अलख पांडेय: घर बिका, झुग्गी में रहे, फिर 5 साल में बना डाली 8000 करोड़ की कंपनी
PhysicsWallah के CEO की कहानी के अनसुने पहलू.
उनके दाएं हाथ पर दो टैटू हैं. बांह पर एक 'पाई' का निशान और कलाई पर एक इक्वेशन. एक विषय से किसी टीचर को कितनी मोहब्बत हो सकती है, उसे पढ़ाने के पीछे कितनी शिद्दत हो सकती है, ये टैटू शायद इसी इंतिहां की बानगी हैं.
के को-फाउंडर अलख पांडेय की आंखों में जितना आत्मविश्वास है, उतना ही उनकी आवाज़ में नुमाया होता है.YourStory की फाउंडर और सीईओ श्रद्धा शर्मा से हुई बातचीत में वे कहते हैं: "ऐसा नहीं है कि आज इस सफलता के बाद मैं अपना जीवन और काम एन्जॉय कर रहा हूं. मैं 2015 में जब किराए के घर में एक कमरे में शूट कर रहा था, तब भी काम में इतना ही मज़ा आता था. YouTube के मेट्रिक्स और बच्चों के कमेंट पर हमेशा नज़र रहती थी. वे बताते थे कि और क्या पढ़ा सकते हैं.”
बचपन और तकदीर की साइकिल
अलख तीसरी क्लास में थे जब इलाहबाद (अब प्रयागराज) में उनका आधा घर बिक गया. उस उम्र में उन्हें आभास हुआ कि परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. पिताजी सरकारी ठेकेदार थे. इसलिए काम कभी आता, कभी नहीं आता. तीसरी से छठी क्लास में आते-आते पूरा घर बिक गया. लेकिन अलख नाम के बालक को ये सुकून था कि घर बिकेगा तो नई साइकिल मिलेगी. पिताजी ने वादा जो किया था.
मगर नई साइकिल पर चढ़कर तकदीर नहीं बदलने वाली थी, ये अलख को तब पता पड़ा जब किराए का नया घर शहर के ऐसे इलाके में लिया गया जो, अलख के शब्दों में कहें तो 'स्लम' यानी झुग्गी था. घर की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अलख ने आठवीं क्लास में ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया. ट्यूशन का ये सिलसिला कॉलेज तक चलता रहा. जैसे-जैसे बड़े होते गए, अपने से छोटी क्लास के स्टूडेंट्स को ट्यूशन पढ़ाते रहे. तकदीर की साइकिल अंततः स्पीड पकड़ने वाली थी.
फिजिक्स वाले 'अलख सर'
कॉलेज ख़त्म करने के बाद लगभग चार साल तक अलख ने ऑफलाइन कोचिंग में पढ़ाया. ये वो दौर था जब पढ़ाने के साथ 'ऑफलाइन' या 'ऑनलाइन' जैसे उपसर्ग नहीं जोड़ने पड़ते थे.
"मेरे पार्टनर एक दिन आए और बड़े गर्व से बोले, अलख ये तुम क्या पढ़ा रहे हो! बच्चे पागल हो रहे हैं. भीड़ लग रही है. देखना अगले दस साल में तुम 7000 बच्चों का बैच पढ़ाओगे.
उनके लिए ये गर्व की बात थी मगर मैं मायूस हो गया. सोचा, सिर्फ 7000! और तब मेरे यूट्यूब चैनल का जन्म हुआ."
2016 में Physics Wallah ने ऑनलाइन पढ़ाना शुरू किया. ये वो दौर था जब सोशल मीडिया पर अगले 2-3 साल बाद आने वाली वीडियो कॉन्टेंट की बाढ़ की आहट सुनाई पड़ने लगी थी. ऑनलाइन मौजूदगी की शुरुआत के लिए ये सबसे अच्छा दौर था. और अलख के पास तो सक्सेस का फ़ॉर्मूला भी था. जो था औसत परफॉरमेंस वाले स्टूडेंट्स पर ज्यादा मेहनत कर उन्हें स्टार परफ़ॉर्मर बनाना.
