Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

बुलेट ट्रेन की तैयारी के बीच भुखमरी और कुपोषण से कैसे लड़ेगा अतुल्य भारत?

वैश्विक भूख सूचकांक पर जारी ताजा रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के 119 विकासशील देशों में भूख के मामले में भारत 100वें स्थान पर है। इससे पहले बीते साल भारत 97वें स्थान पर था। यानी इस मामले में साल भर के दौरान देश की हालत और बिगड़ी है। 

सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)


आश्चर्य है कि एक तरफ देश में सबसे बड़ी मूर्ति, सबसे तेज ट्रेन यानि बुलेट ट्रेन लाने की तैयारी की जा रही है, वहीं भारत की एक बड़ी जनसंख्या को ठीक से दो जून का खाना तक मयस्सर नहीं हो पा रहा है।

अगर गांवों की बात करें तो शायद हालात और बदतर है। ग्रामीण भारत में 23 करोड़ लोग अल्पपोषित है, 50 फीसदी बच्चों की मत्यु का कारण कुपोषण है। यही नहीं दुनिया की 27 प्रतिशत कुपोषित जनसंख्या केवल भारत में रहती है।

आज भारत में वैभव का आभास, अनवरत नवीन प्रतिमानों के प्रस्तर खण्ड उत्कीर्ण कर रहा है। चहुंओर गगनचुम्बी भवन, चमचमाती लग्जरी गाडिय़ां, शोर मचाते कल कारखाने व विपणन के लिए आधुनिक माल आदि इसके प्रतीक केंद्र हैं। पर इन सबके इतर भी एक भारत है जहां निर्धनता के न्यूनतम मापदण्डों पर अभी भी बहस जारी है। चांद तक पर शोध चल रहा है। इसरो ने अपने उपलब्धियों का शतक पूरा कर लिया है किंतु अतुल्य भारत में निर्धनता के मापदण्ड क्या होंगे यह अभी तक जेरे बहस है। यह राष्ट्रीय शोक ही है कि विश्व का हर तीसरा कुपोषित नौनिहाल हिंदुस्तानी है। विडंम्बना है 21 वीं सदी की महाशक्ति बनने की दिशा में अग्रसर भारत का भविष्य कुपोषित होगा।

खैर अतुल्य भारत की वर्चुअल व अभासी किरदार से बाहर निकलते हुए देश में बढ़ती भुखमरी के वास्तविक आंकड़ों पर गौर करते हैं तो वॉशिंगटन स्थित अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) की ओर से वैश्विक भूख सूचकांक पर जारी ताजा रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के 119 विकासशील देशों में भूख के मामले में भारत 100वें स्थान पर है। इससे पहले बीते साल भारत 97वें स्थान पर था। यानी इस मामले में साल भर के दौरान देश की हालत और बिगड़ी है। आश्चर्य है कि एक तरफ देश में सबसे बड़ी मूर्ति, सबसे तेज ट्रेन यानि बुलेट ट्रेन लाने की तैयारी की जा रही है, वहीं भारत की एक बड़ी जनसंख्या को ठीक से दो जून का खाना तक मयस्सर नहीं हो पा रहा है।

पिछली और वर्तमान सभी हुकूमतें कहती रही हैं कि भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, बेशक यह सही भी हो सकता है किंतु इस साम्राज्य का निर्माण भूखे पेट के ऊपर हुआ है! मेरा भारत महान! क्या सरकारों से यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि लोकतंत्र में भूख विद्यमान क्यों रहती है? बढ़ती भुखमरी और कुपोषण इस बात के भी द्योतक हैं कि हमारा नेतृत्व भुखमरी के खिलाफ संघर्ष में ईमानदार नहीं है। भुखमरी सबसे बड़ा घोटाला है। यह मानवता के खिलाफ अपराध है, जिसमें अपराधी को सजा नहीं मिलती। भूख के मामले में भारत का वर्तमान वैश्विक पदानुक्रम प्रदर्शित करता है कि मानवता के खिलाफ सबसे जघन्य अपराध को लेकर राजनेता कितने बेपरवाह हैं।

