दृढ़ संकल्प और मजबूत इरादे से सफलता-वंदना मेहरोत्रा
“हमारी असफलता ने ही हमें और अधिक मजबूती और लचीलेपन के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया। हमने उस अनुभव से हमेशा सीखने की कोशिश की।”
सतत उद्यमी और स्वप्नदर्शी, जैसा कि वे अपने आपके लिए कहती हैं, वंदना मेहरोत्रा के पहले उपक्रम, Meteonic के बारे एक कार्यक्रम सी एन बी सी इंडिया पर प्रस्तुत किया गया था। इन कुछ वर्षों में वंदना ने सूचना प्राद्योगिकी सेवाओं, प्रशिक्षण और कर्मचारी संबंधी, खान-पान संबंधी, हॉबी, आभूषण और सिले-सिलाए कपड़ों आदि क्षेत्रों में और भी व्यावसायिक उपक्रम शुरू किए। अपने सपनों और जूनून का पीछा करने से वे कभी नहीं घबराईं।
नागपूर में पैदा हुईं वंदना को बचपन में ही एक त्रासदी का सामना करना पड़ा। जब वह पाँच साल की थीं, एक दुर्घटना में उनके पिता का दाहिना पैर जाता रहा। वंदना कहती हैं -
“तब मैं बहुत छोटी थी और इस हादसे ने मेरे परिवार को पूरी तरह हिलाकर रख दिया। मेरे पिता लगभग दो साल अस्पताल में रहे और क्योंकि वे सरकारी नौकरी में थे और अवैतनिक अवकाश पर रहते थे, उन्हें वेतन मिलना बंद हो गया। आखिर मेरी माँ को परिवार की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लेनी पड़ी। ऐसी कठिन परिस्थिति में भी मेरे माता-पिता ने मेरी पढ़ाई छुड़वाने के बारे में कभी नहीं सोचा। उन्होंने इस बात का भी ध्यान रखा कि मुझे सही शिक्षा मिले और मैं स्कूल में अच्छे से अच्छा प्रदर्शन करूँ। आज जो कुछ भी मैं हूँ, शिक्षा के बल पर ही हूँ और इसलिए मैं अपने माता-पिता के उपकारों से जीवन पर्यंत उऋण नहीं हो पाऊँगी”
उद्यमशीलता और रचनात्मकता के लिए जानी जाने वाली वंदना कहती हैं, “जब मैं नौकरी करती थी तब मुझे अपने विचारों को कार्यरूप में परिणत करने का पूरा मौका नहीं मिल पाता था लेकिन तब भी मेरे आसपास ऐसे लोग थे जो मुझ पर भरोसा करते थे और उनका मुझे सहयोग प्राप्त होता था।” वे एक पेशेवर इंजीनियर हैं और उन्होंने टाटा कंसल्टंसी सर्विसेज़ से अपने कैरियर की शुरुआत की थी।
उन्होंने वहाँ 1997 से 2007 तक काम किया लेकिन उनकी पहली नौकरी उतनी आसान भी नहीं थी। 1996 में नागपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद, उनके शब्दों में,
"उस समय आज की तरह कैम्पस इंटरव्यू नहीं होते थे। जब कि मुझे कॉलेज में पढ़ते हुए ही नौकरी मिल गई थी, मैंने वहाँ सिर्फ एक माह तक ही काम किया और वह नौकरी छोड़कर रामदेव बाबा कमला नेहरू इंजीनियरिंग कॉलेज में व्याख्याता की नौकरी शुरू कर दी। मैं एम बी ए करना चाहती थी इसलिए मैंने सोचा, यह उपयुक्त अवसर है। दुर्भाग्य से मैं CAT की परीक्षा पास नहीं कर सकी और इसलिए मैंने पढ़ाना जारी रखा।"
लेकिन उससे उन्हें संतोष नहीं था; उन्हें लगता वे कुछ बड़ा काम करने के लिए बनी हैं। वंदना को कभी भी इस बात का डर नहीं रहा कि उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिलेगी; उनकी चिंता थी कि उपयुक्त नौकरी मिलेगी या नहीं। तो वह नौकरी भी छोड़कर वह अपने भाई के पास अहमदाबाद आ गई और वहाँ एम बी ए के कुछ मेनफ़्रेम पाठ्यक्रमों में दाखिला ले लिया और उन्हें पूरा किया। इसके बाद उन्हें पुनः एक प्रशिक्षक की नौकरी मिली लेकिन तभी, अप्रैल 1999 में उन्हें टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ में नौकरी मिल गई। वंदना ने बताया -