श्रद्धा शर्मा से हुई बातचीत में अलख बताते हैं: "छोटे शहरों में तो अच्छे टीचर मिलना यूं ही मुश्किल है. बड़े शहरों में जो कुछ अच्छे टीचर हैं वो अपने लेवल पर पढ़ा रहे हैं, बच्चे के लेवल तक नहीं पहुंच पाते. क्लास में भौकाल मारने के पहले टीचर को ये याद करना चाहिए कि वो खुद 10वीं क्लास में कैसा था, उसे खुद कितना आता था."
उस दौर में यूट्यूब पर कोई भी टीचर पूरे लेक्चर अपलोड नहीं करते थे. वे 5 मिनट का हिस्सा अपलोड करते और फुल कॉन्टेंट एक्सेस के लिए अपने प्लेटफॉर्म पर बुलाते थे. ऐसे में अलख ने फुल लेक्चर अपलोड करने शुरू किए.
यूट्यूब पर व्यूज लाने में अलख को लगभग एक साल का वक़्त लगा. चैनल के व्यूज बढ़ने के साथ ज़िम्मेदारी भी बढ़ती गई. एक टीचर के तौर पर कुछ गलत पढ़ा देना स्टूडेंट्स की दुनिया में आपराधिक काम होता है.
अलख ने देश की सबसे बड़ी कोचिंग मंडी यानी कोटा (Kota) जाने का फैसला लिया. वहां से वे देश के बेस्ट टीचर्स का बनाया हुआ स्टडी मटीरियल लेकर लौटे. इसकी मदद से अपना नया कोर्स मटीरियल बनाया. 5 साल बाद फिजिक्सवाला ने कोटा में अपना खुद का इंस्टिट्यूट खोल लिया है और एक महीने के अंदर उसमें 10,000 स्टूडेंट्स एनरोल कर चुके हैं.
फिजिक्सवाला का कोर्स 4,000 रुपये का है. जिसमें आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चे भी एनरोल कर सकते थे. अलख के मुताबिक़, फिजिक्सवाला को 'कस्टमर एव्क्वीजीशन' में संघर्ष नहीं करना पड़ा. उनका पहला पेड बैच 'लक्ष्य' था, जिसमें 63,000 स्टूडेंट्स ने एनरोल किया. अलख के मुताबिक, ये उनके स्टूडेंट्स का प्यार था, जो उनके लिए शुरुआत से बिज़नेस लेकर आया.
एडटेक: पढ़ाई या व्यापार?
जिस कल्चर में गुरु को आम इंसान से बड़ा दर्जा दिया जाता है, उसमें ये भी याद रखना आवश्यक है कि पढ़ाना टीचर के लिए रोज़गार है. मगर जब कोई टीचर व्यापार की तरफ़ बढ़ जाता है, तब उसका मुख्य काम पढ़ाना है या व्यापार करना, अलख जैसे टीचर्स के लिए ये एक बड़ा सवाल है.
अलख आगे कहते हैं:
"मैं शुक्रगुज़ार हूं फिजिक्सवाला के शुरुआती टीचर्स का. बड़े-बड़े ऑफर मिलने के बावजूद वो हमें छोड़कर नहीं गए. बच्चों के प्यार के वास्ते वो यहीं रुके."
अलख के मुताबिक़ स्टूडेंट, स्टूडेंट होता है. व्यापार की भाषा में उन्हें भले ही 'यूजर' या 'क्लायंट' कहा जाता हो, मगर वो उनके लिए कभी अनाम यूजर नहीं हो सकता.
PW के आने से ऑनलाइन कोर्सेज के दामों में भारी गिरावट देखी गई. अलख के मुताबिक़:
"एडटेक एक ही कोर्स के दाम लगातार बढ़ाते जा रहे थे. 40, 50, 60 हजार. फिर हम 3,500 रुपये का कोर्स लेकर आए तो सबको ये लगा कि अब तो दाम गिराने पड़ेंगे. स्टूडेंट्स अक्सर कहते हैं हम एडटेक के 'जियो' हैं."
अलख के मुताबिक़ तमाम एडटेक ज़रुरत से ज्यादा खर्च गलत दिशाओं में करते हैं. YourStory से हुई बातचीत में अलख कहते हैं कि टीचर्स को करोड़पति बनाने और सेलेब्रिटी इंडोर्समेंट लाने के चक्कर में खर्च बढ़ते हैं. जबकि सेलेब्रिटीज ऐसे फील्ड से होते हैं जिनका पढ़ाई से ख़ास वास्ता नहीं होता. जिसके चलते बच्चे विज्ञापनों से कनेक्ट नहीं कर पाते. उनके मुताबिक़: "हम बच्चों के इमोशनल एम्बेसडर हैं."
