एक किसान के बेटे का कमाल, दुनिया भर के किसान कर रहे हैं उनका गुणगान
गरीब किसान का बेटा बना वैज्ञानिक...‘स्मॉर्ट एग्री’ के सहारे किसानों की मदद...किसानों के लिए बनाए कई उपकरण...मिट्टी की जांच को बनाया आसान...पानी की उपयोगिता बढ़ाने के लिए बनाया उपकरण...विदेशों से मिल चुके हैं कई सम्मान...भारत सरकार से है मदद का इंतजार
डॉ. विजयराघवन विश्वनाथन को अपने इंजीनियरिंग कॉलेज का वो पहला दिन आज तक याद है जब उनसे अपने बारे में कुछ बताने को कहा गया। उस वक्त वो अंग्रेजी में कुछ शब्द ही बोल पाए और उनकी आंखों में आंसू गए। क्योंकि वो नहीं जानते थे कि वो क्या कहें और क्या करें। लेकिन आज यही डॉ. विजयराघवन CERN में वैज्ञानिक के तौर पर काम कर रहे हैं और एक उद्यमी भी हैं। मदुरै के राजपलायम के रहने वाले विजय एक किसान परिवार से आते हैं। अपने शुरूआती दिनों में ही विजय जान गए थे कि शिक्षा का जीवन में कितना महत्व है। वह हमेशा पढ़ना चाहते थे और शैक्षणिक दृष्टि से अपने आप को साबित करना चाहते थे। उनको इलेक्ट्रॉनिक्स से लगाव था इसलिए उन्होने कोयंबटूर में Amrutha इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उनको आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जब वो कॉलेज के दूसरे साल में थे तो वित्तीय कठिनाई के चलते उनको अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। फिर भी दोस्तों और रिश्तेदारों की मदद से वो एक बार फिर से अपनी पढ़ाई जारी रखने में कामयाब रहे। इसके अलावा कई स्कॉलरशिप ने उनको आगे बढ़ने में मदद की। तीसरे वर्ष की समाप्ति पर विजय को लार्सन एंड टुब्रो, पवई में नौकरी मिल गई। अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए विजय बताते हैं कि पहले साल वो अपने कॉलेज की प्रोफेसर मिनी मेनन से काफी डरते थे क्योंकि उनकी अंग्रेजी भाषा में काफी अच्छी पकड़ थी और अंग्रेजी में मिनी मेनन के साथ बातचीत करने में विजय को काफी डर लगता था। बावजूद इसके एक दिन मिनी मेनन ने उनसे बात की और विजय को कुछ ऐसी सलाह दी कि उनका जीवन ही बदल गया। उन्होने विजय को सलाह दी की वो हर दिन अंग्रेजी अखबार के संपादकीय पढ़ें भले ही उनके शब्दों को वो समझें या नहीं। इसके बाद जब भी विजय को कोई ऐसा शब्द मिलता जिसे वो समझ नहीं पाते थे तो वो उसे लिख लेते थे और उसका अर्थ शब्दकोश में तलाश कर याद करते।
दूसरों से अलग और अंतर्मुखी विजय अपना ज्यादातर वक्त पुस्तकालय में बिताते थे। तीसरे साल उनको पता चला कि उनको स्कॉलरशिप भी मिल सकती है जिसने उनको उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद उन्होने विभिन्न विश्वविद्यालयों में आवेदन किया। विजय एक मेधावी छात्र थे जिन्होने तीसरे साल इंजीनियरिंग की पढ़ाई में 88 प्रतिशत अंक हासिल किये थे। आगे पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होने बैंक में लोन के लिए आवेदन किया लेकिन बैंक मैनेजर ने उनको लोन देने से ये कहकर इंकार कर दिया कि वो इसे कैसे चुकाएंगे। इस घटना के बाद विजय उदास हो गए लेकिन उन्होने ऐसे विश्वविद्यालयों की तलाश की जो 100 प्रतिशत स्कॉलरशिप देते हैं।
किस्मत भी उन्ही लोगों पर मेहरबान होती है जो मेहनत करना जानते हैं। इटली, फ्रांस और स्विट्जरलैंड के विश्वविद्यालयों ने उनका आवेदन को मान लिया। जिसके बाद उन्होने इटली-भारत छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत उन्होने छात्रवृति लेने का फैसला लिया। हालांकि अब तक वो तमिलनाडु से बाहर कभी नहीं गए थे लेकिन इस छात्रवृति के लिए देश से तीन छात्रों का चयन हुआ था जिसमें से वो एक थे। 5 सितंबर, 2007 विजय ने इटली के लिए रवाना हो गये। जब वो मिलान में उतरे तो वहां पर बर्फ गिर रही थी जिसके लिये वो तैयार नहीं थे। उनके पास इस बर्फबारी से बचने के लिए कोई जैकेट भी नहीं थी। विजय बहुत सीधे साधे थे इसलिए उन्होने किसी से पैसे भी नहीं मांगे। लेकिन उनके एक दोस्त ने अपनी जैकेट उनको दे दी जब तक विजय को स्कॉलरशिप के पैसे नहीं मिले।
