समाज में बदलाव का हिस्सा बनना चाहते हैं तो 'हल्लाबोल'
साामजिक कार्यों को करने के इच्छुक लोगों को आपस में मिलने का एक मंच उपलब्ध करवाता है ‘हल्लाबोल’समाजसेवा करने के इच्छुक उन लोगों के लिये वरदान है जो समाज के लिये कुछ करने का रास्ता तलाश रहे हैंतेजाब हमले की शिकार झारखंड की सोनाली मुखर्जी के लिये इनकी याचिका ने की पीडि़त की काफी मदद
हमारे पाठकों में से अधिकतर कई बार एक सामाजिक पहल की दिशा में अपने कदम बढ़ाना चाहते हैं ताकि वे समाज को कुछ वापस दे सकें लेकिन उनमें से अधिकतर समर्थन, पैसे और मदद के लिये एक अच्छी टीम की कमी के चलते अपने इस विचार को मूर्त रूप देने में असफल रहते हैं। आप लोगों में से जो भी इस श्रेणी के हैं उनके लिये एक अच्छी खबर यह है कि इस लेख को पढ़ने के बाद अब आप उस परिवर्तन निर्माता नहीं होने का कोई बहाना नहीं बना सकते जो बनने की आप ख्वाहिश रखते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं Halabol (हलाबोल) के बारे में जो विशेष रूप से आप जैसे लोगों के लिये तैयार किया गया एक मंच है। यह मंच ऐसे लोगों के लिये तैयार किया गया है जो अपने विचारों और जुनून के बूते दुनिया बदलने का माद्दा रखते हैं लेकिन अबतक एक मंच की तलाश में अपनी महत्वाकांक्षाओं को आवाज देने में आवाज देने में असफल रहे हैं।
‘हल्लाबोल’ समान विचारधारा और सोच वाले लोगों को आपस में अपने विचार साझा करने के लिये, एक दूसरे से जुड़ने में मदद करने के लिये और समाज पर प्रभाव छोड़ने के लिये तैयार की गई अपनी विभिन्न परियोजनाओं में एक-दूसरे का समर्थन करने के लिये एक मंच प्रदान करवाता है। ‘हल्लाबोल’ की वेबसाइट पर अपना एक एकाउंट बनाकर आप समाज की बेहतरी के लिये एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रहे सामाजिक उद्यमियों और कार्यकर्ताओं तक आसानी से अपनी पहुंच बना सकते हैं और उनमें से एक बन सकते हैं। यह मंच आपको ब्लाॅग पर अपने विचार लिखने, अभियानों को शुरू करने, याचिकाओं या पेटीशन्स को शुरू करने और उनपर हस्ताक्षर करने, प्रतिज्ञा लेने और किसी कार्यक्रम को आयोजित करने के अवसर प्रदान करने के साथ-साथ अब तो एक गैर-लाभकारी प्रोफाइल तैयार करने की भी इजाजत देता है। इस प्रोफाइल की मदद से आप उपलब्ध नौकरियों के बारे में जानकारी साझा करने के अलावा स्वयंसेवकों को अपने साथ जोड़ने और अपनी परियोजना के लिये दान इत्यादि के माध्यम से धन का प्रबंध कर सकते हैं।
हाल ही मे हमें ‘हल्लाबोल’ के संस्थापक और सीईओ अंकुर गुप्ता से मुलाकात करने का मौका मिला और तब हमने उनसे इस कार्यक्रम के बारे में विस्तार से जानकारी लेने के अलावा भविष्य में समाज में परिवर्तन लाने के इच्छुक व्यक्तियों के लिये उनकी सलाह के बारे में बातचीत की।
याॅरस्टोरीः ‘हल्लाबोल’ को प्रारंभ करने का विचार आपके मन में कब और कैसा आया और आपकी टैगलाइन ‘‘बदलाव की शुरुआत करें’’ के पीछे की क्या कहानी है?
