और भी अधिक बढ़ जाती है। हस्तनिर्मित उत्पादों का एक बिल्कुल ही अलग सौदर्य सुख है और इनका अपना ही अलग मोल है। चाहे वह स्थानीय हो, हरा हो या फिर पुराने जमाने का सादा फैशन।