यही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं संयुक्त राष्ट्र मानव सूचकांक की रपटों से यही सामने आ रहा है कि भारत में कुपोषित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक देश के लगभग 23 करोड़ लोगों को दोनों वक्त भरपेट भोजन नसीब नहीं होता है। यानी दोनों वक्त भरपेट भोजन न करने वाले लोगों की तादाद देश की आबादी का लगभग एक चौथाई है। इसी तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वीकार किया है कि भारत में दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी, जो 1 साल से 6 साल के बीच की है, कुपोषण की शिकार है। ऐसे कुपोषित बच्चे जिनकी तादाद 25 लाख से भी ज्यादा है, हर साल मौत की नींद सो जाते हैं। देश की दो तिहाई आबादी बेहद दयनीय परिस्थितियों में जीने को मजबूर है।

सवाल यह है कि क्या ऐसे ही भूखे और कुपोषित लोगों की फौज से न्यू इंडिया बनेगा? इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में पांच साल तक की उम्र के बच्चों की कुल आबादी का 20 फीसदी अपने कद के मुकाबले बहुत कमजोर हैं। तीन में से एक बच्चा अंडरहाइट यानि उसका विकास ठीक से नहीं हुआ है। देश के भीतर के सरकारी आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं। 2017 के अप्रैल में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने संसद में बताया था कि देश में 93 लाख से ज्यादा बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हैं। उन्होंने बताया कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार, देश में कुल 93.4 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार हैं। इसमें से 10 प्रतिशत को चिकित्सा संबंधी जटिलताओं की वजह से एनआरसी में भर्ती की जरूरत पड़ सकती है।

एक आंकड़े के मुताबिक आज भारत में 21 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। दुनिया भर में सिर्फ तीन ही देश, जिबूती, श्रीलंका और दक्षिण सूडान, ऐसे हैं, जहां 20 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। जाहिर है, स्वास्थ्य और पोषण को लेकर सरकार की सारी योजनाएं इस मामले में असफल साबित हो रही हैं।

उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल समेत भारत के आठ राज्यों में सबसे अधिक गरीबी है। इन राज्यों में गरीबों की संख्या 26 अफ्रीकी देशों के गरीबों से भी अधिक है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में आज भी 42 करोड़ लोग पेट भरे बिना नींद के आगोश में आ जाते हैं। अगर गांवों की बात करें तो शायद हालात और बदतर है। ग्रामीण भारत में 23 करोड़ लोग अल्पपोषित है, 50 फीसदी बच्चों की मत्यु का कारण कुपोषण है। यही नहीं दुनिया की 27 प्रतिशत कुपोषित जनसंख्या केवल भारत में रहती है।

खाद्य एवं कृषि संगठन के आंकलन के अनुसार रोजाना 24 हजार लोग भुखमरी और कुपोषण के दायरे में आ रहे हैं। क्या भूख मिटाना सचमुच इतना कठिन है? इसका जवाब है नहीं? चूंकि भूख से लड़ने की कोई इच्छाशक्ति नहीं है, इसलिए भूख का व्यापार तेज रफ्तार से फल-फूल रहा है। अर्थशास्त्रियों ने पीढिय़ों के दिमाग में इस तरह की बातें भर दी हैं कि हर कोई विश्वास करने लगा है कि गरीबी और भुखमरी मिटाने का रास्ता जीडीपी से होकर गुजरता है। जितनी अधिक जीडीपी होगी, गरीब को गरीबी के दायरे से बाहर निकलने के अवसर भी उतने ही अधिक होंगे।

पर इस आर्थिक सोच से अधिक गलत धारणा कुछ हो ही नहीं सकती। भारत के पांव तो निर्धनता के दलदल में धंसे हुए हैं और वह भी तब जब वह दुनिया की दूसरी सबसे तेज गति वाली अर्थव्यवस्था का तमगा लिए हुए है। यहां यह भी ध्यान रहे कि जो आबादी गरीबी रेखा से तनिक सी ऊपर है उसमें एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो कभी भी इस रेखा के नीचे आ सकता है। यह सही समय है जब इस पर प्राथमिकता के आधार पर विचार हो कि आर्थिक विकास की मिसाल पेश करने वाले देश में निर्धनता जड़े जमाए क्यों बैठी है? कहीं ऐसा तो नहीं कि तेज आर्थिक विकास के नाम पर हम संपन्नता के कुछ टापू निर्मित कर रहे हैं? यदि निर्धनता निवारण के लिए ठोस और गंभीर प्रयास नहीं किए गए तो फिर संपन्नता के वे टापू रेत के टीले ही

यह भी पढ़ें: बेसहारों को फ्री में अस्पताल पहुंचाकर इलाज कराने वाले एंबुलेंस ड्राइवर शंकर