अंकुर गुप्ताः हर बार जब भी कोई मुझसे ‘हल्लाबोल’ के उद्गम के बारे में बारे में पूछता हैै तो वह मुझे अपनी इस यात्रा को पुर्नजीवित करने और इस उद्यम में मेरे विश्वास को और मजबूत करने में मदद करता है। मैंने वर्ष 2009 में जो महसूस किया था वर्तमान में अधिकतर भारतीय शायद उसी मनोदशा से गुजर रहे हैं। पूरी दुनिया बहुत परेशानियों और चुनौतियों से भरे समय से गुजर रही हैं और प्रत्येक व्यक्ति ऐसे माहौल में शांति और सुकून लाने में अपने ओर से अधिक से अधिक सहयोग करने को तत्पर है और इसके लिये अपना योगदान करना चाहता है। कुछ लोग यह काम विभिन्न सोशल साईटों पर अपने विचार साझा करके कर रहे हैं, कुछ लोग इंडिया गेट पर धरने-प्रदर्शन करके और कुछ लोग अपने घरों पर छोटी-मोटी पूजा-पाठ करके लेकिन आखिर में सिर्फ एक ही चीज ऐसी है जो इन्हें आपस में जोड़ती है और वह है योगदान करने की इच्छा और और बदलाव लाने के लिये जो कुछ कर सकते हैं उतना करने का जज्बा। प्रत्येक व्यक्ति अपनी तरफ से योगदान करने के रास्तों को तलाश रहा है फिर चाहे वह छोटा हो या बड़ा। पीछे मड़कर देखें तो वर्ष 2009 में मैं भी कुछ ऐसी ही मनोस्थिति से गुजर रहा था। मैं उस समय समाज को कुछ वापस करने के लिये बेहद तत्पर था और खुद का सामाजिक प्रक्रियाओं का एक हिस्सा बनाना चाहता था। लेकिन मैं ऐसा करने के लिये कोई उचित मंच नही तलाश कर पा रहा था और इस तरह से अपने जीवन के शून्य को भरने के लिये ‘हल्लाबोल’ की अवधारणा को मूर्त रूप मिला और मुझे फर्क पैदा करने का एक मौका।
मैंने पाया कि भारत इतने सारे छोटे-छोटे मुद्दों से जूझ रहा है और ऐसे में मेरे लिये कोई ऐसी सार्थक प्रक्रिया नहीं है जिसका मैं एक हिस्सा बन सकूं और अपना भी कुछ योगदान दे सकूं। मैं खुद को और अपने जैसे अन्य लोगों को योगदान करने का एक साधन देना चाहता था, एक ऐसा साधन जो हमारे आज के जीवन और विकल्पों में प्रदर्शित हो। एक ऐसा साधन जो उदारता और सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा को एक नया रूप देते हुए उसे भूख हड़ताल, मलिन बस्तियों में काम करने, दान-पुण्य करने करने इत्यादि से परे ले जाए और हमें हमारी सीमाओं और ताकत को समझने में मदद करे जिसकी वजह से हम सामाजिक आंदोलनो का हिस्सा बनने के और बेहतर तरीकों को तलाश कर सकें।
आपके सवाल के दूसरे भाग के जवाब के रूप में मैं यह कहना चाहता हूँ कि ‘हलाबोल’ में बदलाव की ओर अग्रसर करने के लिये प्रेरित करता है। एक ऐसा अवसर जो आपको अपनी नींद से जागकर खुद को ताजातरीन करते हुए सीधे मैदान में कूदने के लिये प्रेरित करता है। मैं कोई दार्शनिक नहीं हूँ लेकिन फिर भी मैं इन सरल शब्दों में विश्वास करता हूँ कि हम जिस बदलाव की आशा करते हैं उसे लााने का जरिया भी सिर्फ हम स्वयं ही हो सकते हैं। और अगर हममें से हर कोई बदलाव की शुरुआत करे और सिर्फ एक परिवर्तन का चुनाव करे तो हम सब मिलकर एक बहुत बड़ा बदलाव लाने में कामयाब हो सकते हैं।
याॅरस्टोरीः आपको अबतक उपयोगकर्ताओं से कैसी प्रतिक्रियाएं मिली हैं? उन्होंने अपने जुनून को व्यक्त करने और सामाजिक बदलाव की पहल का एक हिस्सा बनने के लिये आपके मंच को किस रूप में अपनाया है?
अंकुरः हम काम को शुरू करने और उसे संचालित करने में आने वाली अपनी परेशानियां होती हैं। हमने भी अपने सामने आने वाली परेशानियों का डटकर सामना किया और उनसे बहुत कुछ सीखते हुए खुद को मजबूत बनाने में सफल रहे। किसी भी नेक काम के लिये प्रारंभिक ‘प्रतिक्रिया’ जुटाने में समय लगता है और विशेषकर इसलिये क्योंकि हम एक ऐसे समय में अपने काम को अंजाम दे रहे हैं जब सामाजिक परिवर्तन लाने की दिशा में कई अन्य लोग भी हमारे जैसे मंच का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो कि एक अच्छा संकेत है, ऐसे में हमने जिस काम को हाथ में लिया है वह काफी बड़ा है और अगर इस काम में कई हाथ और जुड़ जाएं तो इसे और बेहतरी से पूरा कर सकते हैं! मैं ‘हल्लाबोल’ को मिली प्रतिक्रियाओं को अच्छे या बुरे में विभाजित नहीं करूंगा लेकिन मैं इसे एक सतत प्रतिक्रिया का नाम दूंगा और यही हमारा सबसे बड़ा ईनाम है।
