Health Study : पिज्जा-बर्गर खाने से कमजोर हो रही याददाश्त
अमेरिकन हेल्थ जरनल JAMA Neurology में प्रकाशित इस स्टडी के मुताबिक प्रॉसेस्ड फूड का असर दिमाग पर भी पड़ता है.
सालों तक प्रॉसेस्ड और अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड, ट्रांस और मोनो सैचुरेटेड फैट को हेल्दी बताने वाली दुनिया के तमाम देशों की फूड कंट्रोलिंग बॉडीज अब धीमी आवाज में ही सही, लेकिन इस बात को स्वीकार कर रही हैं कि प्रॉसेस्ड फूड सेहत के लिए सिर्फ नुकसानदायक नहीं, बल्कि खतरनाक है.
एक नई साइंस स्टडी में यह पता चला है कि प्रॉसेस्ड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का सेवन करने से मैमोरी यानी याददाश्त कमजोर हो जाती है. इतना ही नहीं, यह फूड टाइप 2 डायबिटीज, फैटी लिवर, डिमेंशिया और अल्जाइमर जैसी बीमारियों का भी प्रमुख कारण है.
अमेरिकन हेल्थ जरनल JAMA Neurology में प्रकाशित इस स्टडी में उन देशों के भी आंकड़े हैं, जहां लोग सबसे ज्यादा प्रॉसेस्ड फूड का सेवन करते हैं. स्टडी के मुताबिक अमेरिका और ब्रिटेन में लोगों के संपूर्ण भोजन का 50 फीसदी हिस्सा प्रॉसेस्ड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड से आता है, जो कि सेहत के लिहाज से एक खतरनाक स्थिति है.
हालांकि यह स्टडी यह दावा नहीं करती है कि यही कारण है उन देशों में डायबिटीज और हृदय रोगों के बढ़ते ग्राफ का, लेकिन यह बात डॉ. मार्क हाइमन कहते हैं, जो पिछले 3 दशकों से सेहत और फूड के अंतर्संबंधों पर काम कर रहे हैं.
यह स्टडी कहती है कि यदि हमारे रोजमर्रा के आहार में 400-500 से ज्यादा कैलोरी प्रॉसेस्ड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड से आ रही है तो यह चिंताजनक स्थिति है और इसका सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है.
हालांकि मार्क हाइमन कहते हैं कि प्रॉसेस्ड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड से आ रही एक भी कैलोरी शरीर के लिए नुकसानदायक है, लेकिन आमतौर पर डॉक्टर जंक फूड कैलोरी इंटेक को कुल कैलोरी के 20 फीसदी तक सीमित रखने की बात इसलिए करते हैं, क्योंकि आमतौर पर लोगों के लिए इन चीजों से पूरी तरह दूरी बनाकर रखना संभव नहीं होता.
पिछले साल सैन डिएगो में हुई अल्जाइमर एसोसिएशन की इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में इस स्टडी को पेश किया गया. तकरीबन 10 साल तक ब्राजील में हुई स्टडी में कुल 10,775 पुरुषों और महिलाओं को शामिल किया गया.
स्टडी में हिस्सा ले रहे लोगों की औसत आयु 51 वर्ष से अधिक थी. उन लोगों को दो समूहों में बांटा गया. एक समूह वह, जो प्रॉसेस्ड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का सेवन कर रहा था और दूसरा समूह वह, जो इस तरह के खाद्य पदार्थों से दूर था.
10 साल की स्टडी में पाया गया कि प्रॉसेस्ड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड खाने वाले लोगों की मैमोरी के कमजोर होने की दर दूसरे समूह के मुकाबले 28 फीसदी ज्यादा थी. यह काफी बड़ी संख्या है.
साओ पाउलो मेडिकल स्कूल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इस स्टडी के सह-लेखक डॉ. क्लाउडिया सुएमोटो कहते हैं कि यहां ब्राजील में लोगों की फास्ट फूड पर निर्भरता बढ़ती जा रही है. यह हमारे कुल भोजन का 25 से 30 फीसदी हिस्सा होता जा रहा है. पिज्जा, बर्गर, चॉकलेट और व्हाइट ब्रेड जैसी चीजों का सेवन बहुत तेजी के साथ बढ़ा है. हमारे यहां मैकडॉनल्ड्स से लेकर बर्गर किंग तक सब हैं और इसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर दिखाई दे रहा है.
डॉ. सुएमोटो कहते हैं कि अमेरिका में लोगों की टोटल कैलोरी का 48 फीसदी हिस्सा फास्ट और जंक फूड से आ रहा है. ब्रिटेन में लोगों के कुल फूड का 56.8 फीसदी हिस्सा और कनाडा में 48 फीसदी अल्ट्राप्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों से आ रहा है. डॉ. सुएमोटो यह भी कहते हैं कि अपने खानपान और आहार में परिवर्तन करके हम डिमेंशिया और मैमोरी लॉस के इस खतरे को कम कर सकते हैं.
डॉ. मार्क हाइमन कहते हैं मेरे क्लिनिक में आने वाले सैकड़ों लोगों पर किए गए इन प्रयोगों और अध्ययन के बाद मैं ये दावे से कह सकता हूं कि पैकेज्ड फूड, प्रॉसेस्ड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड को विदा कहकर हम न सिर्फ टाइप टू डायबिटीज, फैटी लिवर, इंफ्लेमेशन जैसी बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं, बल्कि एजिंग की प्रक्रिया को भी रिवर्स कर सकते हैं.
वे कहते हैं कि इन बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए दवाइयों पर निर्भर होने के बजाय हमें अपने फूड और लाइफ स्टाइल को बदलने की कोशिश करनी चाहिए. बतौर डॉ. डेविड लस्टिग, मेडिकल साइंस आपकी बीमारी को जड़ से समझने और उसका इलाज करने की बजाय उसे सिर्फ मैनेज करने की कोशिश करता है.
अगर आपका लक्ष्य सिर्फ डिजीज मैनेजमेंट है तो आजीवन आपकी दवाओं पर निर्भरता बनी रहेगी. लेकिन यदि आप उस बीमारी को जड़ से खत्म करना चाहते हैं तो इसके लिए उसके कारण को समझना होगा और 90 फीसदी बार बीमारी की जड़ में हमारा खान-पान, स्मोकिंग, एल्कोहल और लाइफ स्टाइल से जुड़े अन्य कारण होते हैं.
Edited by Manisha Pandey