इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग की मदद से इस व्यवसायी ने खेती को बनाया मुनाफ़े का सौदा
केएस अशोक कुमार, भारत के कृषि क्षेत्र से जुड़ी एक ऐसी शख़्सियत हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों के तमाम दौर सफलतापूर्वक पार किए हैं। अशोक का कहना है, "मेरे हिसाब से ऑन्त्रप्रन्योरशिप का मतलब होता है, पुरानी चीज़ों को नई चीज़ों से जोड़ना। नई तकनीकों का खुलकर स्वागत किया जाना चाहिए और बिज़नेस को आगे बढ़ाने में मदद लेनी चाहिए।"
55 वर्षीय अशोक मानते हैं कि कृषि के क्षेत्र में विकास के लिए युवाओं को तकनीक का सहारा लेने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। हमारे कृषक समाज में लोग एक-दूसरे के साथ जानकारी और अनुभव साझा करने की प्रवृत्ति से कतराते हैं।
केएस अशोक कुमार का मानना है कि खेती के परंपरागत तरीक़ों और तकनीक की जुगलबंदी (इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग) की मदद से भारत में कृषि क्षेत्र की चुनौतियों से सहजता के साथ लड़ा जा सकता है। अशोक ने बेंगलुरु की यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऐग्रीकल्चरल साइंसेज़ से पोस्ट-ग्रैजुएशन किया है। करीबन पिछले दो दशकों से अशोक लगातार खेती की प्रक्रिया और उसे जुड़ी प्रणालियों के साथ नए प्रयोग करते आए हैं।
1989 के दौर में अशोक कर्नाटक के डोड बल्लापुर में स्थित अपनी ज़मीन पर खेती किया करते थे। इसी दौरान पानी के लिए उन्होंने 189 बोरवेल खुदवाए, लेकिन इसके बावजूद सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी की व्यवस्था न हो सकी। 189 में से सिर्फ़ 14 बोरवेल में पानी मिल सका। पानी के संकट की वजह से अशोक को काफ़ी नुकसान हुआ और उन्होंने दूसरे बिज़नेस मॉडल पर विचार करना शुरू किया।
शुरुआत में अशोक को लगा कि खेती को मशीनीकरण और तकनीक के साथ जोड़ा जाए। इस सोच को अमल में लाने के उद्देश्य के साथ उन्होंने अपने पिता से पैसे उधार लिए और 1989 के अंत तक एकबार फिर से 200 एकड़ के खेत में खेती शुरू की। उन्होंने अपने खेती के तरीक़ों में माइक्रो-इरिगेशन, स्प्रिंकलर इरिगेशन सिस्टम और फ़र्टिगेशन आदि को शामिल किया। जबकि, इस समय तक किसान सिंचाई के लिए मूलरूप से बारिश और कुंओं पर ही निर्भर हुआ करते थे।
अशोक कहते हैं, "मैं मानता हूं कि उत्पादन की लागत पर नियंत्रण जमाने के साथ-साथ उम्दा तकनीक के इस्तेमाल से हालात को बेहतर बनाया जा सकता है। साथ ही, बाज़ार में प्रचलित चीज़ों से भी बराबर संपर्क में रहना चाहिए। मैं मानता हूं कि इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग, नए प्रयोगों और तकनीक से जुड़ा एक ऐसा मॉडल है, जो भारत के कृषि क्षेत्र की समस्याओं को समय के साथ-साथ लगातार सुलझा रहा है। इसे अपनाकर हमने खेती को पहले से कहीं अधिक सुलभ और लाभदायक बना दिया है।"
55 वर्षीय अशोक मानते हैं कि कृषि के क्षेत्र में विकास के लिए युवाओं को तकनीक का सहारा लेने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। हमारे कृषक समाज में लोग एक-दूसरे के साथ जानकारी और अनुभव साझा करने की प्रवृत्ति से कतराते हैं। लगभग एक दशक पहले, अशोक ने तय किया कि वह अपनी मुर्गीपालन की यूनिट (पॉल्ट्री फ़ार्म) से ही ब्रॉयलर से हैच होने वाले अंडों का उत्पादन करेंगे। अशोक की इस यूनिट का नाम था, मां इंटीग्रेटर्स। इसके साथ-साथ उन्होंने इंटीग्रेटेज फ़ार्मिंग पर भी काम शुरू किया। अशोक की सोच रंग लाई और उनके व्यवसाय की सालाना विकास दर 15-20 प्रतिशत तक पहुंच गई। आज की तारीख़ में अशोक की कंपनी 1 करोड़ से भी अधिक चिकन्स का उत्पादन कर रही है। कंपनी ने मैंगलोर, बंटवाल, अन्नावटी, कुनीगल और सुलिया में अपनी शाखाएं (ब्रांच) खोल रखी हैं।
अशोक बताते हैं कि इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग की मदद से उनकी कंपनी मां इंटीग्रेटर्स के फ़ार्मिंग के तरीक़ों और उनकी उत्पादकता में असाधारण बदलाव पैदा किया। अशोक कहते हैं कि उनकी कंपनी अब पहले से कहीं ज़्यादा उत्पादन तो कर ही रही है, साथ ही में पर्यावरण का भी पूरा ख़्याल रख रही है।
मां इंटीग्रेटर्स की इस सफलता के पीछे आई-चेक फ़ार्मिंग ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मिट्टी के बिना ही पौधे उगाना, वॉटर साल्वेंट में मिनरल न्यूट्रिएंट साल्यूशन्स का इस्तेमाल, आरबोरिकल्चर, नर्सरी, फ़्लोरीकल्चर, हॉरिकल्चर फ़ार्मिंग, ऐनिमल, पशुपालन से जुड़ी गतिविधियां, पॉल्ट्री ब्रीडिंग और पॉल्ट्री ब्रॉयलर आदि इस आई-टेक फ़ार्मिंग का ही हिस्सा हैं।
भारत में ब्रॉयलर चिकन को मीट के लिए तैयार करने का 80 प्रतिशत काम कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर ही किया जाता है।
आमतौर पर ठेके पर काम करने वाले किसान ही इस काम से जुड़ते हैं। अशोक बताते हैं कि उनकी कंपनी, कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले किसानों को चूज़े और उनका भोजन ख़ुद ही मुहैया करवाती है। साथ ही, इन किसानों को पशु-चिकित्सा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां और तकनीकी सलाह भी दी जाती हैं। मां इंटीग्रेटर्स के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले किसानों को उनके प्रदर्शन के आधार पर भुगतान मिलता है। अशोक बताते हैं कि किसानों को मां इंटीग्रेटर्स का बिज़नेस मॉडल पसंद है और लगातार किसान उनकी कंपनी के साथ जुड़े रहे हैं।
मुख्य ब्रीडिंग फ़ार्म पहले सालाना 30-35 लाख अंडों का उत्पादन करता था और अब यह आंकड़ा 2.5 करोड़ तक पहुंच चुका है। हैचिंग के लिए तैयार अंडों में से 40 प्रतिशत अंडों से निकलने वाले चूज़ों को कॉमर्शियल ब्रॉयलर फ़ार्म्स में भेज दिया जाता है। यह फ़र्म वेंको रिसर्च ऐंड ब्रीडिंग फ़ार्म प्राइवेट लि. की वेंको ब्रीड की फ़्रैंचाइज़ी है और यहां पर अंडों से निकलने वाले चूजों को 68 हफ़्तों की आयु तक पाला जाता है और इस दौरान ही ब्रीडिंग की मदद से हैचिंग के लिए तैयार अंडों का उत्पादन किया जाता है।
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