हमारे लिये यही तथ्य कि वे लोग (कर्मचारी, स्वयंसेवक, मित्र, पोर्टल पर आने वाले आगंतुक, राय निर्माता, एनजीओ इत्यमदि) जो हमारे साथ 26 जनवरी 2012 को ‘हल्लाबोल’ की औपचारिक शुरुआत के समय जुड़े थे आज भी हमारे साथ जुड़े हुए है और यही हमारी सबसे बड़ी सफलता है। जैसा कि मैंने ऊपर बताया हममें से प्रत्येक को अपने जुनून, दर्द, निराशा, रचनात्मकता और अन्य भावों को व्यक्त करने के लिये एक मंच की आवश्यकता होती है और ‘हल्लाबोल’ ऐसा करने में सफल रहता है। लोग हमारे पोर्टल पर आते हैं और हमारे साथ बात करने के अलावा आपस में भी बात करते हैं। वे यहां पर अपनी कहानियां, अनुभव, दर्द, सफलताएं और असफलताएं सहित बहुत कुछ साझा करते हैं। लोगों से निरंतर मिल रही प्रतिक्रिया हमारे लिसे सबसे बड़ी प्रतिक्रिया है। हम लोगों के लिये प्रेरणा से भरपूर एक मंच होने पर गर्व महसूस करते हैं।
मैं आपको कुछ उदाहरणों के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ। सर्वप्रथम हमारी सबसे पहली सफल पहल तेजाब हमले की शिकार के लिये एक याचिका थी जिसमें संपूर्ण भारत के लोगों ने हमारे इस काम के समर्थन के लिये आपस में हाथ मिलाया। झारखंड की सोनाली मुखर्जी के लिये ‘हलाबोल’ की याचिका को दुनियाभर के करीब 5700 लोगों से हस्ताक्षर लेने में सफलता मिली। इसके अलावा इन्हें 1500 सदस्यों से टिप्पणी मिलर और विशबैरीडाॅटइन के सहयोग से लोगों ने एक अच्छी खासी रकम उनके बैंक एकांउट में जमा की। ‘हलाबोल’ टीवी पर उनके वीडियो को 50 हजार से भी अधिक लोगों ने देखा है। इसके एकदम बाद सोनाली मीडिया की व्यापक कवरेज और स्टार प्लस पर आने वाले मशहूर कार्यक्रम केबीसी में अपनी उपस्थिति के चलते काफी प्रसिद्ध हो गईं।
दूसरा, दीपावली के त्यौहार से कुछ समय पहले एक एनजीओ ने महमें हरित दीपावली अभियान के लिये संपर्क किया जिसमें ली जाने वाली प्रत्येक प्रतिज्ञा के लिये 10 रुपये मिलने थे जिनका उपयोग वंचित तबके के लोगों के लिये सौर ऊर्जा के कामों में किया जाना था। यह अभियान बेहद प्रभावी तरीके से 13 हजार रुपये के अधिक इकट्ठा करने में कामयाब रहा।
फिलहाल ‘हल्लाबोल’ सक्रिय रूप से दो याचिकाओं को चला रहा है और अपने मकसद को पूरा करने की दिशा में इन्हें भारी जनसमर्थन प्राप्त हो रहा है। इनमें पहली तो तेजाब हमलों की शिकार के लिये न्याय की एक याचिका है और दूसरी दिल्ली गैंग रेप - स्टाॅप द एब्यूस पहल है।
याॅरस्टोरीः आपके अनुसार विर्तमान परिवेश में सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां क्या हैं? आपके अनुसार एक ऐसे विश्व के निर्माण में जहां हर कोई बदलाव लाने में एक जरिया हो सकता हो के निर्माण का क्या जरिया हो सकता है?
अंकुरः ईमानदारी से, मैं किसी चुनौती के बारे में तो सोच ही नहीं सकता। जब आप किसी भी सड़क पर निकलते हैं तो रास्ते में आने वाली बाधाएं किसी को तो धीमा होने के लिये मजबूर कर देती है और किसी के लिये रास्ता आसान बना देती हैं जिससे वह तेजी से आगे निकल जाता है। सामाजिक उद्यमियों को भी रास्ते में आने वाली चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
मेरे सामने लगभग प्रतिदिन ही कोई न कोई ऐसा क्षण होता है जो मुझे आगे बढ़ते रहने के लिये प्रेरित करता है। जब भी कोई युवा पेशेवर मेरे कार्यालय में आता है और इस टीम का हिस्सा बनने की इच्छा जाहिर करता है मुझे प्रेरणा मिलती है। वास्तव में अब पेशेवर भी सामाजिक क्षेत्र को रोजगार के अवसरों के रूप में देखने लगे हैं। यह तथ्य कि वह देश जो एक समय जेसिका लाल और आरुषी तलवार के लिये हाथ मिलाकर खड़ा हो गया था आज एक 23 वर्ष की युवती के लिये आगे आ रहा है और यह देखना काफी सुखद है। अपनी फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर को ‘काले धब्बे’ में तब्दील करना बदलाव के साथ-साथ जागरुकता और बढ़ती संवेदनशीलता का द्योतक है। हमें अपनी नींद से जागने के लिये किसी घटना के होने का इंतजार नहीं है बल्कि हम पहले से ही वहां मौजूद हैं। क्या ये सब प्रेरणास्त्रोत और बदलाव नहीं हैं?