“यह मेरे जीवन का एक क्रांतिकारी मोड़ था। मैंने टी सी एस में रहते हुए बहुत कुछ सीखा। मुझे वहाँ बहुत सी फॉर्च्यून 500 कंपनियों के साथ काम करने का मौका मिला। मैंने न्यू जर्सी में एक आउटसोर्सिंग परियोजना की शुरुआत की, जिसमें काम करने वालों की संख्या दो लोगों से बढ़ते-बढ़ते 80 लोगों तक पहुँच गई। भारत लौटने के बाद मैंने यहाँ भी एक टीम बनाई”
सन 2003 तक टी सी एस की नौकरी बढ़िया चल रही थी लेकिन तभी उन्हें मैटरनिटी लीव लेनी पड़ी। वंदना ने बताया -
“नवंबर में तारीख पड़ी थी और मैं पाँच माह काम पर नहीं जा सकी। इसी दौरान कर्मचारियों के काम का समीक्षा-मूल्यांकन होता है और मुझे बेल-कर्व में सबसे निचले स्तर पर रखा गया। इस विषय में मुझसे कोई चर्चा नहीं की गई और मुझे वाकई अत्यंत खराब रेटिंग प्राप्त हुई। यह बहुत हतोत्साहित करने वाली बात थी क्योंकि मैंने अपनी टीम के लिए बहुत-कुछ किया था।”
“जब 2005 में मेरी बेटी का जन्म हुआ, फिर यही बात दोहराई गई। उन दिनों हमारे कार्यालय में पदोन्नति का नियम इस प्रकार था: जब आप लगातार तीन साल पाँच में से चार रेटिंग पाते हैं तभी आपकी पदोन्नति की जा सकती है।" इसका अर्थ यह था कि सिर्फ एक साल की कम रेटिंग के चलते अगली पदोन्नति के लिए उन्हें कम से कम 2010 तक इंतज़ार करना था।
ऐसी स्थिति में वंदना ने सोचा कि अपना खुद का कोई व्यवसाय शुरू किया जाए। “मैं भाग्यशाली रही कि मुझे बहुत संवेदनशील और मददगार पति मिले हैं। मेरे अपने निजी निर्णयों पर उन्होंने आज तक कोई प्रश्न नहीं उठाया और मुझ पर और मेरी काबिलियत पर सदा विश्वास किया। यह उनका समर्थन और प्रोत्साहन ही था जिसने मुझे अपना कोई काम शुरू करने के लिए प्रेरित किया,” वंदना ने बताया।
सन 2006 के बाद वंदना बाज़ार और उद्यमों के विषय में जानकारी लेती रहीं, उपक्रमों के बारे में सोचती रहीं कि क्या और कहाँ से शुरू किया जाए।
“मैं होटल और रेस्तराँ संबंधी व्यवसाय के बारे में जानकारी लेती रही। सबसे पहले मैं इस व्यवसाय से संबंधित आंकड़ों और काम के तरीकों के बारे में समझती रही, कोई फ्रेंचाइसी तलाशती रही। तब मुझे लगा कि इसमें नफे का प्रतिशत बहुत कम है और उसमें बहुत श्रम और प्रयास करने की ज़रूरत होगी।”
अपनी सीमाओं और शक्तियों को ठीक तरह से परखने के बाद उन्होंने निर्णय किया कि उसी क्षेत्र में कोई काम करना उचित होगा, जिसका उन्हें पहले से ज्ञान और अनुभव है और तब उन्होंने सूचना प्राद्योगिकी के क्षेत्र में जाने का निर्णय किया। अपने पति, अंकुर को साथ लेकर उन्होंने अपनी कंपनी, Meteonic पंजीकृत करवाई। वे कहती हैं,
“हम उत्पाद विकास के क्षेत्र में काम शुरू करना चाहते थे मगर उसके लिए हमारे पास पर्याप्त पूंजी नहीं थी। इसलिए हमने पहले सेवा क्षेत्र में ही मजबूती के साथ पैर जमाने की कोशिश की।”
वंदना ने अपने उपक्रम की जानकारी देते हुए 200 से ज़्यादा कंपनियों के पास ईमेल भेजे और इस तरह एक उद्यमी के रूप में स्थापित होने की दिशा पहला कदम रखा।
“लेकिन किसी ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई; चार से छह माह तक हम सिर्फ ईमेल भेजते रहे, जो बिना किसी नतीजे के लोगों के इनबॉक्स में सड़ते रहे। यह हमारी आँखें खोलने के लिए पर्याप्त था (यह चेतावनी थी कि हम आँखें खोलकर यथार्थ पर नज़र दौड़ाएँ)। मुझे समझ में आ गया कि किसी भी नए व्यवसायी के लिए स्थापित कंपनियों का मुक़ाबला करते हुए अपने लिए व्यवसाय का जुगाड़ करना कितना मुश्किल और जोखिम-भरा काम है। हमारी असफलता ने ही हमें और ज़्यादा मजबूती के साथ, पूरी शिद्दत और लचीलेपन के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया। वह बड़ा ही डरावना अनुभव रहा लेकिन हमने उस अनुभव से सीखने की कोशिश की।”
