स्थिर और सस्ती ऊर्जा आर्थिक विकास की महत्वपूर्ण कुंजी है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया भारतीय ऊर्जा कंपनियों से बहुराष्ट्रीय कंपनी बनने का आहवान।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऊर्जा क्षेत्र की भारतीय कंपनियों से बहुराष्ट्रीय कंपनी बनने का आहवान करते हुए कहा है, कि स्थिर और सस्ती उर्जा आर्थिक विकास की महत्वपूर्ण कुंजी है। इस के साथ उन्होंने पश्चिमी एशिया, मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के लिये ऊर्जा गलियारा बनाये जाने के अपने दृष्टिकोण का भी खुलासा किया।
नरेंद्र मोदी ने तेल एवं गैस क्षेत्र के सम्मेलन पेट्रोटेक का उद्घाटन करते हुये कहा, कि भारत को घरेलू तेल और गैस उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है। साथ ही क्षेत्रीय ऊर्जा संपन्न देशों के साथ भागीदारी भी स्थापित करनी होगी।
मोदी ने कहा, कि ‘आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के लिये ऊर्जा महत्वपूर्ण जरूरत है। आर्थिक विकास का लाभ समाज के निचले तबके तक पहुंचे इसलिये सतत, स्थिर और तर्कसंगत मूल्य पर उर्जा की उपलब्धता जरूरी है। ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये हमें ऊर्जा के उपयुक्त और विश्वसनीय स्रोत की जरूरत है, जबकि दूसरी तरफ हमें पर्यावरण का भी ध्यान रखना होगा।
भारत के आर्थिक विकास में हाइड्रोकार्बन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा लेकिन देश को ऐसी उर्जा चाहिये जो कि गरीबों की पहुंच में हो और उसके इस्तेमाल और उर्जा सुरक्षा की भी पूरी व्यवस्था हो।
मोदी ने कहा, ‘उर्जा और विशेषतौर पर हाइड्रोकार्बन भारत के भविष्य के लिये मेरे दृष्टिकोण का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह उर्जा के चार खंबों ‘उर्जा तक पहुंच, कुशलता, निरंतरता और सुरक्षा’ पर टिका है। देश को घरेलू स्तर पर तेल और गैस उत्पादन बढ़ाने और आयात निर्भरता कम करने की जरूरत है।'
घरेलू स्तर पर हाइड्रोकार्बन का उत्पादन बढ़ाने के लिये निवेश अनुकूल नीति की पैरवी करते हुये मोदी ने कहा कि तेल एवं गैस की खोज और उत्पादन बढ़ाने के लिये एक नई हाइड्रोकार्बन नीति पेश की गई है, जिसमें शेल गैस और तेल तथा कोयला खानों में मिलने वाली मीथेन गैस की खोज सहित समूचे हाइड्रोकार्बन क्षेत्र के लिये एक ही लाइसेंस का प्रावधान किया गया है। इसमें निवेशकों के लिये अपनी पसंद का तेल क्षेत्र चुनने की खुली नीति भी शामिल है। विवाद से बचने के लिये मुनाफे में हिस्सेदारी की पिछली नीति के स्थान पर यह खुली नीति है, जिसमें निवेशक अपनी पसंद से तेल खोज का ब्लॉक, राजस्व भागीदारी माॉडल का चुनाव कर सकते हैं। इसमें उन्हें मूल्य तय करने और विपणन की भी स्वतंत्रता होगी।
मैंने वर्ष 2022 तक आयात निर्भरता 10 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य तेल की खपत बढ़ने के दौरान ही हासिल किया जाना है : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
रूस के तेल क्षेत्रों में 5.6 अरब डालर के निवेश को उन्होंने उर्जा क्षेत्र में भारत की सक्रिय विदेश नीति का परिणाम बताया। इस तेल क्षेत्र से भारत को डेढ करोड़ टन इक्विटी तेल मिलेगा।
