पिता को याद करने का तरीका: रोज 500 भूखे लोगों को भोजन कराता है बेटा
विशाल के पिता 15 वर्ष पहले गुड़गांव के एक अस्पताल में भर्ती थे। इलाज कराने के लिए विशाल के पास पैसे कम होने की वजह से वे एक वक्त बिना कुछ खाए ही रह जाते थे।
अपने पिता को खो चुके विशाल लखनऊ एक सीख और प्रतिज्ञा लेकर आए थे। उन्होंने ठान लिया था कि ऐसे गरीब और नि:शक्त मरीजों के लिए कुछ बेहतर करना है।
लखनऊ में रहने वाले विशाल सिंह अस्पताल में इलाज करा रहे गरीब मरीजों के साथ आए तीमारदारों को मुफ्त में भोजन कराते हैं। इस सेवा के प्रेरणास्रोत दरअसल उनके पिता हैं। विशाल के पिता 15 वर्ष पहले गुड़गांव के एक अस्पताल में भर्ती थे। इलाज कराने के लिए विशाल के पास पैसे कम होने की वजह से वे एक वक्त बिना कुछ खाए ही रह जाते थे। वे बताते हैं कि उन्होंने उस वक्त दूसरों का दिया हुआ बासी समोसा भी खाया। उनके साथ ही कई अन्य तीमारदार ऐसे हुआ करते थे जो एक वक्त बिना कुछ खाए ही सो जाया करते थे।
हालांकि विशाल के पिता की तबीयत सही नहीं हो पाई और उनका देहांत हो गया। इसके बाद विशाल अपने शहर लखनऊ वापस चले आए। अपने पिता को खो चुके विशाल लखनऊ एक सीख और प्रतिज्ञा लेकर आए थे। उन्होंने ठान लिया था कि ऐसे गरीब और नि:शक्त मरीजों के लिए कुछ बेहतर करना है। विशाल को इसके लिए हजरतगंज में चाय के ठेले से लेकर साइकिल स्टैंड पर टोकन लगाने का काम किया। लेकिन हार नहीं मानी।
इसके बाद विशाल को पार्टियों में खाना बनाने का काम मिल गया। लेकिन इस मुफलिसी के दौर में भी वह अपने घर से भोजन बना कर अस्पताल में जरूरतमंदो को भोजन कराने जाया करते था। इसके बाद विशाल कंस्ट्रक्शन क्षेत्र से जुड़ गए। यहां उनके करियर को तरक्की मिली और उनकी जिंदगी सही रास्ते पर चल निकली। इसके बाद उन्होंने अपने पिताजी के नाम पर विजय श्री फाउंडेशन प्रसादम सेवा नाम के एक एनजीओ की स्थापना की। जो कि मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के तीमारदारों को भोजन उपलब्ध करवाने का काम करता है।
लखनऊ के केजीएमसी में प्रतिदिन ढाई सौ लोगों को निशुल्क भोजन सेवा कराई जाती है इसके लिए प्रतिदिन मेडिकल कॉलेज प्रशासन द्वारा एक अधिकारी नियुक्त किया गया है जो प्रसादम सेवा में आकर प्रतिदिन ढाई सौ टोकन ले जाकर अस्पताल के विभिन्न वार्डों में निशक्तजनों को बांटता है और वह लोग अपराह्न 1:00 बजे आकर प्रसादम हॉल के बाहर बैठ जाते हैं और फिर उन लोगों को उन टोकन पर एक व्यक्ति क्रमांक देता है और अपने क्रमांक पर बुलाए जाने पर वह व्यक्ति अंदर आकर भोजन ग्रहण करता है।
विशाल बताते हैं कि प्रतिदिन खाने का मेन्यू अलग रहता है। खाने में दाल चावल रोटी सब्जी सलाद अचार आदि की व्यवस्था होती है और खाना काफी पौष्टिक होता है। विशाल इसके लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हैं। खास बात यह भी है कि वे किसी भी तरह का नकद चंदा नहीं लेते हैं। इसके बजाय लोगों से आवश्यक वस्तुएं देने या श्रमदान के लिए कहा जाता है।
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