हालांकि ये विजय की परेशानियों का अंत नहीं था। जब वो खाना खाने के लिए बाहर गये तो उन्होने एक रेस्टोरेंट में शाकाहारी खाने की मांग की लेकिन वहां पर सैंडविच में मछली थी इसलिए उनको महिने भर तक चालव की भूसी पर ही जिंदा रहना पड़ा। इस दौरान उन्होने कुछ लोगों की मदद से खाना बनाना सीख लिया। इतने सारे कड़वे अनुभव के बावजूद विजय अपनी पढ़ाई से विचलित नहीं हुए और दो साल के नैनों टेक्नॉलिजी प्रोग्राम के तहत उन्होने 110 में से 108 अंक हासिल किये। लेकिन ज्ञान हासिल करने की प्यास विजय में अभी बुझी नहीं थी इसलिए उन्होने नैनों इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में पीएचडी करने का निर्णय लिया। उन्होने कैमरा डिजाइन में थ्रीडी स्टैकिंग विशेषज्ञता हासिल करने का फैसला लिया। ये कार्यक्रम सरकार, उद्योगों और शिक्षाविदों के आपसी सहयोग से चलाया जा रहा था।
इसी दौरान CERN ने यूरोपियन कमीशन की मदद से उन्नत विकिरण का पता लगाने के लिए एक प्रोजेक्ट की घोषणा की। तभी उनकी आंटी का कैंसर की वजह से निधन हो गया। जिसने उन पर गहरा असर छोड़ा और विजय कैंसर से जुड़े मुद्दों में अपनी रूची दिखाने लगे। जब CERN ने इस कार्यक्रम के लिए दुनिया भर में 14 लोगों की तलाश की तो विजय ने अपना नाम भी आगे बढ़ा दिया। उन्होने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया जो CERN और चेक रिपब्लिक की एक कंपनी मिलकर चला रही थी। इस दौरान विजय अपने विचारों को उत्पाद में बदलने के लिए उतावले हो गए। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य रिसर्च के साथ उद्यमियता को बढ़ावा देना था।
किसान का बेटा होने के नाते विजय खेती में आने वाली समस्याएं और उनसे जुड़े मुद्दों को अच्छी तरह जानते थे। विजय CERN में काम करने के दौरान और विभिन्न तकनीकों की जानकारी जुटाने के बावजूद वो अक्सर ये सोचते कि वो समाज को क्या वापिस कर सकते हैं। चार साल बाद जब विजय जब राजपलायम लौटे तो उन्होने देखा कि जो इलाका पहले कभी मीठे पानी का भंडार था वो आज पानी की कमी से जूझ रहा है। तब विजय ने सोचा कि अगर किसी के पास 100 लीटर पानी है तो वो उसका कैसे बेहतर इस्तेमाल कर सकता है। विजय के मुताबिक “हमारे पास हर चीज को मापने के लिए मशीन है इसलिए मैंने एक ऐसा उपकरण बनाने का फैसला लिया जिससे ये पता चल सके की मिट्टी में कितनी नमी, खनिज, पीएच का स्तर और दूसरी चीजें हैं।”
विजय ने आसानी से इस्तेमाल किया जाने वाले एक उपकरण को डिजाइन किया जो मिट्टी से जुड़े डाटा को मापने में ना सिर्फ मददगार था बल्कि वो सारी जानकारी किसान को उसके मोबाइल में भी पहुंचाने में सक्षम था। इससे किसान को तुरंत अपनी मिट्टी से जुड़ी जानकारी मिल सकती थी। किसान को ये जानकारी रंगों के माध्यम से दी जाती थी। इसमें हरे और लाल रंग का इस्तेमाल होता था। हरे रंग का मतलब होता कि मिट्टी की हालत अच्छी है जबकि लाल रंग का मतलब खराब होता। इसके अलावा उन्होने फव्वारों का विकास किया जमीन का डाटा जान उसी जगह पर पानी डालते जहां पर मिट्टी को सबसे ज्यादा पानी की जरूरत है। इससे ना सिर्फ 30 फीसदी तक बिजली की बचत होती बल्कि पानी की खपत भी कम होने लगी।
विजय चाहते है कि देश में इस प्रोजेक्ट में उनकी कोई मदद करे। इसके लिए उन्होने एक बार फिर CERN की मदद ली। एक महिने के कार्यक्रम के दौरान उन्होने सीखा कि वो अपने इस काम को कारोबार में कैसे बदल सकते हैं। उनको प्रोटोटाइप विकास के लिए निवेश मिला ताकि वो देश में अपनी तकनीक को लागू कर सकें। एक महिने की छुट्टियां बिताने के बाद वो रिसर्च और जमीनी स्तर पर काम करने के लिए भारत वापस लौटे। इस दौरान उन्होने संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया जिसमें कृषि से जुड़े दुनिया भर के 150 नवीन आविष्कारों की प्रौद्योगिकी को शामिल किया गया था। इस कार्यक्रम में अकेले विजय के सबसे ज्यादा 15 अविष्कार शामिल थे।
विजय के मुताबिक उनको कई जगह से मदद मिल रही है जैसे Climate-KIC, CERN, ARDENT, EPFL, PSG-STEP, सहयोगियों, परिवार और दोस्तों से। मई, 2015 में ‘स्मॉर्ट एग्री’ का चयन जापान में आयोजित एशियाई उद्यमिता पुरस्कार के लिए किया गया। यही नहीं ‘स्मॉर्ट एग्री’ ने स्विट्जरलैंड में भी कृषि पुरस्कार हासिल किया। विजय को यूं तो विदेशों से भरपूर मदद और सहयोग मिल रहा है लेकिन वो चाहते हैं कि उनके इस काम में भारत सरकार मदद करे। क्योंकि इनके उत्पाद भारत को ध्यान में रखकर तैयार किये गए हैं। विजय ‘स्मॉर्ट एग्री’ के लिए काम सप्ताहंत या रात के वक्त करते हैं। इसके अलावा वो रेडिएशन को लेकर अपने काम को जारी रखे हुए हैं। उनका विश्वास है कि आम आदमी विज्ञान की जरूरत और अनुसंधान को समझेगा और ये तभी होगा जब उसको उचित परिणाम मिलेंगे।