मोदी ने वैश्विक हाइड्रोकार्बन कंपनियों को भारत में निवेश के लिये आमंत्रित कर ‘मेक इन इंडिया’ में भागीदारी निभाने को कहा। उन्होंने कहा, ‘हमारे लगातार प्रयासों से कारोबार सुगमता के क्षेत्र में भारत की रैंकिंग सुधरी है। मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि हमारी प्रतिबद्धता काफी मजबूत है और हमारा ध्येय लाल फीताशाही के स्थान पर लाल कालीन बिछाने की है। आने वाले कई सालों में भी हाइड्रोकार्बन उर्जा का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत बना रहेगा। 2013 से 2040 के बीच दुनिया में ऊर्जा की बढ़ती मांग में एक चौथाई हिस्सा भारत का होगा। वर्ष 2040 तक भारत में तेल की खपत समूचे यूरोप की खपत से भी अधिक हो जायेगी।
भारत आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है और 2040 तक इसके पांच गुना तक बढ़ जाने की उम्मीद है। भारत के चालू खाते का घाटा वर्तमान में दशकों के निम्न स्तर पर है, जबकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सबसे ज्यादा है। यह काम ऐसे समय हुआ है जब दुनियाभर में एफडीआई गिरा है।
प्रधानमंत्री ने इस दौरान परिवहन क्षेत्र अवसंरचना में भी कई गुना वृद्धि की उम्मीद जाहिर की है। वर्ष 2040 तक इसके 1.30 करोड़ से 5.60 करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि नागरिक उड्डयन क्षेत्र में भी भारत के 2034 तक तीसरा बड़ा बाजार बनने की उम्मीद है, फिलहाल इस क्षेत्र में भारत आठवां बड़ा बाजार है। वर्ष 2040 तक विमानन क्षेत्र में ईंधन की मांग चार गुना बढ़ने की उम्मीद है।
सरकार ने उज्जवला योजना के तहत अगले पांच साल के दौरान पांच करोड़ गरीबों को एलपीजी कनेक्शन देने और एक करोड़ घरों तक पाइप के जरिये खाना पकाने की गैस पहुंचाने की शुरुआत की है।
मार्च 2018 तक देश के सभी गांवों में बिजली पहुंच सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय गैस ग्रिड नेटवर्क को दोगुना कर 30 हजार किलोमीटर किया जा रहा है। रेलवे में भी पूंजी व्यय को दोगुना किया गया है।
मोदी ने कहा कि लंबे समय से लटके पड़े वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) कानून को पारित किया गया है। जीएसटी से माल एवं सेवाओं का आवागमन सुगम होगा और कार्यकुशलता बढ़ेगी। हाल में संपन्न सीमांत तेल एवं गैस क्षेत्रों की नीलामी के दौर का जिक्र करते हुये मोदी ने कहा कि इसमें 8.90 करोड़ टन तेल भंडार वाले 67 क्षेत्रों की पेशकश की गई थी। इसके लिये निवेशकों की तरफ से बेहतर प्रतिक्रिया मिली और इसमें कई वैश्विक कंपनियों ने भाग लिया। पेट्रोलियम पदार्थों की मार्केटिंग क्षेत्र में अब ज्यादा आजादी दी गई है। इसमें सभी के लिये बेहतर सुविधायें और समान स्तरीय सुविधायें दी गईं हैं। उन्होंने कहा कि यह ऐसा क्षेत्र हैं जहां भारत को प्रतिस्पर्धी बने रहने की जरूरत है। ‘इससे न केवल हमारे रिफाइनिंग और प्रसंस्करण क्षमता में सुधार होगा बल्कि सामयिक और कुशलता के साथ परियोजनाओं को पूरा किया जा सकेगा।’ प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि प्राकृतिक गैस का हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में संतुलन बनाने की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके साथ ही अक्षय ऊर्जा उत्पादन भी बढ़ रहा है। उन्होंने जोर देते हुये कहा, ‘संतुलन साधने के लिये गैस-आधारित बिजली उत्पादन भी महत्वपूर्ण होगा।’
