पिता की मौत ने दिखाई राह, सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए शुरू किया स्टार्टअप
ओडिशा के रहने वाले अर्पण देबाशीष ने बेंगलुरु के एमएसआरआईटी से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। 2011 में लंबी बीमारी के बाद उनके पिता की मौत हो गई। इस सदमे से उबरने के बाद अर्पण ने तय किया कि वह देश में मेडिकल सुविधाओं के क्षेत्र में कुछ सकारात्मक काम करेंगे और ताकि सही इलाज के अभाव में किसी और ज़रूरतमंद की मौत न हो।
ग्रैजुएशन के बाद अर्पण ने ज़ुआरी फ़र्टिलाइज़र्स ऐंड केमिकलर्स लि. के लिए गोवा और यूईए में काम किया। इसके बाद उन्होंने बतौर सेल्स हेड, कारों के एक ऑनलाइन मार्केटप्लेस पर भी काम किया। इस दौरान उनके अंदर लगातार अपना काम शुरू करने की चाह थी। अर्पण ने अपने सपने को अंजाम देने के लिए अपने कम्प्यूटर साइंस ग्रैजुएट दोस्त राहुल से मदद मांगी, जो डिजिटल मार्केटिंग के क्षेत्र में काम कर रहे थे। उनका आइडिया बेहद सटीक थाः ग्राहकों को दवाइयां चाहिए और रीटेलर्स को ग्राहक तो क्यों न दोनों को आपस में जोड़ दिया जाए।
आज की तारीख़ में, 29 वर्षीय अर्पण और उनके दोस्त राहुल विद्यार्थी (28 वर्ष) मेडिसेन्टो नाम से स्टार्टअप चला रहे हैं, जो फ़ार्मा स्टोर्स तक मेडिसिन्स इत्यादि पहुंचाते हैं, ताकि ग्राहकों तक सभी ज़रूरी दवाओं की पहुंच सहज हो सके। बेंगलुरु का यह स्टार्टअप रीटेलर्स की इन्वेंटरी भी मैनेज करता है। 20 लाख रुपए के निवेश साथ दोनों दोस्तों ने सितंबर, 2015 में मेडिसेन्टो की शुरुआत की। अर्पण के कुछ पुराने साथी भी मेडिसेन्टो की टीम का हिस्सा बने। जून, 2018 में गितेश शास्त्री ने अपने इंजीनियरिंग का आख़िरी साल पूरा करने से पहले ही बतौर को-फ़ाउंडर मेडिसेन्टो जॉइन कर लिया।
मेडिसेन्टो की शुरुआत बीटूसी मॉडल के तहत हुई थी। यूज़र वॉट्सऐप पर प्रेसक्रिप्शन भेज सकते थे और मेडिसेन्टो तीन घंटों के भीतर दवाई की डिलिवरी कर देता था। रीटेलर्स के साथ संपर्क करके मेडिसेन्टो ग्राहकों को दवाइयों की ख़रीद पर 10 प्रतिशत का डिस्काउन्ट भी दिलाता था। अस्पतालों में दवाइयों पर कोई छूट नहीं मिलती थी इसलिए स्टार्टअप शुरू करने के साथ ही अर्पण ने अस्पतालों में जाकर मरीज़ों से बातचीत करना शुरू किया। बीते दिनों को याद करते हुए अर्पण बताते हैं कि वह रेस्ट्रॉन्ट और मंदिरों में जाकर भी संभावित मरीज़ों से बातचीत करते थे और मुख्य रूप से बुज़ुर्गों से। उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर अस्पतालों के बाहर पोस्टर्स लगवाए। यहां तक उन्हें अपने प्रमोशन के लिए कई अस्पतालों से ज़बरदस्ती बाहर भी निकाला गया।
बूटस्ट्रैप्ड स्टार्टअप होने की वजह से मेडिसेन्टो के पास सीमित संसाधन थे। अर्पण को ख़ुद से ही ग्राहकों के पास जाकर दवाइयों की डिलिवरी करनी पड़ती थी। वह घर-घर जाकर अपने स्टार्टअप का प्रचार करते थे। उनकी इन्हीं हरकतों की वजह से एक अपार्टमेंट ने उनके प्रवेश पर रोक लगा दी थी। शुरुआती दौर में में अर्पण ने ट्यूशन्स पढ़ाकर अपने खर्चे पूरे किए।
अर्पण बताते हैं कि निवेशकों का रुझान फ़ार्मा सेक्टर में बढ़ने लगा था, लेकिन इसके बावजूद अर्पण और उनके स्टार्टअप को कुछ ख़ास मदद नहीं मिल सकी। अर्पण बताते हैं कि एक निवेशक ने उनसे कहा था कि उनके पास प्रोडक्ट नहीं है और उन्हें तकनीक की ज़रूरत है।