रास्ते में बहुत रोड़े आए और तब वंदना ने दोबारा सम्पूर्ण परियोजना की समीक्षा करने का निश्चय किया। वंदना ने बताया-
"हम कर्मचारियों और प्रशिक्षण संबंधी सेवाओं में अच्छा दखल रखते थे मगर उससे हमारे खर्चे भी पूरे नहीं हो पाते थे, लाभ कमाने की बात तो छोड़िए। लंबी चर्चा के बाद हमें पता चला कि बहुत सी बड़ी-बड़ी कंपनियों में कुछ सॉफ्टवेयर टूल्स होते हैं, जिन्हें वे इस्तेमाल तो करते हैं मगर उनके लिए कोई स्थानीय सेवा उपलब्ध नहीं होती। हमें जैसे कारूं का खजाना मिल गया। हमने कुछ कंपनियों से बात की और 'Klockwork' नामक कंपनी के साथ अपना पहला करार किया। यह हमारी कंपनी के लिए एक सकारात्मक मोड़ था। 'Klockwork' बहुत से आला दर्ज़े के उत्पाद बेचने वाली कंपनी है और हम उन्हें प्रचारित करते हैं। बहुत जल्द हमें और भी बहुत से संपर्कों का पता चला और हमने उनमें से कुछ बड़े नामों को अपने साथ जोड़ लिया"
दुर्भाग्य से तभी आर्थिक मंदी का दौर शुरू हो गया और उनका व्यापार भी नीचे आने लगा।
"यह हमारे लिए एक बड़ा सदमा था; वह अभी उछाल के मुहाने तक पहुँचा ही था कि हमें यह दौर देखना पड़ा। हम Meteonic को मुख्यतः सूचना प्राद्योगिकी सेवा बनाए रखते हुए नए क्षेत्रों में कदम रखने ही जा रहे थे," वंदना कहती हैं। यह सब देखते हुए वंदना ने 2008 में बच्चों के लिए शौक परिसर (hobby studio) खोलने का निर्णय किया, जो एक प्रकार का सामाजिक कार्य था। वह एक साल चला। "मैंने इसे पैसा कमाने के लिए शुरू नहीं किया था लेकिन चाहती थी कि वह आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा हो सके। और जब वैसा नहीं हो पाया तो मैंने उसे बंद कर दिया। सारे अभिभावकों और शिक्षकों के पैसे लौटाए, क्योंकि मुझे ऐसा करना नैतिक रूप से उचित लगा।"
यहाँ तक कि वंदना ने 2012 में रेस्तराँ व्यवसाय में भी हाथ आज़माया और इस बार वह सफल भी रहा। लेकिन, उन्हीं के शब्दों में, "हमें लगा यह काम हमारे लायक नहीं है इसलिए हमने उसे बेच दिया।" उसके बाद वंदना ने गीतांजलि ज्वेल्स की फ्रेंचाइसी ले ली और आज उनकी दुकान 'नगीना जेम्स' के नाम से जानी जाती है और जो गीतांजलि ज्वेल्स की सबसे बड़ी दुकानों में से एक है।
खुदरा व्यापार को समझने और उसमें जगह तलाशने में वंदना को आठ साल का समय लगा। वे कहती हैं, “कुछ साल पहले तक खुदरा उद्यम इतना अधिक सुसंगठित नहीं था। तो सूचना प्राद्योगिकी का अपना सारा ज्ञान और अनुभव मैंने इसमें उंडेल दिया और यह युक्ति काम आई।” कुछ समय बाद वंदना ने तैयार कपड़ों की एक दुकान भी खोली जिसका नाम रखा, यू अँड यू (U&U)। वंदना कहती हैं-
“जबकि योजना तैयार करने और उन्हें अमली जामा पहनाने के मामले में मैं बहुत आक्रामक हूँ, अंकुर अपनी ऊर्जा और मेहनत पर ज़्यादा भरोसा करते हैं। अपने हर काम में मुझे उनका समर्थन मिलता रहा और अपने सभी उपक्रमों के क्रियान्वयन में वे हमेशा बहुत मददगार सिद्ध हुए। उनके कारण ही मैंने सीखा कि कैसे अपने परिचालन-व्यय में कटौती करके ज़्यादा से ज़्यादा लाभ कमाया जा सकता है। इसके अलावा वे घरेलू कामों में भी पूरा हाथ बँटाते हैं, जो मेरे लिए अतिरिक्त सुविधा साबित होता है”
इस प्रश्न के जवाब में कि इतने सालों के अनुभव ने उन्हें क्या सिखाया, वंदना कहती हैं,
“मैं हार से या असफलता से नहीं घबराती और कोई काम शुरू करने से पहले बहुत सोचती नहीं हूँ। वास्तव में जब मैं देखती हूँ कि कोई काम मुझे अच्छा लग रहा है तो उसमें हाथ डाल देती हूँ और दृढ़ संकल्प के साथ उस काम में अपने आपको पूरी तरह झोंक देती हूँ।”