को-फाउंडर
अलख का मानना है कि महज़ इमेज बिल्डिंग और प्रमोशन से कभी प्रोडक्ट बिक नहीं सकता. प्रोडक्ट तभी बिकता है और जब प्रोडक्ट अच्छा हो. वे कहते हैं:
"अच्छा प्रोडक्ट बनाने का श्रेय जाता है मेरे को-फाउंडर प्रतीक माहेश्वरी को. उन्होंने ऐप बनाया, उन्होंने मुझे सिखाया कि संस्थान कैसे बनते हैं, ऑटोमेशन कैसे किया जाता है, क्वालिटी एनालिसिस कैसे करते हैं."
अलख के मुताबिक़ एक अच्छा प्रोडक्ट बनाने के लिए ज़रूरी है कि कम से कम एक फाउंडर टीचर हो. उनका मानना है कि अगर करिकुलम पर काम नहीं किया जाएगा तो ऑनलाइन मार्केट में सर्वाइव करना बेहद मुश्किल हो जाएगा.
अलख कहते हैं कि अगर प्रतीक न होते तो वे कभी एक्सपैंड न कर पाते. उनके मुताबिक प्रतीक ही उनके प्रोडक्ट की रीढ़ हैं.
फंडिंग
कोरोना महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन के दौर के बाद जब स्टूडेंट ऑफलाइन क्लासेज की ओर लौट रहे हैं, लोग कहने लगे हैं कि एडटेक का भविष्य ठीक नहीं दिखता. लेकिन अलख इससे अलग राय रखते हैं. हालिया फंडिंग के बाद अलख को ये लगता है कि अगर प्रोडक्ट अच्छा हो तो उसका भविष्य खराब नहीं हो सकता.
"लेकिन फंडिंग का फायदा दिमागी स्तर पर भी हुआ है. एक सपोर्ट मिला है. और पूरी टीम के अंदर एक विश्वास पैदा हुआ है. जो साथी टीचर्स हैं उन्हें ये भरोसा हुआ है कि इनके ESOPs की वैल्यू है", अलख बताते हैं.
आगे की राह
अलख मानते हैं कि इंजीनियरिंग का मेडिकल कॉलेज में सिलेक्शन हो जाना अंत नहीं है. बच्चे नौकरियों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. इसके लिए PW दो दिशाओं में काम करना चाहता है;
1. नई नौकरियां क्रिएट करना
2. नौकरियों के लिए लोगों को ट्रेन करना
अलख के मुताबिक़ उनका सबसे बड़ा लक्ष्य ये है कि जो भी बच्चा पढ़ना चाहे, पैसा उसके लिए राह की रुकावट नहीं बनना चाहिए.
इसके अलावा फिजिक्सवाला एक 'PW सर्टिफिकेशन' पर काम कर रहा है. अलख के मुताबिक, "इस टीम के साथ हम देश भर के बच्चों तक नहीं पहुंच सकते. इसलिए मैं और प्रतीक भाई चाहते हैं कि लाखों अलख पांडेय हो जाएं."
अगले एक साल के लिए फिजिक्सवाला की प्लानिंग में तीन चीजें होंगी:
1. ऑनलाइन टीचिंग, जिसपर PW सबसे ज्यादा काम कर रहा है
2. हाइब्रिड: जिन शहरों में अच्छे टीचर्स की कमी है वहां हाइब्रिड टीचिंग
3. ऑफलाइन सेंटर्स
इसके अलावा फिजिक्सवाला 'सारथी' प्रोग्राम पर काम कर रहा है, जिसमें टीचर स्टूडेंट से महज़ एक वीडियो कॉल दूर होगा. इंडस्ट्री में 'इंस्टेंट डाउट सॉल्विंग' प्रोग्राम्स की कीमत कई हजारों में होती है, जिसे फिजिक्सवाला एक-चौथाई खर्च में लाने के प्रयास में है.