अर्पण बताते हैं कि मेडिकल स्टोर्स को अपने स्टॉक की भरपाई करने के लिए सात से आठ डिस्ट्रीब्यूटरों की ज़रूरत पड़ती है। अगर उनके डिस्ट्रीब्यूटर्स के पास स्टॉक ख़त्म होने लगता है तो रीटेलर्स को भी नुकसान होने लगता है। अर्पण कहते हैं कि ज़रूरत थी, सप्लायर वाले छोर को मज़बूत करने की। इसके बाद मेडिसेन्टो ने तय किया कि वे बीटूसी मॉडल की जगह बीटूबी मॉडल पर काम करना शुरू करेंगे।
उन्होंने बताया कि बड़े डिस्ट्रीब्यूटरों ने मेडिसेन्टो में ख़ास रुचि नहीं दिखाई क्योंकि जहां मेडिसेन्टो की मदद से उन्हें 20 हज़ार रुपए का बिज़नेस मिलता था, वहीं रीटेलर्स की मदद से उन्हें 1 करोड़ रुपए और उससे भी अधिक का बिज़नेस मिलता था। इस वजह से कंपनी के फ़ाउंडर्स ने तय किया कि वे छोटे डिस्ट्रीब्यूटरों के साथ ही संपर्क करेंगे। उन्होंने ऐप के माध्यम से फ़ार्मा स्टोर्स से डेटा कलेक्ट करना शुरू किया। इसके अंतर्गत, रीटेलर्स को सिर्फ़ अपनी इन्वेंटरी ऐप पर अपडेट करनी होती है।
अर्पण ने जानकारी दी कि मैनुफ़ैक्चरों के पास सिर्फ़ बिक्री से संबंधित डेटा पहुंचता था, न कि ग्राहकों द्वारा खपत का। अर्पण कहते हैं कि उनकी कंपनी ने मैनुफ़ैक्चर और रीटेलर के बीच इस कमी को पूरा किया है। मेडिसेन्टो का रेवेन्यू डिस्ट्रीब्यूटरों द्वारा मिलनी वाली कमिशन फ़ीस से आता है। रीटेलर्स को अच्छा मुनाफ़ा देने के लिए मेडिसेन्टो ने मात्र 7 प्रतिशत का मार्जिन अपने पास रखा है। अभी तक मेडिसेन्टो को 20 हज़ार से ज़्यादा ऑर्डर्स मिल चुके हैं, जिनमें से औसत ऑर्डर वैल्यू 2,500 रुपए की है।
हाल में मेडिसेन्टो 8 लोगों की कोर टीम के साथ काम कर रहा है। उन्होंने डिलिवरी के लिए किराए पर बाइक ले रखी हैं। हर दिन दो शिफ़्ट में फ़ार्मा स्टोर्स तक दवाइयों इत्यादि की डिलिवरी की जाती है। मेडिसेन्टो का फ़ार्मा स्टोर्स के साथ एक फ़ाउंडेशन बनाने की दिशा में प्रयास कर रहा है। अर्पण ने जानकारी दी कि जैसे ही एक हज़ार से ज़्यादा रीटेलर्स उनके नेटवर्क के साथ जुड़ जाएंगे, वह सीधे ब्रैंड्स तक अपनी पहुंच बनाना शुरू कर देंगे। फ़िलहाल, उनके पास 300 फ़ार्मा स्टोर्स का नेटवर्क है, जिनके माध्यम से कंपनी को मासिक तौर पर औसतन 3 हज़ार ऑर्डर्स मिल जाते हैं।
हाल में 2 लाख रुपए महीना कमाने वाली मेडिसेन्टो कंपनी का लक्ष्य है, एक दिन में 10 लाख रुपए की आय पैदा करना। आने वाले तीन महीनों में कंपनी भारत के चार और बड़े शहरों में अपने ऑपरेशन्स को बढ़ाने की दिशा में भी प्रयासरत है। रेवेन्यू बढ़ाने के लिए स्टार्टअप ने काफ़ी और तैयारियां कर रखी हैं, जैसे कि फ़ार्मा स्टोर्स को ईआरपी सिस्टम बेचना और निर्माताओं को दवाइयों की खपत का सटीक डेटा बेचना। अर्पण के मुताबिक़, कंपनी अपने ऐप पर विज्ञापनों और वेयरहाउस की जगह शेयर करने के माध्यम से भी रेवेन्यू पैदा करने की प्लानिंग कर रही है। स्टार्टअप अब वीसी लेवल फ़ंडिंग हासिल करने की भी तैयारी में है।
फ़िलहाल मेडिसेन्टो सिर्फ़ सिपला और अबॉट जैसे बड़े ब्रैंड्स द्वारा पेटेन्ट की जा चुकी दवाइयां ही सप्लाई कर रहा है। जेनरिक मेडिसिन्स की सप्लाई की योजना पर कंपनी अभी विचार कर रही है। इस संबंध में अर्पण का कहना है कि पेटेन्ट की जा चुकी दवाइयों की डिमांड मार्केट में हमेशा बनी रहती है और इस वजह से रीटेलर्स को अपने सिस्टम के साथ जोड़ने में आसानी होती है। प्रोडक्ट डिवेलपमेंट के लिए मेडिसेन्टो ने आईआईटी-मद्रास और आईआईटी-कानपुर के साथ पार्टनरशिप की है। इस टीम के मेंटर हैं, रबनवाज़ शेख, जो बेंगलुरु स्थित अताउरा बिज़नेस सेंटर के फ़ाउंडर हैं। (वेबसाइट)
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