उधर दूसरी तरफ तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक द्वारा 2008 के बाद पहली बार उत्पादन में कटौती का फैसला करने के बाद बढ़ती तेल कीमतों के बीच भारत ने कहा कि तेल की ऊंची कीमतें देश की विकास यात्रा के लिए एक जोखिम होंगी। भारत ने इस मुद्दे पर उपभोक्ता और उत्पादकों दोनों के हित साधने वाले रास्ते पर चलने पर जोर दिया।
ओपेक में आठ साल में पहली बार तेल उत्पादन में कटौती मंजूरी दिये जाने के बाद ब्रेंट कच्चा तेल का भाव चढ़कर 54.56 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया जो 2009 के बाद कच्चे तेल के दाम में किसी एक सप्ताह में सबसे बड़ी वृद्धि है।
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पेट्रोटेक-2016 सम्मेलन में कहा, कि ‘पिछले हफ्ते ओपेक देशों ने अपने उत्पादन में 12 लाख बैरल प्रतिदिन कटौती का फैसला किया है। इसके अलावा ओपेक के गैर-सदस्य देशों ने भी उत्पादन में छह लाख बैरल प्रतिदिन कटौती करने पर सहमति जताई है। इस प्रस्तावित कटौती से कच्चे तेल की कीमतें बढ़कर 50 डॉलर प्रति बैरल से उपर निकल जायेंगी, यहां तक कि भविष्य में इनके और बढ़ने की संभावना है।’ भारत ने 2014-15 में तेल की कीमतों में कमी के बाद से महंगाई को कम करने के लिए ना सिर्फ पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी की है बल्कि इस अवसर का फायदा पेट्रोलियम उत्पादों पर शुल्क बढ़ाकर राजस्व वृद्धि के लिए भी किया है। देश में आयातित कच्चे तेल की कीमत 2013-14 में 105.52 डॉलर प्रति बैरल थी जो उससे अगले साल घटकर 84.16 डॉलर प्रति बैरल, 2015-16 में 46.17 डॉलर प्रति बैरल जबकि मौजूदा वित्त वर्ष में अब तक यह औसतन 44.81 डॉलर प्रति बैरल के आसपास बनी रही है।
उधर दूसरी तरफ सार्वजनिक क्षेत्र की तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) मुंबई अपतटीय क्षेत्र स्थित रत्ना और आर-श्रंखला के तेल क्षेत्र से 2019 में तेल उत्पादन शुरू करेगी। एस्सार ऑयल को इस क्षेत्र का आवंटन रद्द करने के बाद ओएनजीसी ने इसे हासिल किया।
ओएनजीसी के निदेशक (अपतटीय) तपस कुमार सेनगुप्ता ने कहा, कि हम विकास योजना पर काम कर रहे हैं और निवेश मंजूरियों को एक महीने में निबटा लिया जाएगा। इस क्षेत्र से उत्पादन शुरू करने का लक्ष्य 2019 रखा गया है और यहां से प्रारंभ में 10,000 बैरल प्रतिदिन उत्पादन की संभावना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने मार्च में इस क्षेत्र को इसके वास्तविक लाइसेंस धारक को वापस करने का निर्णय किया था, क्योंकि एस्सार के साथ इस संबंध में किया गया अनुबंध 20 साल बाद भी पूरा नहीं हो पाया।
एस्सार ऑयल और ब्रिटेन की प्रीमियर ऑयल को दिसंबर 1996 में रत्ना और आर-श्रंखला के तेल एवं गैस क्षेत्र का ठेका दिया गया था।
मुंबई तट से 130 किलोमीटर दूर समुद्र में स्थित इस क्षेत्र के लिए उत्पादन भागीदारी समझौता नहीं हो पा रहा था। रॉयल्टी दरों और अन्य मामलों को लेकर मतभेद के चलते इस पर हस्ताक्षर नहीं हो पा रहे थे।