पति की मौत के बाद कुली बनकर तीन बच्चों की परवरिश कर रही हैं संध्या
समाज के बने बनाए स्टीरियोटाइप्स को तोड़ आजीविका चलाने के लिए ये माँ कर रही है कुली का काम...
असमय पति के चले जाने से संध्या को काफी तकलीफ हुई। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी हंसती गाती जिंदगी में दुखों का पहाड़ा टूट पड़ेगा। संध्या के परिवार में उसके बच्चों के अलावा बूढ़ी सास भी है। संध्या अपनी कमाई से सबका पेट पालती है।
उन्हें यह काम घर से 250 किलोमीटर दूर कटनी रेलवे स्टेशन पर मिला। उन्हें हर रोज काम के लिए ढाई सौ किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। इसके लिए पहले वे अपने गांव से जबलपुर पहुंचती हैं फिर वहां से कटनी।
महिलाएं अगर ठान लें तो क्या नहीं कर सकतीं। 30 साल की संध्या मरावी की कहानी सुनकर आप यही कहेंगे। मध्य प्रदेश के कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करने वाली संध्या मरावी को देखकर हर कोई चौंक जाता है। दरअसल रेलवे स्टेशनों पर सामान ढोने के लिए सिर्फ पुरुष कुली ही दिखते हैं। यहां तक कि बड़े रेलवे स्टेशनों पर भी महिला कुली नजर नहीं आती हैं। लेकिन संध्या समाज के बने बनाए स्टीरियोटाइप्स को तोड़कर अपनी आजीविका चलाने के लिए कुली का काम करती हैं। हालांकि संध्या को मजबूरी में यह पेशा अपनाना पड़ा, लेकिन उन्हें किसी की परवाह नहीं है।
मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के कुंडम गांव की रहने वाली संध्या के पति भोलाराम का 2016 में असमयिक देहांत हो गया था। इसके बाद उनके ऊपर मानो पहाड़ टूट गया हो। परिवार में कमाने वाले संध्या के एकमात्र पति ही थी। पति की मौत के बाद घर चलाने में दिक्कत आने लगीं। इसके बाद संध्या ने सोचा कि वो खुद कुछ काम करके अपने तीन बच्चों का पेट पालेंगी। उन्होंने कुली का काम करना शुरू किया। लेकिन उन्हें यह काम घर से 250 किलोमीटर दूर कटनी रेलवे स्टेशन पर मिला। उन्हें हर रोज काम के लिए ढाई सौ किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। इसके लिए पहले वे अपने गांव से जबलपुर पहुंचती हैं फिर वहां से कटनी।
संध्या के दो छोटे बेटे साहिल (8) और हर्षित (6) व एक बेटी पायल (4) है। पति के गुजर जाने के बाद संध्या अपने घर को भी संभालती है और काम भी करती है। संध्या बताती हैं कि पैसे न होने की वजह से खाने के लाले पड़ रहे थे। उनसे बच्चों को इस हाल में देखा नहीं जा रहा था इसलिए उन्होंने कुली बनने का फैसला किया। कटनी स्टेशन पर लगभग 40 कुली हैं, लेकिन संध्या अकेली महिला कुली है जो अपने कंधों पर भारी भरकम वजन ढोती है।
असमय पति के चले जाने से संध्या को काफी तकलीफ हुई। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी हंसती गाती जिंदगी में दुखों का पहाड़ा टूट पड़ेगा। संध्या के परिवार में उसके बच्चों के अलावा बूढ़ी सास भी है। संध्या अपनी कमाई से सबका पेट पालती है। वह अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर अफसर बनाना चाहती है। संध्या कहती है कि जिंदगी में चाहे जो हो जाए वह हार नहीं मानेगी और अपने बच्चों की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। संध्या ने रेलवे विभाग के अधिकारियों से अपना ट्रांसफर कटनी से जबलपुर करवाने को अर्जी दी है, लेकिन अभी उस पर कोई सुनवाई नहीं की गई है। संध्या ने कहा कि अगर उसका ट्रांसफर हो जाएगा तो उसे हर रोज इतना लंबा सफर नहीं तय करना पड़ेगा।
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