अपने बुज़ुर्गों के लिये थोड़ा सा वक्त निकालिए, मिलेगी आपको खुशियां बेशुमार
बुज़ुर्ग हमेशा हमारे लिये चिंताग्रस्त रहते हैं, जबकि इस उम्र में उन्हें पूरी देखभाल,प्यार-सम्मान और अपनापन की जरूरत होती है, लेकिन हम अपनी व्यस्तताओं के कारण अपने बुजुर्गों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाते हैं। ऐसे में बुजुर्ग अपने घर से लेकर समाज में हर स्तर पर लगातार उपेक्षित होते जाते हैं और बहिष्कृत या बेसहारा बुजुर्ग अपनी जिंदगी के आखिरी सोपान में वृद्धाश्रम पहुंच जाते हैं या उन्हें पहुंचा दिया जाता है। जहां कुछ लोग कपड़े, अच्छा खाना, पैसा, और उनकी सुविधाओं का ख्याल रखते हुए दान के रूप में बहुत कुछ देते रहते हैं, कमी रह जाती है तो सिर्फ.....प्यार, समय और संवेदनाओं की।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में लिब्रा वेलफेयर सोसायटी ने कुछ ऐसा ही काम किया है। लिब्रा सोसायटी के सदस्य करीब 55 महिला-पुरुषों वाले बिलासपुर के वृद्धाश्रम ‘कल्याण कुंज’ में हर महीने के पहले रविवार को सिर्फ उनके साथ समय बिताने के लिये, उन्हें छोटी-छोटी बातों के साथ खुशियां देने के लिये, फरवरी 2015 से जाना शुरू किया। जिसे बाद उन्होंने अपनी साप्ताहिक दिनचर्या का अंग बना लिया।
इस समूह में 75 वर्षीय डॉक्टर योगी से लेकर 12 वर्षीय खुशी व मीशा भी हैं। इस समूह में युवा व महिलाओं की संख्या भी 25 से ज्यादा है। साल भर में इन सबने मिलकर बिलासपुर के मदकूदीप में पिकनिक मनायी, मॉल में फिल्म देखी, होली का हुड़दंग मचाया, दीवाली पर रंगोली बनायी, दीये जलाये,फुलझड़ियां जलाईं और व्यंजन बनाने का काम भी साथ-साथ मिलजुलकर किया, अक्ती पर गुड्डे गुड़ियों के ब्याह बाकायदा बारात निकालकर मनाया, दान के फलों,लड्डू, हलवा पूड़ी के बजाय बुजुर्गों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए गुपचुप, चाट, दाबेली आदि बनवा कर दिया गया। अब इनका नियमित स्वास्थ्य चेकअप और दवाइयों का वितरण का कार्य भी शुरू कर दिया गया है।
मन में छुपी इच्छाओं,गुज़रे दिनों की यादें और दिल में दबे दर्द भी अब इन बुजुर्गों ने लिब्रा गुप के सदस्यों के साथ बांटना शुरू कर दिया है। लिब्रा के सदस्यों का कहना है कि दरअसल उनका प्रयास भी यही था कि बुजुर्ग उनके साथ खूब घुल मिल जाएं। अपने अंदर छुपे दर्द को बाहर निकालें और खुश रहें। ऐसा होते ही बुजुर्गों ने अपने बच्चों, नाती, पोतों के हिस्से का प्यार यहां आने वाले सदस्यों में बांटना शुरू किया।
इस बार लिब्रा के सदस्यों ने इन उम्रदराज़ लोगों को गुड्डे गुड़ियों के ब्याह के आयोजन में बाराती बनाया.एक बुजुर्ग गुड्डे के पिता बने तो एक महिला गुडिया की माता. वर पक्ष का दायित्व पुरुषों ने सम्भाला और वधु पक्ष का महिलाओं ने. बाकायदा ढोलक मंजीरे बजे,नाच गाना हुआ और जब गुडिया विदा होने लगी तो सारे सीनियर सिटीजन्स की आँखों से आंसू बहने लगे. दूल्हे के परिजनों ने दहेज लौटाते हुए समाज को संदेश भी दिया कि उन्हें सिर्फ बेटी चाहिए.
जितना इंतजार महीने के पहले रविवार का उन बुजुर्गोे को रहता है उससे ज्यादा इस ग्रुप के सदस्यों को और दोनों तरफ के हर दिल में अब एक ही इच्छा है कि महीने का हर रविवार पहला रविवार बन जाये।
लिब्रा की सदस्य सचिव रचिता टंडन ने योरस्टोरी को बताया,
‘वे सब मिलकर प्रयास करते हैं कि हर महीने इन बुज़ुर्ग दोस्तों के लिए अलग अलग एक्टिविटी की जाए ताकि वे बोर और उबाऊ न महसूस करें।’
लिब्रा ग्रुप के सदस्यों के अपनापन को पाकर आश्रम के बुजुर्ग खुश हैं। आश्रम में रह रहे चतुर्भुज जी बताते हैं, "उम्र का कोई भी पडाव हो हमेशा उत्साह से जुटे रहना ही जीवन है".
आश्रम के दूसरे सदस्य रामनाथ जी बताते हैं,
"पहले बहुत ऊब और उदासी घेरे रहती थी, अब ये लोग आ जाते हैं तो ऐसा लगता है कि हर रविवार महीने का पहला रविवार बन जाए।"
यह कड़वा सच है कि बुजुर्ग हर किसी को एक दिन होना है। ऐसे में जो अपने बुजुर्गों की उपेक्षा करते हैं उन्हें अंदाजा लगाना चाहिए कि उनके बच्चे भी वही देख रहे हैं और उनके साथ भी वही होगा जो उन्होंने बुजुर्गों के साथ किया है। सच है बुजुर्गों को बहुत कुछ नहीं चाहिए। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ देखा और जिया है। बस ज़रूरत है तो उनको प्यार देने की। उनका ध्यान रखने की।