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DRDO ने एयरोइंजन के लिए बनाई क्रिटिकल नियर आइसोथर्मल फोर्जिंग टेक्नोलॉजी

टेक्नोलॉजी का विकास हैदराबाद स्थित DRDO की प्रमुख धातुकर्म प्रयोगशाला रक्षा धातुकर्म अनुसंधान प्रयोगशाला (DMRL) द्वारा विकसित की गई है। एयरोइंजन प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण तकनीक है।

DRDO ने एयरोइंजन के लिए बनाई क्रिटिकल नियर आइसोथर्मल फोर्जिंग टेक्नोलॉजी

Saturday May 29, 2021 , 3 min Read

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने अपने अद्वितीय 2000 मीट्रिक टन आइसोथर्मल फोर्ज प्रेस का उपयोग करके कठिन-से-विकृत टाइटेनियम मिश्र धातु से उच्च दबाव कंप्रेसर (HPC) डिस्क के सभी पांच चरणों का उत्पादन करने के लिए निकट आइसोथर्मल फोर्जिंग तकनीक विकसित की है।


टेक्नोलॉजी का विकास हैदराबाद स्थित DRDO की प्रमुख धातुकर्म प्रयोगशाला रक्षा धातुकर्म अनुसंधान प्रयोगशाला (DMRL) द्वारा विकसित की गई है। एयरोइंजन प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण तकनीक है। इसके साथ ही भारत ऐसे महत्वपूर्ण एयरोइंजन घटकों की निर्माण क्षमता रखने के लिए सीमित वैश्विक इंजन विकास करने वालों की लीग में शामिल हो गया है।

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फोटो साभार: PIB

थोक उत्पादन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए DMRL प्रौद्योगिकी को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (LAToT) के लिए लाइसेंस समझौते के माध्यम से M/s MIDHANI को हस्तांतरित किया गया था। DMRL, हैदराबाद में उपलब्ध आइसोथर्मल फोर्ज प्रेस सुविधा का इस्तेमाल करके विभिन्न कंप्रेसर चरणों से संबंधित एचपीसी डिस्क फोर्जिंग की थोक मात्रा (200 नंबर) का उत्पादन संयुक्त रूप से (DMRL और MIDHANI द्वारा) किया गया है और HAL (E), बेंगलुरु को जगुआर/हॉक विमान को शक्ति देने वाले एडोर इंजन में फिट करने के लिए सफलतापूर्वक आपूर्ति की गई है।


भारत में एडोर इंजन को HAL (E), बेंगलुरु द्वारा ओईएम के साथ लाइसेंस प्राप्त मैन्युफैक्चरिंग समझौते के तहत ओवरहाल किया गया है। किसी भी एयरोइंजन की तरह एचपीसी ड्रम एसेंबली को अनेक बार काम लिए जाने और क्षतिग्रस्त होने की स्थिति में बदलना होता है। उच्च मूल्य के इन एचपीसी डिस्क की वार्षित जरूरतें काफी अधिक होती हैं। एचपीसी ड्रम एक अत्यधिक स्ट्रेस्ड सब-एसेंबली है और इसे कम चक्र थकान और ऊंचे तापमान पर धीरे-धीरे काम करना पड़ता है। एचपीसी ड्रम के लिए कच्ची सामग्री और फोर्जिंग उच्च गुणवत्ता की होनी चाहिए जो स्थिर और गतिशील यांत्रिक गुणों के निर्दिष्ट संयोजन को पूरा कर सके।


DMRL ने विभिन्न विज्ञान और ज्ञान-आधारित उपकरणों के एकीकरण से इस फोर्जिंग तकनीक को विकसित किया है। DMRL द्वारा अपनाई गई पद्धति साधारण प्रकृति की है और इसे अन्य समान एयरोइंजन घटकों को विकसित करने के लिए अनुकूल ट्यून किया जा सकता है। इस पद्धति के उपयोग से उत्पादित कंप्रेसर डिस्क वांछित कार्य के लिए उड़ान योग्य एजेंसियों द्वारा तय सभी आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।


इसी के अनुसार इस टेक्नोलॉजी को प्रमाणित किया गया और तकनीकी स्वीति प्रदान की गई। संपूर्ण घटक स्तर और प्रदर्शन मूल्यांकन परीक्षण परिणामों के आधार पर, HAL (E) और भारतीय वायु सेना ने इंजन फिटमेंट के लिए घटकों को मंजूरी दी। DMRL और HAL (E) के अलावा, MIDHANI, CEMILAC और DGAQA जैसी विभिन्न एजेंसियों ने इस महत्वपूर्ण तकनीक को स्थापित करने में एक होकर काम किया।


रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस महत्वपूर्ण एयरो इंजन से संबंधित प्रौद्योगिकी के विकास में शामिल DRDO, उद्योग और अन्य सभी एजेंसियों के वैज्ञानिकों को बधाई दी है।


रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और DRDO के अध्यक्ष डॉ. जी सतीश रेड्डी ने इस महत्वपूर्ण उपलब्धि की प्राप्ति पर संतोष व्यक्त किया और इसमें शामिल टीमों को बधाई दी।