हाल ही में PW ने बांग्ला हाइब्रिड सेंटर खोला है और वे हैदराबाद में नया सेंटर खोलने के प्रोसेस में हैं. इसके साथ ही फिजिक्सवाला वर्नाकुलर में बढ़ने के लक्ष्य से कदम रख रहा है.
इसके साथ ही PW स्कूली शिक्षा में और पीछे की ओर जाएगा और 6-8 कक्षाओं के लिए कोर्स डिज़ाइन करेगा.
गलतियां
अलख के मुताबिक़ स्टार्टअप्स की सबसे बड़ी गलती ये होती है कि वो टैलेंट देखकर महंगी हायरिंग कर लेते हैं. उसके बाद उनके लिए काम तय करते हैं. जबकि पहले अंदर की भूमिकाएं तय होनी चाहिए, उसके बाद हायरिंग की ओर जाना चाहिए. फिजिक्सवाला ने भी ऐसी गलती की.
इसके अलावा अलख मानते हैं कि अपने कोर से भटकना नहीं चाहिए. कई गलतियां कर उन्होंने सीखा कि जो वर्तमान में रेवेन्यू लेकर आ रहा है, उस प्रोडक्ट पर सबसे ज्यादा फोकस करना चाहिए, न कि भविष्य की कल्पनाओं पर.
अलख नए आंत्रप्रेन्योर्स को ये भी संदेश देते हैं कि व्यापार और स्टार्टअप के जार्गन को खुद भी समझें, मीटिंग्स के लिए खुद को तैयार करें. साथ अपनी बैलेंस शीट और फाइनेंसेस पर नज़र रखें, हर चीज के लिए दूसरों पर निर्भर न रहें.
मां और पिता
"एक दिन मेरी मां सोकर उठीं और बताया कि रात उन्होंने एक सपना देखा. कि पूरे घर में पानी भर गया है और वो और मेरी बहन अदिति एक सीढ़ी चढ़कर छत की ओर भाग रहे हैं. लेकिन अलख कहीं नहीं दिख रहा है. फिर उन्हें दिखा कि अलख ऊपर सीढ़ी पकड़े खड़ा है...”
हालांकि नाराजगियों के लिए पिता के पास अपनी वजह थीं. काम ठप्प हो जाने के बाद पिता ने सेल्समैन का काम शुरू किया था. वे अपनी बेटी की लेडीबर्ड साइकिल लेकर बिस्किट, तेल और कॉस्मेटिक्स बेचने जाया करते थे. एक-एक कर लगातार असफलताएं हाथ लगीं. ऐसे में जब बेटे ने कॉलेज के बाद नौकरी न करने का फैसला लिया, पिता का डरना लाज़िम था.
'ईश्वर के हाथ की कठपुतलियां'
YourStory से हुई बातचीत में अलख बताते हैं कि एक्टिंग उनकी पहली मोहब्बत थी. स्कूल-कॉलेज में जब भी नाटकों में हिस्सा लिया, उस काम में उन्हें सबसे ज्यादा मज़ा आया.
"मेरे घरवाले तो आज भी डरते हैं. उन्हें लगता है कहीं ये सबकुछ छोड़कर एक्टिंग न करने लगे. हालांकि मैं अब फिजिक्स और एक्टिंग को मिला रहा हूं. कॉन्सेप्ट समझाते हुए शॉट्स बनाता हूं."
अलख के मुताबिक़ अंततः दुनिया में होना अभिनय करना भी है, जो उनके शब्दों में "ईश्वर सबसे अभिनय करवा रहा है."
सफलता के शीर्ष पर खड़े अलख को ये डर लगता है कि कहीं एक दिन सब ख़त्म न हो जाए. ये डर शायाद किसी भी सफल व्यक्ति का सबसे बड़ा डर होता है. "आज हीरो हूं, कहीं विलेन न बन जाऊं", अलख कहते हैं, "आज ढेरों बच्चे घेरकर सेल्फी लेने लगते हैं तो थोड़ा खराब लगता है. फिर सोचता हूं कि कल को वो ऐसा नहीं करेंगे तो और खराब लगेगा."
(ग्राफ़िक्स: सोनाक्षी सिंह)
पूरा इंटरव्यू यहां देखें:
Edited by Prateeksha Pandey